Marathi hindi controversy: महाराष्ट्र में इन दिनों हिंदी और मराठी भाषाओं को लेकर बहस छिड़ी है। इस विवाद को भाषाई पहचान के साथ सांस्कृतिक अस्मिता और राजनीतिक भावनाओं से भी जोड़ा जा रहा है। भारत की अनेकता में एकता का ध्येय वाक्य मानने वाली संस्कृति में यह समझना ज़रूरी है कि मराठी देश की तमाम भाषाओँ की तरह ही एक भाषा है। आइए जानते हैं कि आखिर मराठी भाषा की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका उद्भव कहाँ से हुआ और सदियों के सफर में इसने कैसे अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त किया।
मराठी भाषा की उत्पत्ति (origin of marathi language)
मराठी भाषा का संबंध इंडो-आर्यन भाषा परिवार से है, जिसकी जड़ें प्राचीन संस्कृत में निहित हैं। माना जाता है कि मराठी का विकास महाराष्ट्र में बोली जाने वाली विभिन्न प्राकृत भाषाओं से हुआ है। इनमें सबसे प्रमुख 'महाराष्ट्री प्राकृत' है, जो प्राचीन काल में इस क्षेत्र की साहित्यिक और बोलचाल की भाषा थी। विद्वानों का मत है कि लगभग 8वीं से 10वीं शताब्दी ईस्वी के बीच महाराष्ट्री प्राकृत से अपभ्रंश नामक भाषाओं का जन्म हुआ, और इन्हीं अपभ्रंशों में से एक 'महाराष्ट्री अपभ्रंश' से मराठी भाषा का उद्भव हुआ।
यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हुई, जहाँ प्राकृत के व्याकरण और शब्दावली में परिवर्तन आए और स्थानीय बोलियों का प्रभाव बढ़ता गया। इस प्रकार, मराठी सीधे संस्कृत से नहीं, बल्कि संस्कृत की एक शाखा, प्राकृत और फिर अपभ्रंश से विकसित हुई है। यह विकास क्रम इसे हिंदी, बंगाली, गुजराती और अन्य उत्तर भारतीय भाषाओं के समान परिवार का सदस्य बनाता है।
यादव काल से मराठा साम्राज्य तक ऐतिहासिक विकास (history of marathi language)
मराठी भाषा का वास्तविक साहित्यिक विकास यादव काल (लगभग 9वीं से 14वीं शताब्दी) में शुरू हुआ। इस काल में कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे गए, जिनमें संत ज्ञानेश्वर का 'ज्ञानेश्वरी' (जो भगवद गीता पर एक टीका है) और संत नामदेव के अभंग प्रमुख हैं। 'ज्ञानेश्वरी' को मराठी साहित्य का एक मील का पत्थर माना जाता है, जिसने मराठी को एक स्वतंत्र साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित किया। इस काल में मराठी में भक्ति आंदोलन का उदय हुआ, जिसने भाषा को जन-जन तक पहुँचाया।
इसके बाद बहमनी सल्तनत और फिर मराठा साम्राज्य के दौरान मराठी का और अधिक विस्तार हुआ। छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में मराठी को राजभाषा का दर्जा मिला, जिससे इसका प्रभाव और भी बढ़ा। इस दौरान प्रशासनिक और सैन्य दस्तावेजों में मराठी का उपयोग होने लगा, जिससे इसकी शब्दावली और व्याकरण में परिपक्वता आई। पेशवा काल में भी मराठी साहित्य और प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही।
विशेषताएँ और आधुनिक स्वरूप
मराठी भाषा अपनी विशिष्ट ध्वनि संरचना, व्याकरण और शब्दावली के लिए जानी जाती है। इसमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश के साथ-साथ फारसी, अरबी और कुछ हद तक पुर्तगाली व अंग्रेजी शब्दों का भी प्रभाव देखा जा सकता है, जो इसके ऐतिहासिक संपर्कों को दर्शाता है। महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में मराठी की कई बोलियाँ प्रचलित हैं, जैसे वऱ्हाडी, अहिराणी, मालवणी, कोल्हापुरी आदि, जो इसकी विविधता को दर्शाती हैं।
आज मराठी महाराष्ट्र राज्य की राजभाषा है और गोवा की सह-राजभाषा भी। यह महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग है। स्कूलों, कॉलेजों, प्रशासन और मीडिया में इसका व्यापक रूप से उपयोग होता है।
भाषाई सौहार्द की आवश्यकता
महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी के बीच का विवाद अक्सर भावनात्मक हो जाता है। लेकिन, मराठी भाषा का समृद्ध इतिहास और इसका स्वतंत्र विकास यह दर्शाता है कि यह किसी अन्य भाषा की प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि अपनी एक गौरवशाली पहचान रखती है। भाषाओं का सह-अस्तित्व और सम्मान ही भाषाई सौहार्द का आधार है।