गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
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9 लाख पेड़ों के लिए जाना जाता था इंदौर का नवलखा

9 लाख पेड़ों के लिए जाना जाता था इंदौर का नवलखा - Navlakha of Indore was known for 9 lakh trees
पर्यावरण, प्रकृति, वन, नदी, पहाड़ों और पेड़ों की हरियाली से हर सामान्य जन का मन प्रसन्न हो जाता है। हर प्राणी को हरियाली से स्नेह और प्रेम है। प्रकति तो अनादिकाल से ही सृष्टि निर्माण के वक्त से मौजूद है।
 
होलकरों के इस राज्य की स्थापना हुए करीब 300 वर्ष हो चुके हैं। होलकरों की राजधानी इंदौर हरियाली व बागों से परिपूर्ण रही है, साथ ही इस नगर ने पर्यावरण का हमेशा ही सम्मान किया है। नगर के कई क्षेत्रों के नाम इस तरह रखे गए थे कि वे स्वत: ही पर्यावरण का अहसास कराते हैं।
 
1918 में होलकर राज्य में प्रस्तुत नगर नियोजन रिपोर्ट जिसे विश्व में प्रसिद्ध इंजीनियर पेट्रिक गिडीज ने तैयार की थी, उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में नगर में बाग, बगीचों, नदी और पेड़ों का जिक्र किया है, साथ ही अपने कई सुझाव दिए थे। जाहिर है होलकर नरेश पर्यावरण के लिए चिंतित रहते थे।
 
जैसा कि जाहिर है भारत में नगरों का विकास नदियों के किनारे हुआ, ठीक उसी तर्ज पर होलकरों का यह इंदौर भी कान्ह और सरस्वती नदी के मुहाने पर बसा। नदी किनारे सुन्दर पेड़-बगीचे और वनों की प्रचुरता थी। हाथी नदियों में जल क्रीड़ा करते कई प्राचीन चित्रों में देखने को मिलते हैं।
 
होलकरों का राजभवन हो या अधिकारियों का निवास, सभी बाग-बगीचों के नामों का वर्णन आ ही जाता है। होलकर राजाओं द्वारा निर्मित भवन भी प्रकृति के साथ पर्यावरण से आच्छादित थे। सुखनिवास पैलेस जिसका 1883 में तुकोजीराव द्वितीय ने निर्माण करवाया था, यह भवन तालाब के किनारे बनवाया था।
 
महाराजा शिवाजीराव होलकर ने शिवविलास पैलेस का निर्माण करवाया था। इस भवन के सामने एक भव्य बगीचा और सीढ़ियों के मध्य पानी का कृत्रिम झरना बनवाया था। 1909 में महाराजा तुकोजीराव तृतीय के निवास हेतु माणिकबाग पैलेस का निर्माण करवाया गया था और यह क्षेत्र भी काफी पेड़ों से घिरा था।
 
लालबाग, जैसा कि नाम से जाहिर है, का निर्माण 1886 में आरंभ हुआ और 6 वर्ष के बाद इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ था। रोमन शैली में निर्मित यह भवन सुंदरता का भव्यतम उदाहरण है। लालबाग में पेड़ों और बगीचों के कारण इसका नाम लालबाग रहा। लालबाग के उद्यान के लिए मिस्टर हार्वे नाम के एक अधिकारी को नियुक्त किया गया था। उन्होंने मालवा में बड़े पेड़ों के लिए कार्य किया और लालबाग में एक भव्य गुलाब गार्डन लगवाया था जिसमें गुलाब की कई किस्में थीं।
 
इसके अलावा नगर में केशरबाग, बक्षी बाग, कैदी बाग, इमली बाजार, सांठा बाजार, शक्कर बाजार, मोरसली गली, नवलखा (कहा जाता है कि यहां 9 लाख पेड़ हुआ करते थे), खजूरी बाजार, पीपली बाजार, धान गली एवं हल्दी बाजार (वर्तमान में मारोठिया बाजार) हैं जिनके नाम से ही पेड़-पौधों और पर्यावरण का आभास होता है। इसके अलावा हाथीपाला, मच्छी बाजार, गोरा कुंड आदि नाम नगर के इतिहास में दर्ज हैं।
 
इन सभी नामों से जाहिर है कि इंदौर ने हमेशा पर्यावरण का सम्मान किया है और होलकर नरेशों का भी प्रकृति प्रेम झलकता है।