मीठे द्रव्य, मिठाई, गरिष्ठ पदार्थों का अति सेवन करने, विरूद्ध आहार लेने, दिन में सोने और अपच के कारण पेट में कृमि पैदा हो जाते हैं। बच्चों को यह शिकायत ज्यादा रहती है।
कृमि रोग हो जाने से अग्नि मंद पड़ जाती है, शरीर कमजोर और चेहरा पीला पड़ता जाता है। कुछ खा लेने पर शक्ति मालूम देती है। मुँह में बार-बार पानी आता है, पेट दर्द, गुदा में तेज खुजली, हृदय में पीड़ा और छाती में बेचैनी होना कृमि होने के लक्षण हैं।
चिकित्सा : नागरमोथा, देवदार, दारुहल्दी, वायविडंग, पीपल, हरड़, बहेड़ा और आँवला 100-100 ग्राम लेकर जौ कूट कर शीशी में भर लें। एक गिलास पानी में 10 ग्राम चूर्ण डालकर उबालें। इसे सोने से पहले पिएँ। कुछ दिन यह प्रयोग करने से पेट के अंदर के सब प्रकार के कृमि नष्ट होकर मल के साथ निकल जाते हैं।
दूसरा नुस्खा : बाजार से कृमि कुठार रस और विडंगारिष्ट ले आएँ। कृमि कुठार रस 1-1 रत्ती सुबह-शाम शहद के साथ लेना चाहिए। भोजन के बाद 2-2 चम्मच विडंगारिष्ट आधा कप पानी में डालकर पीना चाहिए। तीन दिन बाद कब्जनाशक कोई अच्छा चूर्ण एक चम्मच गर्म पानी के साथ रात को सोते समय लें, इससे सब प्रकार के कृमि नष्ट हो जाते हैं।