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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 1 जुलाई 2025 (17:20 IST)

जिस बांके बिहारी मंदिर में कॉरिडोर पर हो रहा विवाद, जानिए वहां भगवान की मूर्ति के प्रकट होने की अद्भुत कहानी और चमत्कार

बांके बिहारी मंदिर
banke bihari mandir history in hindi: वृंदावन धाम, जहां कण-कण में राधा-कृष्ण का वास है, अपने दिव्य मंदिरों और चमत्कारी कहानियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन सबमें एक नाम जो विशेष रूप से चमकता है, वह है श्री बांके बिहारी जी का मंदिर। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वृंदावन के इस सबसे प्रतिष्ठित विग्रह को प्रकट करवाने वाले संत कौन थे और कैसे उनकी अद्भुत साधना से राधा और कृष्ण का यह एकाकार रूप भक्तों के लिए सुलभ हुआ? आइये आज आपको बताते हैं संत शिरोमणि श्री हरिदास जी महाराज की कहानी।

कौन थे संत हरिदास?
संत हरिदास जी (Swami Haridas) 16वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि और संगीतज्ञ थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के हरिदासपुर गांव में हुआ था। वे निम्बार्क संप्रदाय से संबंधित थे और वृंदावन में ही अपनी अधिकांश साधना की। हरिदास जी का जीवन पूर्णतः भक्ति और विरक्ति को समर्पित था। वे सांसारिक मोह-माया से परे, केवल भगवान के प्रेम में लीन रहते थे। उनका मानना था कि संगीत के माध्यम से ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है, और वे स्वयं ध्रुपद गायन के एक महान आचार्य थे। कहा जाता है कि तानसेन जैसे महान संगीतज्ञ भी उनके शिष्य थे और उनसे शिक्षा प्राप्त करते थे।

निधिवन में संत हरिदास की अद्भुत साधना
संत हरिदास जी वृंदावन के निधिवन (Nidhivan) में अपनी कुटिया बनाकर रहते थे। यह वही स्थान है जहां आज भी रात्रि में राधा-कृष्ण की रासलीला होने की मान्यता है। हरिदास जी दिन-रात निधिवन में बैठकर एकांत में भजन-कीर्तन और साधना करते थे। उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि वे स्वयं को राधा-कृष्ण के नित्य विहार में लीन अनुभव करते थे। वे किसी से ज्यादा बात नहीं करते थे और अपनी साधना में ही मग्न रहते थे। उनकी भक्ति और तपस्या की शक्ति इतनी तीव्र थी कि स्वयं भगवान उनके समीप आने को विवश हो गए।

राधा-कृष्ण का एकाकार विग्रह: बांके बिहारी जी का प्रकटीकरण
कहते हैं एक दिन स्वामी हरिदास के शिष्य ने कहा कि बाकी लोग भी राधे कृष्ण के दर्शन करना चाहते हैं। उनकी भावनाओं का ध्यान रखकर स्वामी हरिदास भजन गाने लगे। तभी निधिवन में एक अद्भुत तेज प्रकट हुआ। कहते हैं इस अलौकिक प्रकाश में संत हरिदास जी के सामने राधा और कृष्ण का एक अलौकिक युगल रूप प्रकट हुआ है। यह रूप इतना मनोहर और मोहक था कि देखने वाले मंत्रमुग्ध हो गए।

संत हरिदास जी ने इस दिव्य दर्शन को अपनी संगीत साधना और अनन्य भक्ति से प्राप्त किया था। जब उन्होंने भगवान् से भक्तों की इच्छा कही तो राधा कृष्ण उसी रूप में उनके पास रहने के लिए तैयार हो गए. इस पर हरिदास जी बोले कान्हा मैं ठहरा संत, तुम्हे तो किसी तरह अपने पास रख लूंगा लेकिन राधा रानी के लिए नित नए वस्त्र और आभूषण मैं कहां से लाऊंगा. हरिदास जी की इस बात से भगवान् इतने भाव-विभोर हो गए कि उन्होंने अपने युगल रूप को एक ही विग्रह के रूप में उपलब्ध करवाया ताकि भक्त उनका सहजता से दर्शन कर सकें।

संत हरिदास जी ने इस अद्भुत विग्रह को सर्वप्रथम निधिवन में ही एक छोटे मंदिर में स्थापित किया। बाद में, भक्तों की सुविधा के लिए और विग्रह की सुरक्षा के लिए, बांके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Mandir) का निर्माण किया गया और विग्रह को वहां स्थानांतरित कर दिया गया। यह विग्रह ही आज वृंदावन में "श्री बांके बिहारी जी" (Banke Bihari Ji) के नाम से पूजित है।

बांके बिहारी नाम का अर्थ:
'बांके' का अर्थ है 'त्रिभंगा' या तीन जगहों से झुका हुआ, जो भगवान कृष्ण की विशिष्ट खड़ी मुद्रा को संदर्भित करता है। 'बिहारी' का अर्थ है 'आनंद लेने वाला' या 'विहार करने वाला'। इस प्रकार, बांके बिहारी का अर्थ है वह भगवान जो अपनी त्रिभंगा मुद्रा में आनंद लेते हैं।

मंदिर की विशेष मान्यताएं और परंपराएं:
झाँकी दर्शन: बांके बिहारी मंदिर की सबसे अनूठी विशेषताओं में से एक 'झाँकी दर्शन' की परंपरा है। यहां भगवान की मूर्ति को बार-बार पर्दे से ढका और खोला जाता है। इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता यह है कि बांके बिहारी जी की मूर्ति की सुंदरता इतनी तीव्र है कि एकटक देखने से भक्त अपनी सुध-बुध खो सकते हैं। दूसरी मान्यता यह भी है कि बांके बिहारी जी बहुत चंचल हैं और भक्तों को अपनी पलकें झपकने का अवसर नहीं देना चाहते, इसलिए उन्हें बार-बार पर्दे से ढक दिया जाता है।
नहीं होती है मंगला आरती: बांके बिहारी मंदिर में अन्य मंदिरों की तरह मंगला आरती नहीं होती है। यहां केवल श्रृंगार, राजभोग और शयन आरती होती है। इसका कारण यह माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी बांके बिहारी जी को एक छोटे बालक के रूप में मानते थे और उन्हें सुबह जल्दी उठाना पसंद नहीं करते थे।

प्रसाद और भोग: मंदिर में भगवान को माखन-मिश्री का विशेष भोग लगाया जाता है, जिसे भक्त बहुत श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।

होली का उत्सव: वृन्दावन में होली का त्योहार विश्व प्रसिद्ध है, और बांके बिहारी मंदिर में होली का उत्सव एक अलग ही उत्साह और भव्यता के साथ मनाया जाता है। फूलों की होली, रंग-गुलाल और भजन-कीर्तन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

फूलों का बंगला: गर्मी के महीनों में भगवान को गर्मी से बचाने के लिए फूलों का बंगला बनाया जाता है, जिसमें भगवान को विराजमान किया जाता है। यह एक बहुत ही सुंदर और मनमोहक दृश्य होता है।
बांके बिहारी मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि यह करोड़ों भक्तों की आस्था, प्रेम और भक्ति का केंद्र है। यहां आने वाला हर भक्त भगवान बांके बिहारी के अलौकिक सौंदर्य और दिव्य उपस्थिति का अनुभव करता है। यह मंदिर वृन्दावन के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

 

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