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चन्द्रशेखर आजाद होने का अर्थ...

चन्द्रशेखर आजाद होने का अर्थ... - Chandra Shekhar Azad
(23 जुलाई को आजाद के जन्मदिवस पर विशेष)
 


 

 
महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर 'आजाद' का जन्म 23 जुलाई 1906 को श्रीमती जगरानी देवी व  पंडित सीताराम तिवारी के यहां भाबरा (झाबुआ, मध्यप्रदेश) में हुआ था। वे पंडित रामप्रसाद  'बिस्मिल' की हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में थे और उनकी मृत्यु के बाद  नवनिर्मित हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी/ एसोसिएशन (HSRA) के प्रमुख चुने  गए थे।
 
मात्र 14 वर्ष की आयु में अपनी जीविका के लिए नौकरी आरंभ करने वाले आजाद ने 15 वर्ष  की आयु में काशी जाकर शिक्षा फिर आरंभ की और लगभग तभी सब कुछ त्यागकर गांधीजी  के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। 
 
1921 में मात्र 13 साल की उम्र में उन्हें संस्कृत कॉलेज के बाहर धरना देते हुए पुलिस ने  गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने उन्हें ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। जब मजिस्ट्रेट  ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- 'आजाद'। मजिस्ट्रेट ने पिता का नाम पूछा, तो  उन्होंने जवाब दिया- स्वाधीनता। मजिस्ट्रेट ने तीसरी बार घर का पता पूछा, तो उन्होंने जवाब  दिया- जेल।
 
उनके जवाब सुनने के बाद मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़े लगाने की सजा दी। हर बार जब उनकी  पीठ पर कोड़ा लगाया जाता, तो वे 'महात्मा गांधी की जय' बोलते। थोड़ी ही देर में उनकी पूरी  पीठ लहूलुहान हो गई। उस दिन से उनके नाम के साथ 'आजाद' जुड़ गया।
 
आजाद को मूलत: एक आर्यसमाजी साहसी क्रांतिकारी के रूप में ही ज्यादा जाना जाता है। यह  बात भुला दी जाती है कि रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान के बाद की क्रांतिकारी  पीढ़ी के सबसे बड़े संगठनकर्ता आजाद ही थे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सहित सभी  क्रांतिकारी उम्र में कोई ज्यादा फर्क न होने के बावजूद आजाद की बहुत इज्जत करते थे। 
 
उन दिनों भारतवर्ष को कुछ राजनीतिक अधिकार देने की पुष्टि से अंग्रेजी हुकूमत ने सर जॉन  साइमन के नेतृत्व में एक आयोग की नियुक्ति की, जो 'साइमन कमीशन' कहलाया। समस्त  भारत में साइमन कमीशन का जोरदार विरोध हुआ और स्थान-स्थान पर उसे काले झंडे दिखाए  गए। 
 
जब लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध किया गया तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बेरहमी  से लाठियां बरसाईं। पंजाब के लोकप्रिय नेता लाला लाजपतराय को इतनी लाठियां लगीं कि कुछ  दिनों के बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह और पार्टी के अन्य सदस्यों  ने लालाजी पर लाठियां चलाने वाले पुलिस अधीक्षक सांडर्स को मृत्युदंड देने का निश्चय कर  लिया।
 
चन्द्रशेखर 'आजाद' ने देशभर में अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया और अनेक  अभियानों का प्लान, निर्देशन और संचालन किया। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के काकोरी कांड से  लेकर शहीद भगत सिंह के सांडर्स व संसद अभियान तक में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है।  काकोरी कांड, सांडर्स हत्याकांड व बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह का असेंबली बमकांड उनके  कुछ प्रमुख अभियान रहे हैं।
 
देशप्रेम, वीरता और साहस की एक ऐसी ही मिसाल थे शहीद क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद। 25  साल की उम्र में भारतमाता के लिए शहीद होने वाले इस महापुरुष के बारे में जितना कहा जाए,  उतना कम है। अपने पराक्रम से उन्होंने अंग्रेजों के अंदर इतना खौफ पैदा कर दिया था कि  उनकी मौत के बाद भी अंग्रेज उनके मृत शरीर को आधे घंटे तक सिर्फ देखते रहे थे। उन्हें डर  था कि अगर वे पास गए तो कहीं चन्द्रशेखर आजाद उन्हें मार ना डालें। 
 
 

एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते हुए चन्द्रशेखर आजाद से कहा, 'पंडितजी, हम क्रांतिकारियों  के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको  कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।' 
 
चन्द्रशेखर सकते में आ गए और कहने लगे, 'पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूं, मेरा परिवार नहीं। उनसे  तुम्हें क्या मतलब? दूसरी बात, उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी  लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थ भाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज में न धन चाहिए  और न ही ख्याति।' 
 
27 फरवरी 1931 को जब वे अपने साथी सरदार भगतसिंह की जान बचाने के लिए आनंद  भवन में नेहरूजी से मुलाकात करके निकले, तब पुलिस ने उन्हें चन्द्रशेखर आजाद पार्क (तब  एल्फ्रैड पार्क) में घेर लिया। बहुत देर तक आजाद ने जमकर अकेले ही मुकाबला किया। उन्होंने  अपने साथी सुखदेवराज को पहले ही भगा दिया था। 
 
आखिर पुलिस की कई गोलियां आजाद के शरीर में समा गईं। उनके माउजर में केवल एक  आखिरी गोली बची थी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं यह गोली भी चला दूंगा तो जीवित गिरफ्तार  होने का भय है। अपनी कनपटी से माउजर की नली लगाकर उन्होंने आखिरी गोली स्वयं पर ही  चला दी। गोली घातक सिद्ध हुई और उनका प्राणांत हो गया। 
 
पुलिस पर अपनी पिस्तौल से गोलियां चलाकर 'आजाद' ने पहले अपने साथी सुखदेव राज को  वहां से सुरक्षित हटाया और अंत में एक गोली बचने पर अपनी कनपटी पर दाग ली और  'आजाद' नाम सार्थक किया। 

27 फरवरी 1931 को चन्द्रशेखर आजाद के रूप में देश का एक महान क्रांतिकारी योद्धा देश की  आजादी के लिए अपना बलिदान दे गया, शहीद हो गया। उनको श्रद्धांजलि देते हुए कुछ महान  व्यक्तित्व के कथन निम्न हैं-
 
* चन्द्रशेखर की मृत्यु से मैं आहत हूं। ऐसे व्यक्ति युग में एक बार ही जन्म लेते हैं। फिर भी  हमें अहिंसक रूप से ही विरोध करना चाहिए। -महात्मा गांधी
 
* चन्द्रशेखर आजाद की शहादत से पूरे देश में आजादी के आंदोलन का नए रूप में शंखनाद  होगा। आजाद की शहादत को हिन्दोस्तान हमेशा याद रखेगा। -पंडित जवाहरलाल नेहरू
 
* देश ने एक सच्चा सिपाही खोया। -मुहम्मद अली जिन्ना
 
* पंडितजी की मृत्यु मेरी निजी क्षति है। मैं इससे कभी उबर नहीं सकता। -महामना मदन  मोहन मालवीय

किसी कवि की भावपूर्ण श्रद्धांजलि उस महान क्रांतिकारी के लिए-
 
जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे,
भारतमाता की जय कहकर फांसी पर जाते थे। 
 
जिन बेटों ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली,
आजादी के हवन कुंड के लिए जवानी दे डाली। 
 
उनका नाम जुबां पर लो तो पलकों को झपका लेना,
उनको जब भी याद करो तो दो आंसू टपका लेना।


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