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Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 13 अगस्त 2024 (18:17 IST)

15 August Independence Day: आजादी के दुरुपयोग के कारण कट्टरवाद और तानाशाही की ओर जाता देश

15 August Independence Day: आजादी के दुरुपयोग के कारण कट्टरवाद और तानाशाही की ओर जाता देश - 78th Independence Day Special Story
Independence Day Special Story: आजादी का 77वां वर्ष पूर्ण हो गए हैं और अब 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। आजादी का अर्थ है स्वतंत्रता। हम आजादी इसलिए मनाते हैं क्योंकि हम कभी गुलाम थे। मुगल काल में तानाशाहों की यातनाओं का सामना करना पड़ता था और अंग्रेज काल में हमें गुलाम रहकर अंग्रेजों की बातों को मानकर चलना होता था। दोनों ही काल की हमने बहुत भारी कीमत चुकाई है तभी तो दोनों काल से मुक्ति की प्रार्थना के साथ संघर्ष किया है।
 
करीब 800 वर्षों के संघर्ष के बाद हमने विभाजन की त्रासदी झेली और अंतत: स्वतंत्र हो गए। स्वतंत्र लोग ही खुद को अच्छे से विकसित करके व्यक्त करने की क्षमता रखते हैं। आजादी के 78 वर्षों में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति करके खुद को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्थापित करके हर क्षेत्र में साबित किया है। यह बहुत लंबा सफर था। हमने देखा है कि हमसे अलग होकर जो देश बने उन्होंने स्वतंत्रता और लोकतंत्र की कभी कद्र नहीं की, सिर्फ सत्ता की लालसा ही रखी। उन्होंने राष्ट्र से ऊपर अपने राजनीतिक स्वार्थ और धर्म को ही रखा है जिसके चलते वे दोनों देश आज बर्बादी की कगार पर खड़े हैं। 
 
लेकिन हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि भारत के कुछ राजनीतिक दल देश से ऊपर अपनी पार्टी, स्वार्थ और सत्ता को रखने के चलते तुष्टिकरण, सांप्रदायिकता, जातिवाद, कट्टरवाद और प्रांतवाद को बढ़ावा देती रही है। यही आजादी का दुरुपयोग माना जाएगा। आजादी के इतने वर्ष के बाद भी सांप्रदायिकता, कट्टरता, फ्रीडम ऑफ स्पीच के दुरुपयोग और राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के चलते अब देश में एक वर्ष के मन में असंतोष भी भावनाभरकर उन्हें आंदोलन के लिए उकसाया जा रहा है। यह हमारे देश के भविष्य के लिए उचित नहीं है। संपूर्ण विकास, स्वतंत्रता और देश की शांति एक झटके में इन दुष्‍ट राजनीतिज्ञों के द्वारा खत्म की जा सकती है।
 
क्या तानाशाही होना जरूरी है?
हम जब अपनी आजादी का दुरुपयोग करते हैं तो यह माना जाता है कि लोकतंत्र असफल हो रहा है। सभी जिम्मेदार लोग मनमानी करने लगे और तब किसी को न्याय नहीं मिले तो अधिकतर जनता सोचने लगती है कि इससे तो अच्छी गुलामी थी। ऐसी सोच जब होने लगे तो कुछ पार्टियां इस सोच को बढ़ावा देकर अपने राजनीतिक हितों को साधने में लग जाती है। सचमुच आजादी का दुरुपयोग ही कुछ लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि तानाशाही या धार्मिक कट्टरपंथ होना जरूरी है। ऐसे लोग दक्षिणपंथी या वामपंथी भी हो सकते हैं। 
 
हर वर्ग में तानाशाही, कट्टरपंथी या तालिबानी सोच होती है। ये सभी लोग यह सोचते हैं कि सबकुछ हमारे हिसाब से ही तय होना चाहिए। सबकुछ कुछ लोग ही तय करेंगे तो फिर लोकतंत्र कहां रहेगा? फिर तो गुलामी ही रहेगी। वह गुलामी किसी अंग्रेज की हो या खुद को धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले लोगों की हो, क्योंकि अच्छे शब्दों से कोई अपने भीतर के तानाशाह को छुपा जरूर सकता है परंतु सत्ता में जाकर वह वही कार्य करता है जो एक तानाशाह करता है, परंतु सभ्य तरीके से।
 
बड़ी मुश्किल से धार्मिक कट्टरता से मिली है मुक्ति:
एक दौर था जबकि ईसाई जगत में कट्टरता फैली हुई थी। उस दौर में सबकुछ चर्च ही तय करता था। उस दौर में कोई भी व्यक्ति चर्च या राज्य के खिलाफ सच या झूठ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था। परंतु इस फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए कई लोगों को बलिदान देना पड़ा और तब जाकर ईसाई जगत को समझ में आया कि व्यक्तिगत स्वतं‍त्रता, मानवाधिकार और मनुष्‍य के विचार की रक्षा कितनी जरूरी है। उन्होंने धर्म से ज्यादा मानवाधिकार और लोकतंत्र को महत्व दिया।
 
