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Last Updated : बुधवार, 14 अगस्त 2024 (14:46 IST)

15 अगस्त पर विशेष : वीरांगना नीरा आर्य के बलिदान की कहानी

15 अगस्त पर विशेष : वीरांगना नीरा आर्य के बलिदान की कहानी - Special article on 15 August
Neera Arya
 

 
Highlights  
 
* 15 अगस्त पर जानें वीर नीरा आर्य की कहानी। 
* आजाद हिंद फौज की महान वीरांगना के बारे में जानें।
Independence Day : आज 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस पर हम आजाद हिंद फौज की उस वीरांगना कि बलिदान की कहानी सुनाने जा रहें हैं, जिसे स्वर्गीय नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने द्वारा गठित आजाद हिन्द फौज की पहली महिला जासूस का दर्जा दिया था। यह उतनी बड़ी बात फिर भी नहीं थी, जितनी कि खास बात यह थी कि इस नीरा आर्य नामक महिला ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जान बचाने के लिए अपने ब्रिटिश पुलिस में सीआईडी के पद पर कार्यरत पति को चाकू घोंपकर मार डाला था। 
 
मातृ भूमि की रक्षा और देश को फिरंगियों की हुकूमत से आजाद कराने की दीवानी इस महिला को स्वतंत्रता मिलने के बाद न तो कोई पेंशन मिली, न कोई अन्य सरकारी सहायता दी गई।  बेहद गरीबी में हैदराबाद स्थित एक गली में उन्होंने फूल बेचकर अपनी कष्टप्रद जिंदगी गुजार दी और जब उनका निधन हुआ, तो उनका दाह संस्कार भी हैदराबाद के साथ दक्षिण भारत के प्रमुख हिंदी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के एक स्थानीय पत्रकार ने किया। 
 
नीरा आर्य की कहानी सुनाना अब इसलिए भी जरूरी है कि पिछले कुछ सालों से भारतीय महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में अपनी कमियाबियों के परचम लहरा रहीं है। जुमले में इसे स्त्री सशक्तिकरण कहा जा रहा है, लेकिन आजादी के आंदोलन के वक्त इस तरह की कोई सरकारी जुमलेबाजी नहीं होती थी।

तब भी राष्ट्र-भक्ति का जज्बा ऐसा था कि नीरा आर्य जैसी कुछ महिलाएं आत्मप्रेरणा से ही किसी भी वक्त देश को गुलामी से आजाद कराने के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार रहती थीं।  अफसोसजनक बात यह है कि नीरा आर्य की कहानी खासकर हमारी युवतियों तक अच्छे से नहीं पहुंची है।
दरअसल नीरा आर्य ने अपनी जीवनी भी लिखी है, जिसका नाम है 'मेरा जीवन संघर्ष'। नीरा को सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस ने अपनी आजाद हिन्द फौज की महिला विंग रानी झांसी रेजीमेंट में एक सिपाही के रूप में सम्मिलित किया था। संभव है आप लोगों ने जासूसी के कई हैरतअंगेज कारनामे सुने होंगे, लेकिन नीरा आर्य ने जो कुछ सहा उसे पढ़कर आज भी आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। रूह कांप उठेगी। अंग्रेजों के प्रति गुस्से और घृणा का सैलाब फूट पड़ेगा और आंखों से आंसू नहीं, खून नहीं, लावा बहने लगेगा। 
 
नीरा आर्य की रगों में देशप्रेम इस कदर कूट-कूट कर भरा था कि अंग्रेजों के हर जुल्म के बाद वे एक नए हौसले के साथ अंग्रेजों को चुनौती देती थी। जब नीरा आर्य को आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजीमेंट में शामिल किया गया, तो अंग्रेज लाट साहबों का भारतीयों पर जुल्म चरम पर था। वे हमारे लोगों को मार-काट रहे थे, झाड़ों पर फांसी के फंदे बनाकर टांग रहे थे जिसकी वजह से खासकर उत्तर प्रदेश में तो कभी झाड़ों की कमी तक पड़ गई थी। और जो देश उस वक्त सोने की चिड़िया कहलाता था (गोल्ड बर्ड) उसका सारा खजाना लूटकर फिरंगी अपने देश ले जा रहे थे।
 
नीरा का जन्म 5 मार्च 1902 को उत्तर प्रदेश स्थित बागपत के निकट खेखड़ा नामक नगर में हुआ था। खास तौर पर नोट करें कि वे कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार से ताल्लुक नहीं रखती थी, बल्कि उनके खानदान का व्यापार-व्यवसाय, तो खेखडा कस्बे के अलावा कोलकाता में फल-फूल रहा था। नीरा की इसीलिए कोलकाता में ही परवरिश हुई।

अत्यंत प्रतिभाशाली इस लड़की ने हिंदी, बंगाली, संस्कृत, अंग्रेजी, समेत अन्य तमाम भाषाएं सीखी, लेकिन एक बड़ा अवरोध सामने था। उनके पिताजी अंग्रेजों से बड़े प्रभावित थे। इसके चलते नीरा की शादी अंग्रेज सरकार के वफादार सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जय रंजन दास से करवा दी गई। उसके बावजूद नीरा अपने पति की बजाए अपने वतन को ही ज्यादा तवज्जोह देती थी। 
 
