माथे पर चिंता की रेखाएँ...... एक हाथ से रोते हुए बच्चों को बहलाते और दूसरे हाथ से सूटकेस को संभालते हुए निधि एयरपोर्ट के प्रतीक्षालय गई और अपनी फ्लाइट के आने का इंतजार कर रही थी।
यात्रा करने का स्वप्न भयानक रूप ले लेता है, जब ट्रेन में सीट न मिले, होटल में रहने के लिए कोई कमरा न हो, हवाई जहाज में सीट आरक्षण के लिए एक लम्बी कतार लगी हुई हो और एजेंट से किसी बात पर बहस छिड़ जाए।
इन सब समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन पर आलेख लिखने वाली लेखिका सुमित्रा सेनापति ने वूमन ऑन वांडरलस्ट (वाओ) नामक एक क्लब की शुरुआत की यह उन महिलाओं के लिए है जो अकेले ही सफर करती हैं। इस समुदाय की महिलाएँ 20 से 65 तक के उम्र की है। सुमित्रा फैमिना, टाइम्स ऑफ इंडिया, मेरीक्लेयर जैसी पत्रिकाओं में लिखती रही है।
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संस्था के विषय में सुमित्रा सेनापति से साक्षात्कार
* किन कारणों से वाओ ट्रेवल क्लब की शुरुआत हुई? - भारतीय महिलाओं की स्थिति काफी बदल चुकी है। आज की आधुनिक युग की महिलाएँ स्वतंत्र हैं, सक्षम हैं, शिक्षित एवं स्वयं आर्थिक रूप से सशक्त हैं। महिलाएँ अकेले सफर कर सकती हैं। मुझे इंग्लैंड एवं न्यूजीलैंड में पर्यटन संस्था द्वारा आयोजित ट्रिप का संचालक बनाया गया था। इस दौरान अकेले सफर कर रही महिलाओं के साथ रहकर मैंने देखा कि इन महिलाओं के पास सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं जो उनके सफर को आरामदायक बनाती है।ये सुविधाएँ भारतीय महिलाओं को उपलब्ध नहीं हैं। इस क्लब के माध्यम से हमने वह सारी सुविधाएँ भारतीय महिलाओं को उपलब्ध कराने का प्रयास किया है।
क्लब साल में 12 से 14 बार ट्रिप की योजना बनाता है। हर ट्रिप में 20 महिलाएँ जाती हैं। वाओ क्लब में वर्तमान में लगभग 3000 महिला सदस्याएँ हैं।
* आपकी संस्था महिलाओं को क्या सुविधाएँ दे रही हैं? - हम महिलाओं के लिए सारी सुविधाएँ उपलब्ध करवाते हैं। टिकट से लेकर होटल के कमरे की बुकिंग तक। क्लब साल में 12 से 14 बार ट्रिप की योजना बनाता है। हर ट्रिप में 20 महिलाएँ जाती हैं। वाओ क्लब में वर्तमान में लगभग 3000 महिला सदस्याएँ हैं।
*यह संस्था अन्य ट्रेवल एजंसी संस्थाओं से अलग कैसे है? - यह पहली संस्था है जिसके माध्यम से महिलाएँ अकेले भी भ्रमण कर सकती हैं। इस सफर में महिलाएँ हर तरह से सुरक्षित होती हैं और सीमित बजट में ही ट्रिप का भरपूर आनंद उठाया जा सकता है।
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* प्रारम्भ से लेकर अभी तक के सफर के बारे में बताएँ? - सन् 2005 में पहली बार लद्दाख का सफर किया था। 2008 में तीन बार सफर कर चुके हैं। अंतिम दौर में दक्षिण अफ्रीका का भ्रमण किया था। संस्था द्वारा आयोजित समारोह में, विदेश से आने वाली एनआरआई महिलाएँ भी भाग ले रही हैं। यह संस्था दोस्ती के रंग में परिवर्तित हो रही हैं। सन् 2009 में वाओ संस्था ने स्केंडिनेविया में क्रूस सफर का आयोजन निश्चित किया है।