मध्यकाल में कई बड़े संत हुए हैं जिनमें संत कवि दादू दयाल का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। दादू दयाल का जन्म हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इस बार यह जयंती 21 मार्च 2021 को मनाई जाएगी। आओ जानते हैं संत दादू दयाल के संबंध में 10 खास बातें।
दादू दयाल (जन्म 1544 ई.- मृत्यु 1603 ई.) :
1. संत कवि दादू दयाल का जन्म फागुन सुदी आठ बृहस्पतिवार संवत् 1601 (सन् 1544 ई.) को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था।
2. उनके पिता धुनिया थे। पिंजारा रुई धुनने वाली जाति को धुनिया भी कहा जाता है। माता का नाम बसी बाई था। कहते हैं कि संत दादू को जन्म के तत्काल बाद किसी अज्ञात कारण से इनकी माता ने लकड़ी की एक पेटी में उनको बंद कर साबरमती नदी में प्रवाहित कर दिया। बाद में लोदीराम नागर ने उस पेटी को देखा, तो उसे खोलकर बालक को अपने घर ले आया।
2. संत गरीबदास (1579-1636) दादू दयाल के पुत्र थे। उनके दूसरे पुत्र मिस्कीनदास तथा दो पुत्रियां- नानीबाई तथा माताबाई थीं।
3. दादू मुगल सम्राट शाहजहां (1627-58) और तुलसीदास के समकालीन थे। इन्हें हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी भाषा याद थी।
4. दादू के संत रज्जब, प्रसिद्ध कवि सुंदर दास, जगन्नाथ सहित 152 शिष्य थे।
5. दादू दयाल हिन्दी के भक्तिकाल में ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख सन्त कवि थे। इनके उपदेश मुख्यतः काव्य सूक्तियों और ईश्वर भजन के रूप में संकलित हैं। कुल मिलाकर 5,000 छंदों के संग्रह को 'पंचवाणी' कहा जाता है। इन छंदों के माध्यम से उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया।
6. उनके अनुयायी न तो मूर्तियों की पूजा करते हैं और न कोई विशेष प्रकार की वेशभूषा धारण करते हैं। वे सिर्फ श्री राम को मानते हैं और उन्हीं का नाम जपते रहते हैं।
7. इन्होंने एक निर्गुणवादी संप्रदाय की स्थापना की थी जिसे 'दादूपंथ' कहते हैं। कालान्तर में दादू पंथ के 5 प्रमुख उपसम्प्रदाय निर्मित हुए:- खालसा, विरक्त तपस्वी, उतराधें या स्थानधारी खाकी नागा।
8. दादू दयाल का अधिकांश जीवन राजपूताना में व्यतीत किया। चंद्रिका प्रसाद त्रिपाठी के अनुसार अठारह वर्ष की अवस्था तक अहमदाबाद में रहे, छह वर्ष तक मध्य प्रदेश में घूमते रहे और बाद में सांभर (राजस्थान) में आकर बस गए।
9. दादू पंथियों के अनुसार बुड्ढन नामक एक अज्ञात संत इनके गुरु थे।
10. दादू दयाल की मृत्यु जेठ वदी अष्टमी शनिवार संवत् 1660 (सन् 1603 ई.) को हुई।