मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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इंदौर में 1950 में हुआ था पहला स्थानीय निकाय चुनाव, तब महज 22 वार्ड हुआ करते थे

इंदौर में 1950 में हुआ था पहला स्थानीय निकाय चुनाव, तब महज 22 वार्ड हुआ करते थे - first local body elections were held in Indore in 1950
आजादी के बाद इंदौर की जनता ने स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव के रूप में नगर सेविका (इंदौर म्युनिसिपलिटी) के चुनाव में मतदान का उपयोग किया। इंदौर मध्यभारत की प्रथम श्रेणी की नगर पालिका थी। इंदौर की जनता के लिए यह गर्व की बात है कि उन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा को वोट डालकर लोकत्रांत्रिक प्रक्रिया का श्रीगणेश किया था।
 
1950 में नगर निगम में मतदाताओं की संख्या 1 लाख 152 हजार थी, वार्डों की संख्या 22 थी। इस तरह नगर 22 वार्डों में विभाजित था। नगर का क्षेत्रफल 1951 की जनगणना के अनुसार 21.23 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 3 लाख 10 हजार 859 थी। तब नगर की साक्षरता दर 1951 में 36.18 प्रतिशत थी। जाहिर है शिक्षा का प्रसार बहुत कम था।
 
1950 के नगर पालिका चुनाव के वक्त राज्य सरकार और नेता मध्यभारत की राजधानी निर्माण और मध्यभारत विशवविद्यालय की स्थापना के सिलसिले में अपने दावे और हक की लड़ाई में व्यस्त थे। 22 वार्डों के चुनाव में खड़े हुए उम्मीदवारों की संख्या 79 थी। कांग्रेस ने 20 (2 उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए थे) वअन्य यानी स्वतंत्र दलों ने 101 उम्मीदवार खड़े किए थे। स्वतंत्र पार्टी में हिन्दू सभा, कम्युनिस्ट पार्टी एवं जनवादी मोर्चा शामिल थे।
 
नगर पालिका के चुनाव में नगर के कई प्रसिद्ध नेता अपना भाग्य आजमा रहे थे। कांतिलाल पटेल, लक्ष्मण सिंह चौहान, होमी दाजी, रामनारायणजी शास्त्री, किशोरीलाल गोयल, माधव खुटाल, डॉक्टर केलकर, मेहरुनकर साहब, प्रोफेसर पीडी शर्मा और प्रोफेसर जयदेव प्रसाद दुबे चुनाव मैदान में थे।
 
1950 में चुनाव प्रचार का भी एक अलग ही आनंद था। मतदान के दिन तक लाउडस्पीकर आदि से प्रचार पर प्रतिबंध नहीं था। नतीजा यह हुआ था कि मतदान के दिन सुबह 5.30 बजे से ही लाउडस्पीकर लगे तांगे और मोटर द्वारा प्रचार जोरदार तरीके से किया गया। इस चुनाव में 1 लाख 15 हजार मतदाताओं में से 35 हजार 577 ने मतदान किया, जो 30.94 यानी करीब 31 प्रतिशत था। बहुत ही कम मतदान इस बात का सूचक हैं कि मतदाताओं ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई।
 
इस चुनाव में एक और रोचक बात यह थी, जो वोट डालने की मतपेटियों से जुड़ी है। साक्षरता की दर कम होने से मतपेटियां भी रंगीन होती थीं, जो अलग-अलग पार्टी की होती थीं। प्रत्येक दल प्रचार में अपने रंग की मतपेटी में वोट डालने की अपील करता था।
 
पहली नगर पालिका के चुनाव में कांग्रेस के 16 और स्वतंत्र दलों के 6 उम्मीदवार विजयी रहे थे। लक्ष्मण सिंह चौहान अपने प्रतिद्वंद्वी लालाराम आर्य, जो उस दौर के नगर के प्रसिद्ध नेता थे, से 1,000 ज्यादा मत प्राप्त कर विजयी रहे थे। बी.वी. सरवटे निर्विरोध विजयी रहे थे। श्री माधव खुटाल, प्रो. पी.डी. शर्मा से 19 मतों से पराजित हो गए थे। होमी दाजी को मात्र 294 मत ही प्राप्त हुए थे।
 
जनसंघ के रामनारायण शास्त्री ने कांग्रेस के उम्मीदवार को पराजित किया था, वहीं किशोरीलाल गोयल चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में कुछ वार्ड ऐसे थे, जहां खड़े उम्मीदवार को कोई मत ही नहीं मिला, कुछ को 1-2 मत ही प्राप्त हुए थे। इस तरह पहले नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस की झोली में सत्ता की बागडोर प्राप्त हुई थी।