गैलीलियो जैसे पूर्व के कई वैज्ञानिकों के बारे में उदाहरण दिया जा सकता है कि उस दौर में चर्च का किस तरह से कोप झेलना होता था। परंतु यह खुशी की बात है कि ईसाई जगत यह बात समझ गया और उन्होंने दुनिया को आधुनिक और सभ्य बनाने की दिशा में काम करना प्रारंभ किया। हालांकि आज भी ऐसे कई मुल्क है जो धार्मिक कानून को महत्व देते हैं और ईशनिंदा के सच्चे या झूठे आरोप लगाकर लोगों को मौत की सजा दे देते हैं। इन मुल्कों में फ्रीडम ऑफ स्पीच या लोकतंत्र के महत्व को लेकर कोई बहस नहीं होती है। यही हाल चीन और उत्तर कोरिया जैसे कम्युनिस्ट राष्ट्रों का भी है।
 
भयानक था राजाओं का शासन:
मध्‍यकाल में बादशाह, राजा और धर्म के बारे में अपने नकारात्मक विचार व्यक्त करना फांसी के फंदे पर झुलने जैसा था, जबकि राजा या धर्म के ठेकेदार यदि कुछ गलत कर रहे हैं तो उनकी आलोचना करना भी राज्य की जनता का कर्तव्य होता है। यह समस्या भारत में भी प्राचीन काल से रही है। औरंगजेब ने कई लोगों सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वे उसकी बात नहीं मानते थे। चाणक्य के पिता चणक ने जब मगध के राजा को उसके दुराचारि होने की बात कही तो उनके सिर को काटकर चौराहे पर लटका दिया गया था।
 
बहुत जरूरी है लोकतंत्र को बचाना: 
जब से आधुनिक युग का प्रारंभ हुआ लोकतंत्र और मानवाधिकरों की रक्षा के विषय में भी तेजी से सोचा जाने लगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत ही जरूरी है फ्रीडम ऑफ स्पीच और अपने तरीके से जीवन जीने के अधिकार का होना। राजनीतिज्ञ यदि कुछ गलत करते हैं तो उनकी गलती के बारे में मौन रहना क्या अपने ही राज्य को कमजोर करना नहीं माना जाएगा?
 
सकारात्मक आलोचना से ही लोकतंत्र निखरता है और कोई राज्य, राजा या धर्म मजबूत होता है। अमेरिका और योरपीय समाज का शक्तिशाली होना इस बात का सबूत है कि वहां पर फ्रीडम ऑफ स्पीच, मानवाधिकार और अपने तरीके से जीवन जीने की स्वतंत्रता को बहुत महत्व दिया गया जिसके चलते समाज प्रगतिशील और प्रयोगवादी बना। आज वहां का हर बच्चा विज्ञान व तकनीक के बारे में सोचता है जबकि अभी भी मध्यकाल में जी रहे राष्ट्र में से साइंस के एक भी नोबेले प्राइज को निकालना बहुत ही अचरज की बात होगी।
 
यदि विकासशिल देश मीडिया और सोशल मीडिया से घबराकर यह तय करने लगेंगे कि हमें 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' पर लगाम लगाना चाहिए तो आप शर्तिया यह मान लीजिये की मानव जाति रिवर्स गियर लगाना प्रारंभ कर देगी और आने वाले पचास वर्षों में हम मध्यकाल में होंगे। प्रत्येक व्यक्ति यह बात अच्छे से समझ लें कि विज्ञान ने हमें हर तरह से सुविधा, संपन्न और स्वतंत्र किया है परंतु धर्म के ठेकेदारों ने हमारी सोच को हमेशा ही संकुचित बनाए रखने का ही प्रयास किया है। बुद्धि के बड़े संघर्ष के बाद ही स्वतंत्र विचार को प्राप्त किया जा सकता है और दुनिया को सभ्य और समझदार बनाया है तो स्वतंत्र विचारकों ने भी बनाया है। हमें धर्म और अधर्म के फर्क को समझना होगा।
 
यह प्रत्येक व्यक्ति को समझना चाहिए कि वह ' आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का दुरुपयोग नहीं करें क्योंकि यह स्वंत्रता सैंकड़ों वर्षों के बाद और सैंकड़ों लोगों के बलिदान के बाद प्राप्त हुई है। वह भी कुछ ही मुल्कों में है। इसकी कदर करें अन्यथा हम मध्यगुम में जीने के लिए मजबूर होंगे। जैसा कि आज पाकिस्तान,  बांग्लदेश, म्यांमार, अफगानिस्तान और इराक जी रहा है। बहुत जल्द यूक्रेन और फिलिस्तीन, रशिया और इजरायल भी इसी राह पर चले जाएंगे। 
 
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