उधर, उनके पति अंग्रेजों के प्रति पूरी तरह वफादार थे। प्रमाण मिलते है कि नीरा आर्य ने कभी एक लेख लिखा था, जिसमें संदर्भ आया था कि मेरे साथ बर्मा (अब म्यांमार) की रहने वाली एक और लड़की सरस्वती राजमणि भी थी। वो मुझसे उम्र में छोटी थी। हम दोनों मिलकर कोशिश करते थे कि किसी तरह अंग्रेजों ने घर में घुसे और उनकी जासूसी करके गुप्त सूचनाएं अपने नेता सुभाष बाबू तक पहुंचाएं। इसके लिए हम दोनों ने लड़कों की वेशभूषा पहन ली थी।
 
उनके पति को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की हत्या करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी। एक दिन मौका देखकर उनके पति ने नेताजी पर फायर किया। गनीमत रही कि नेताजी तो किसी तरह बच गए, लेकिन गोलियां उनके ड्राइवर को लगी। इसी बीच नेताजी को बचाने के लिए नीरा ने जो काम किया वो दुनिया के इतिहास में शायद अपने तरह का अकेला उदाहरण है।
नीरा ने पतिव्रता होने के बजाए वतन की आजादी को चुना और पलटकर अपने पति को चाकू घोंपकर मार डाला। नीरा आर्य ने अपनी जीवनी में लिखा है कि जब उन्होंने अपनी पति की ही हत्या कर दी तो पहले उन्हें कोलकता की जेल में रखा गया। उसके बाद उन्हें अंडमान में काला पानी की सजा हुई, जहां उन्हें एक अंधेरी काल कोठरी रखा गया। उन्हें यातनाएं देने के दौरान बार-बार उनसे नेताजी सुभाषचंद्र बोस का सुराग देने की बात पूछी जाती रही। 
 
बता दें कि तब तक एक विमान दुर्घटना में सुभाष बाबू का निधन हो चुका था। नीरा को ये भी लालच दिया गया कि यदि वे नेताजी का पता बता देंगी तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा, लेकिन जंजीरों में बंधी नीरा ने आखिरी सांस तक देश से गद्दारी नहीं की। वे जेलर को हरदम यही जवाब देती रही कि नेताजी की तो हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है।
 
अंग्रेजों में नेताजी का खौफ बरकरार था। एक बार पूछताछ के दौरान नीरा ने कह दिया कि नेताजी जो मेरे दिल और दिमाग में बसे हुए हैं। इस पर ताव खाकर जेलर ने कहा कि हम तुम्हारे दिल को चीरकर देखेंगे कि नेताजी कहां छुपे हैं। वाकई ऐसा हुआ भी। जल्लाद जेलर ने एक लुहार को कहकर उनके दाएं स्तन को दबाकर कटवाना शुरू कर दिया। नीरा मारे दर्द के चीखती रही, लेकिन फिरंगियों के दिल में दया या करुणा नाम की चीज कभी थीं ही नहीं। जेलर ने नीरा का दूसरा स्तन भी कटवा दिया। फिर भी दर्द से कराह रही नीरा ने मुंह तक नहीं खोला।
 
उलटे एक बार उन्होंने बदतमीजी से बात करने वाले लुहार के मुंह पर थूक तक दिया। देश की व्यवस्था या तंत्र की दुर्दशा देखिए कि आजादी के बाद नीरा आर्य ने हैदराबाद के एक मोहल्ले में फूल बेचकर जीवन यापन करती रही। और तो और उनकी आत्मकथा को आपातकाल में प्रतिबंधित भी कर दिया गया था। विभिन्न बीमारियों से ग्रसित नीरा आर्य हैदराबाद के उस्मानिया अस्पताल में 26 जुलाई 1998 को चल बसीं। 
 
बता दें कि सुभाष बाबू ने नीरा का नाम उनके द्वारा पति की ही हत्या करने के कारण 'नागिनी नीरा' रख दिया था। इस वीरांगना का दाह संस्कार भी स्थानीय प्रशासन या संगठन ने नहीं, बल्कि एक हिंदी बहुसंस्करणी अखबार के हैदराबाद स्थित संवाददाता तेजपाल सिंह धामा ने चंदा जुटा कर किया। जान लेना यह भी जरूरी है कि नीरा के सगे भाई वसंत कुमार भी आजाद हिन्द फौज में सिपाही थे। 
 
दोनों के बलिदान पर कई लोकगीत, भजन, गीत आदि की रचनाएं हुई हैं। नीरा आर्य पर एक महाकाव्य भी लिखा गया है। उनके जीवन वृत पर एक फिल्म भी बनना प्रस्तावित थी। उनके जन्मस्थल पर आगे चलकर एक स्मारक स्थापित जरूर किया गया, लेकिन जीते जी तो देश के लिए इतनी कुर्बानी देने वाली वीरांगना के प्रति सरकार या किसी जवाबदार संस्था ने उफ तक नहीं की। 
 
हार्दिक श्रद्धांजलि। 
 
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