kailash parvat par om aur damru ki awaaz: हिमालय की गोद में स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील सिर्फ भूगोल का हिस्सा नहीं, बल्कि आस्था, रहस्य और अध्यात्म का जीवंत प्रतीक हैं। यह स्थान केवल तीर्थ यात्रा की मंजिल नहीं, बल्कि आत्मिक शांति, ब्रह्मांडीय ऊर्जा और गहन रहस्य का केंद्र भी माने जाते हैं। यहां तक कि विज्ञान भी इन स्थलों की कुछ घटनाओं को पूरी तरह समझा नहीं पाया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कैलाश पर्वत अलौकिक शक्तियों का केन्द्र है। ऐसा कहा जाता है कि यह स्थल अनेक देवी-देवताओं का निवास स्थान है, जिसके कारण इसे स्वर्ग का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। श्रद्धालुओं का यह भी विश्वास है कि आज भी भगवान शिव यहां गहन तपस्या में लीन हैं।
इन्हीं रहस्यमय घटनाओं में एक है, कैलाश पर्वत और मानसरोवर के आस-पास गूंजती 'डमरू' और 'ॐ' की आवाजें सुनाई देना। कई यात्रियों और साधकों ने दावा किया है कि जब वे मानसरोवर या कैलाश के निकट पहुंचते हैं, तो उन्हें निरंतर एक विशेष कंपन या ध्वनि सुनाई देती है, जो न तो हवा है, न जल की, बल्कि ऐसी लगती है मानो कोई सूक्ष्म रूप में डमरू बजा रहा हो या ब्रह्मांड से 'ॐ' का नाद निकल रहा हो।
क्या सचमुच सुनाई देती है 'डमरू' या 'ॐ' की ध्वनि?
कैलाश पर्वत के आसपास गए कई श्रद्धालु बताते हैं कि कैलाश पर्वत की चोटी या मानसरोवर झील के किनारे बैठने पर उन्हें लगातार एक कंपन भरी ध्वनि सुनाई देती है। यह कोई सामान्य आवाज नहीं होती, बल्कि एक रहस्यमयी 'हूं...ॐ' या 'डमरू' जैसी गूंज होती है, जो न तो किसी यंत्र से निकलती है, न ही किसी दृश्य माध्यम से।
कुछ पर्यटकों ने इसे ऐसा भी बताया है जैसे कोई विमान ऊपर उड़ रहा हो, लेकिन जब वे ऊपर देखते हैं, तो आकाश में न कोई हेलीकॉप्टर होता है और न ही प्लेन। फिर यह आवाज आती कहां से है? क्या यह महादेव के डमरू की अनहद ध्वनि है, या ब्रह्मांड के मूल स्वर की झलक?
विज्ञान की दृष्टि
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो कैलाश क्षेत्र में अत्यधिक ऊंचाई, ठंडी जलवायु और बर्फ की विशेष संरचना मिलकर ध्वनि की असामान्य गतियों को जन्म देती हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बर्फ के धीरे-धीरे पिघलने से एक निश्चित कंपन उत्पन्न होती है, जो वातावरण में फैलकर गूंजारूप ध्वनि उत्पन्न करती है।
दूसरी थ्योरी यह कहती है कि वहां की खास पर्वतीय संरचना और ध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनि मिलकर 'डमरू' या 'ॐ' जैसी ध्वनि का भ्रम पैदा करती है। जब प्रकाश की किरणें इन बर्फीले क्षेत्रों से टकराती हैं, तो ध्वनि तरंगें भी उसी अनुपात में उत्पन्न हो सकती हैं, जो किसी ध्वनि का आभास देती हैं।
लेकिन हैरानी की बात ये है कि यह ध्वनि किसी रिकॉर्डिंग डिवाइस में उतनी स्पष्ट नहीं आती, जितनी कानों से सुनने में आती है। यानी यह आवाज कहीं न कहीं व्यक्ति की आंतरिक चेतना और वातावरण के मिश्रण से उपजती है।
धार्मिक दृष्टिकोण
सनातन धर्म में 'ॐ' को ब्रह्मांड की मूल ध्वनि माना गया है, जिससे सृष्टि का आरंभ हुआ। वहीं डमरू शिव का एक अत्यंत शक्तिशाली प्रतीक है, जिसके नाद से संहार और सृजन दोनों की प्रक्रियाएं चालू होती हैं।
ऐसे में कई लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत, जो स्वयं शिव का निवास स्थल माना जाता है, वहां से इस प्रकार की दिव्य ध्वनियों का आना एक आध्यात्मिक सत्य है। वहां की भूमि, वायु, जल और आकाश, सब मिलकर एक ऐसी कंपन उत्पन्न करते हैं, जो केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर सुनी जाती है।
साधु-संतों और योगियों के अनुसार, यह ध्वनि केवल बाहर से नहीं, बल्कि मन, प्राण और चेतना के स्तर पर सुनी जाती है, और यह 'अनहद नाद' कहलाती है, जो सिर्फ उन लोगों को अनुभव होती है जो ध्यान, भक्ति और पूर्ण समर्पण की अवस्था में हों।
कैलाश-मानसरोवर यात्रा का आकर्षण
हर साल हजारों श्रद्धालु मानसरोवर यात्रा पर जाते हैं, लेकिन हर किसी को यह अनुभव नहीं होता। यह अनुभव केवल उन्हीं को होता है जो वहां शांत चित्त, खुली चेतना और पवित्र हृदय के साथ पहुंचते हैं। वहां की ऊर्जा इतनी उच्चतम स्तर की होती है, कि शरीर और मन की स्थूलता हटकर एक सूक्ष्म स्तर पर पहुंच जाते हैं, जहां यह ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है।
यही कारण है कि कैलाश को पंचतत्वों का संतुलन स्थल भी कहा जाता है, और मानसरोवर झील को 'देवताओं का जल'। वहां की प्रकृति, बर्फ, जल, कंपन और हवा, सभी मिलकर ब्रह्मांडीय ध्वनि का अनुभव कराते हैं।
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