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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 (17:49 IST)

क्या है स्वर्ण कलश का रहस्य जिसके दम पर चीन बनाना चाहता है अपना दलाई लामा?, समझिए चालक ड्रैगन की चाल

china and dalai lama history
china on dalai lama:तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु, दलाई लामा का चयन सदियों से एक पवित्र और गहन प्रक्रिया रही है। यह प्रक्रिया, जो गहन आध्यात्मिक खोज और संकेतों पर आधारित है, बौद्ध भिक्षुओं द्वारा संचालित की जाती है। लेकिन हाल के वर्षों में, चीन ने इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है, एक ऐसे "स्वर्ण कलश" की बात करके जिससे वह अपना "दलाई लामा" चुनने का दावा करता है। क्या है यह स्वर्ण कलश और ड्रैगन की इस चाल के पीछे क्या छिपा है? आइए इस विषय की गहराई में उतरते हैं।

दलाई लामा का पारंपरिक चयन: पुनर्जन्म का रहस्य
परंपरागत रूप से, जब एक दलाई लामा का निधन होता है, तो वरिष्ठ लामाओं का एक समूह उनके पुनर्जन्म का पता लगाने के लिए विभिन्न संकेतों और भविष्यवाणियों का उपयोग करता है। इसमें बच्चे की पहचान करना शामिल है जो पूर्व दलाई लामा के व्यक्तित्व और स्मृतियों को साझा करता हो। इस पहचान के बाद, बच्चे को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है और वह तिब्बती बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक प्रमुख बन जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से आध्यात्मिक और तिब्बती परंपराओं पर आधारित है, जिसमें किसी बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।

सोने का कलश जो अब चीन के पास है
ऐतिहासिक रूप से, कभी-कभी दो या अधिक बच्चों में समान रूप से दलाई लामा के पुनर्जन्म के लक्षण पाए जाते थे। ऐसे मामलों में, सोने के कलश (Golden Urn) का उपयोग किया जाता था। इसमें संभावित उम्मीदवारों के नाम की पर्चियां डाली जाती थीं, और एक पवित्र समारोह के बाद एक पर्ची निकाली जाती थी। जिस बच्चे का नाम निकलता था, उसे दलाई लामा घोषित किया जाता था। यह स्वर्ण कलश अब चीन के पास है। चीन का दावा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन इस स्वर्ण कलश, जिसे किंचेन के नाम से भी जाना जाता है, में पर्चियां डालकर किया जाना चाहिए, जिस पर विभिन्न उम्मीदवारों के नाम लिखे हों। चीन का तर्क है कि यह प्रथा किंग राजवंश के समय से चली आ रही है और यह दलाई लामा के चयन की वैध विधि है।

लेकिन तिब्बती बौद्ध और अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक चीन के इस दावे को सिरे से खारिज करते हैं। वे इसे तिब्बती धार्मिक मामलों में चीन के हस्तक्षेप और तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करने की एक चाल मानते हैं। स्वर्ण कलश की यह प्रथा वास्तव में 18वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई थी, जब चीन के किंग सम्राटों ने कुछ तिब्बती लामाओं के चयन में भूमिका निभाई थी। हालांकि, दलाई लामा और पंचेन लामा जैसे सर्वोच्च लामाओं के चयन के लिए इसका उपयोग शायद ही कभी किया गया हो, और यह तिब्बती परंपरा का केंद्रीय हिस्सा कभी नहीं रहा है।

ड्रैगन की क्या है चाल?
चीन का उद्देश्य स्पष्ट है। वह तिब्बती बौद्ध धर्म पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता है और एक ऐसा दलाई लामा नियुक्त करना चाहता है जो बीजिंग के प्रति वफादार हो। वर्तमान दलाई लामा, चीनी शासन के खिलाफ तिब्बत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतीक हैं। चीन चाहता है कि उनके निधन के बाद, उनका उत्तराधिकारी चीन के नियंत्रण में हो, ताकि तिब्बती लोगों पर उसका प्रभाव कम हो सके और तिब्बत पर उसकी संप्रभुता को चुनौती न दी जा सके।

यह ड्रैगन की एक बड़ी भू-राजनीतिक चाल है। दलाई लामा न केवल तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता हैं, बल्कि दुनिया भर में बौद्ध धर्म के लाखों अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उन पर नियंत्रण हासिल करके, चीन न केवल तिब्बतियों को कमजोर करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेगा।

आगे क्या?
14वें दलाई लामा ने स्वयं स्पष्ट किया है कि उनके उत्तराधिकारी का चयन तिब्बती परंपरा और आध्यात्मिक प्रक्रिया के अनुसार होगा, जिसमें चीन का कोई हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि हो सकता है कि उनका पुनर्जन्म तिब्बत के बाहर हो।

स्वर्ण कलश की चीनी अवधारणा तिब्बती लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान पर सीधा हमला है। यह देखना बाकी है कि अगले दलाई लामा के चयन को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और तिब्बती लोग कैसे प्रतिक्रिया देते हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि चीन की यह चाल केवल सत्ता और नियंत्रण हासिल करने का एक प्रयास है, न कि कोई धार्मिक परंपरा।
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