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जब स्त्रियों ने उठाई बंदूकें
गुरुवार,जनवरी 24, 2008
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
मोहल्ले में लोग आज़ादी की 60वीं वर्षगाँठ की तैयारी में लगे हुए थे। बीच चौराहे पर चमकता-लहराता तिरंगा गाड़ दिया गया था। शर्माजी भी आज ही के दिन अपने 60 वर्ष पूरे कर रहे थे। उस 15 अगस्त को देश में आज़ादी आई और शर्माजी दुनिया में आए थे।
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
उपलब्धियों का दूसरा चेहरा स्त्री के वस्तुकरण, उसे उत्पाद और भोग की वस्तु बना दिए जाने की शक्ल में भी सामने आया है, लेकिन इससे उपलब्धियों का वजन कम नहीं हो जाता
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
आज भी सरकारें अपनी राजधानी से स्वतंत्रता दिवस के आयोजन का फरमान निकालती हैं, जो जिला मुख्यालय से तहसील स्तर की पंचायतों तक पहुँचता है और आखिर तिरंगा भी फहरा दिया जाता है
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इतिहास साक्षी है कि एक कट्टर रूढिवादी हिंदू समाज में इसके पहले इतने बड़े पैमाने पर महिलाएँ सड़कों पर नहीं उतरी थीं। पूरी दुनिया के इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
उनमें सामाजिक शिष्टाचार का भी अभाव था। शिक्षा का प्रसार नहीं था, महिलाओं की स्थिति शोचनीय थी। अँग्रेजों ने जब अपने साम्राज्य का विस्तार किया, तो इन कमजोरियों का भरपूर लाभ उठाया
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
देश की आजादी का जिक्र हो और राष्ट्रपिता का स्मरण न आए, यह तो असंभव है। बापू भारत की आत्मा में बसते हैं और जब तक भारतरूपी इस महान राष्ट्र की आत्मा जीवित रहेगी, तब तक इसके अंतर्मन में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का स्तुतिगान
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या करने वाले हत्यारे नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर, 1948 में फाँसी की सजा दी गई थी
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
आजाद भारत के साथ-साथ हिंदी सिनेमा ने भी 60 वर्षों का सफर पूरा किया है। इस पूरे दौर में सिनेमा ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे और महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अपने खाते में दर्ज कीं। समय के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सुर और मुखर हुए।
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’, इस नारे को देश की आजादी के लिए ब्रहृम वाक्य का रूप देने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए देश से बाहर रहकर संघर्ष किया। उनकी वाणी इतनी तेजस्वी थी कि उनकी एक अपील पर हजारों लोग
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आजादी के संग्राम के नायक और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यह स्वप्न, शायद स्वतंत्रता मिलने के कुछ समय पहले से ही आजाद भारत को विकासशीलता के आसमान के दूसरे सिरे तक पहुँचाने के लिए देखा होगा। आज जब हम विश्व के प्रबुद्ध
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
ये आत्मा तो अजर-अमर है निसार तन-मन स्वदेश पर है
है चीज क्या जेल, गन, मशीनें, कजा का भी हमको डर नहीं है।
न देश का जिनमें प्रेम होवे, दु:खी के दु:ख से जो दिल न रोए,
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
आजादी के साठ वर्षों में हमारा देश बहुत से उतार-चढ़ावों से गुजरा है। इन वर्षों में जहाँ हमने ढेरों उपलब्धियाँ हासिल कीं, वहीं दूसरी ओर पीड़ा और दुर्दिनों का भी सामना किया। आजादी के इन साठ वर्षों में हमारे देश के इन दोनों चेहरों पर एक नजर :
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
ऐसा कवि ने कहा है, और उसकी पंक्तियाँ अक्सर उद्धृत की जाती हैं। यह सही है कि पूरब या कम-से-कम उसका वह हिस्सा, जिसे हिंदुस्तान कहते हैं, विचार में डूबना पसंद करता रहा है, और अक्सर उन बातों पर विचार करने का उसे शौक रहा है,
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
‘विश्व में स्वतंत्रता से प्रेम करने वाले सभी लोग आपके इस जश्न में भागीदार होना चाहेंगे क्योंकि सत्ता के हस्तांतरण पर हमारी आपसी सहमति लोकतंत्र
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
काँग्रेस अधिवेशन समाप्त हुआ, पर मुझे तो दक्षिण अफ्रीका के काम के लिए कलकत्ते में रहकर चेंबर ऑफ कॉमर्स इत्यादि मंडलों से मिलना था। इसलिए मैं कलकत्ते में एक महीने तक ठहरा। इस बार मैंने होटल में ठहरने के बदले परिचय प्राप्त करके ‘इंडिया क्लब’ में ठहरने
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
बहुत वर्ष हुए, हमने भाग्य से एक सौदा किया था, और अब अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का समय आ गया है। पूरी तौर पर या जितनी चाहिए उतनी तो नहीं, फिर भी काफी हद तक। जब आधी रात के घंटे बजेंगे, जबकि सारी दुनिया सोती होगी, उस समय भारत जागकर...
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भारतीय सिनेमा ने सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दशकों से राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत उद्देश्यपूर्ण फिल्में
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आजादी का जश्न साल भर जारी रहेगा क्योंकि साठ साल की उम्र में देश फिर से जवान होने लगा है। तमाम तरह के तराने-गाने अथवा कशीदा काढ़ने के स्थान पर हमने अपनी तीसरी आँख से सिनेमा के गुजरे साठ सालों को मनोरंजक अंदाज
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शुक्रवार,जनवरी 11, 2008
इक्कीस साल की स्मृति कहती है कि उनके लिए आजादी के मायने हैं, अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने की आजादी। अपनी बात को समझाते हुए वह आगे कहती हैं कि जिस व्यक्ति के साथ हमें अपनी सारी जिंदगी बीतानी है, उसे चुनने की आजादी हमें मिलनी चाहिए।
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