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Written By Author कमलेश सेन
Last Updated : बुधवार, 25 मई 2022 (00:15 IST)

इंदौर की राजनीति में प्रजा मंडल की प्रमुख भूमिका

इंदौर की राजनीति में प्रजा मंडल की प्रमुख भूमिका - Major role of Praja Mandal in Indore politics
राजनीतिक गतिविधियों के लिए नित नए प्रयोग और जतन किए जाने लगे थे। सवाल यह था कि किस बहाने और किस तरह एकत्र होकर चर्चा की जाए। 1854 में इंदौर जनरल लाइब्रेरी की स्थापना हो चुकी थी। 1915 में मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति एवं एवं महाराष्ट्र साहित्य सभा की नींव डाली जा चुकी थी। इन तीनों संस्थाओं ने उस दौर में युवाओं को एक नया प्लेटफॉर्म दिया और बातचीत का स्थान उपलब्ध करवाया।
 
ज्ञान प्रसारक मंडल में बिखराव के बाद युवाओं को जोड़ने का पुन: प्रयास किए जाने लगे। 1915 के करीब गणेश उत्सव फिर से मनाए जाने के साथ अन्य कार्यक्रम भी मनाए जाने आरंभ हो गए। 1918 में अध्ययनरत छात्रों और युवाओं को एकत्र कर राष्ट्रीय चेतना के प्रसार का कार्य आरंभ किया गया। श्री जीतमल लुनिया ने सस्ते साहित्य प्रकाशन का कार्य आरंभ किया। श्री हरिभाऊ उपाध्याय उस वक्त इंदौर में ही थे। आपके प्रयासों ने युवाओं में नई राजनीतिक चेतना का कार्य किया।
 
इंदौर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना हुई और 1922 में परिषद का पहला राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन की खबर स्थानीय अधिकारियों को लगी तो उन्होंने कार्रवाई आरंभ कर दी। इस राजनीतिक सम्मेलन की व्यस्थापक समिति के 2 मंत्री श्री भानुदास शाह और डॉक्टर व्यास को इंदौर राज्य से निष्कासित कर दिया गया था।
 
इंदौर में राजनीतिक इतिहास का एक और सूत्रपात 1930 के लाहौर कांग्रेस और सत्याग्रह आंदोलन से हुआ था। इन दोनों मुद्दों ने नगर के युवाओं में देशभक्ति की भावना को जबर्दस्त जाग्रत किया था। नगर में काफी अधिक रैली और जुलूस युवाओं द्वारा आयोजित किए जाने लगे थे।
 
इसी वर्ष नगर में स्वदेशी प्रचारक नवयुवक मंडल की स्थापना हुई थी। स्वदेशी मंडल ने नगर में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार आंदोलन आरंभ किया। 1930 के वर्ष में ही नगर की गलियों में 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...' के गीत गूंजे थे। कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के बाद नगर में 1939 में एक मजबूत संगठन प्रजा मंडल की स्थापना की गई। प्रजा मंडल एक मजबूत और मेहनती, जुझारू नेताओं के समूह का संगठन था।
 
प्रजा मंडल की स्थापना के वर्ष 1939 में पहल अधिवेशन हुआ और उसी वर्ष नगर सेविका यानी स्थानीय निकाय द्वारा आम जनता पर लगाए गए करों के विरोध में प्रजा मंडल के नेतृत्व में हड़ताल और विरोध आरंभ कर दिया। प्रजा मंडल के इस विरोध का असर हुआ और राज्य शासन ने इस नए करों का मामला नई कौंसिल को निर्णय दायित्व सौंप दिया था।
 
प्रजा मंडल की एकता और स्थानीय युवाओं और नेताओं में संरक्षण ने इस संस्था को मजबूती प्रदान की। 1940 में प्रजा मंडल ने 'प्रजा मंडल पत्रिका', जो साप्ताहिक थी, का प्रकाशन आरंभ किया। नगर में राजनीतिक उद्देश्य के लिए आरंभ किया यह पहला समाचार पत्र था।
 
नगर में राजनीतिक चेतना और आंदोलन का जुनून युवा वर्ग और नेताओं में ही नहीं था बल्कि मजदूर वर्ग में भी जाग्रत हो चुका था। 1939 और 1941 में मजदूरों ने विरोधस्वरूप हड़ताल कर दी थी। 1941 की मजदूर हड़ताल में पुलिस को गोली चलाना पड़ी थी। इस जबर्दस्त विरोध के बाद इंदौर का मजदूर वर्ग जाग्रत और संगठित समूह जाना जाने लगा था।
 
इस तरह इंदौर की राजनीति में प्रजा मंडल की प्रमुख भूमिका रही। प्रजा मंडल में प्रमुख नेता बैजनाथ महोदय, वी.सी. सरवटे, वी.स. खोड़े, भानुदास शाह, भालेराव वकील, व्यासजी, सूरजमल जैन, रामेश्वर दयाल तोतला वदिनकरराव पारुलकर आदि थे।