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Written By WD Feature Desk

क्यों मनाते हैं भीष्म द्वादशी, जानें मान्यता, महत्व और पूजन का शुभ समय

Bhishma Dwadashi 2024 I क्यों मनाते हैं भीष्म द्वादशी, जानें मान्यता, महत्व और पूजन का शुभ समय - Bhisma Dwadashi 2024 Date
Bhishma Dwadashi 2024 
 
 
HIGHLIGHTS
 
• भीष्म द्वादशी की सही तारीख और मुहूर्त।
• क्यों मनाई जाती है भीष्म द्वादशी।
• भीष्म/ तिल द्वादशी पर श्रीहरि विष्णु का पूजन तिल से किया जाता है।
Bhishma Dwadashi: धार्मिक शास्त्रों के अनुसार कालांतर से माघ शुक्ल द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की उपासना की जाती रही है। हिन्दी पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्माष्टमी तथा इसके 4 दिन पश्चात यानी माघ शुक्ल द्वादशी को भीष्म द्वादशी पर्व मनाया जाता है। कैलेंडर के मतांतर के चलते वर्ष 2024 में भीष्म द्वादशी पर्व 20 और 21 फरवरी को यानी दोनों ही दिन मनाया जा सकता है। 
 
मान्यताएं और महत्व- मान्यता के अनुसार द्वादशी तिथि पर पितृ तर्पण, पिंड दान, ब्राह्मण भोज तथा गरीब, असहायों को दान-पुण्य करना उत्तम फलदायी माना गया है। मान्यतानुसार यह व्रत रोगनाशक माना गया है। तथा माघ शुक्ल द्वादशी तिथि पर भीष्म पितामह की पूजा करने से पितृ देव प्रसन्न होकर शांति, सुख-सौभाग्य और समृद्धि का आशीष प्रदान करते हैं। इस व्रत को गोविंद द्वादशी तथा तिल बारस/तिल द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है।
 
इस दिन श्रीहरि विष्णु, भीष्म पितामह तथा पितृ देवता की विधि-विधानपूर्वक पूजा करने तथा तिल से हवन करना चाहिए। और प्रसाद में तिल का दान यानी तिल/ तिल से बने व्यंजन, तिल के लड्डू आदि अर्पित करना चाहिए। इस दिन ॐ नमो नारायणाय नम: मंत्र का जाप करना बहुत फलदायी होता है। 
 
हिन्दू धर्मग्रंथों तथा पुराणों के अनुसार महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लेटा दिया था, उस समय सूर्य दक्षिणायन था। तब पितामह भीष्म (Pithmah bhishma) ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हुए माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन प्राण त्याग दिए थे। अत: इसके तीन दिन बाद ही द्वादशी तिथि पर भीष्म पितामह के लिए तर्पण करने और पूजन की परंपरा चली आ रही है। 
 
पुराणों के अनुसार भीष्म द्वादशी व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, तथा पूर्ण श्रद्धा-विश्वास रखकर यह व्रत करने से समस्त कार्यों की सिद्धि होती है।

इस व्रत की पूजा भी एकादशी के उपवास के समान ही की जाती है। भीष्म द्वादशी के दिन सुबह जल्दी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर नहाने के जल में तिल मिलाकर स्नान करने का विशेष महत्व है। फिर भगवान लक्ष्मी-नारायण की पूजा की जाती है तथा भीष्म द्वादशी कथा सुनी या पढ़ी जाती है। इस दिन पूर्वजों का तर्पण करने का विधान है। 
भीष्म द्वादशी के शुभ मुहूर्त : Bhishma Dwadashi Muhurat 2024 
 
20 फरवरी 2024 : मंगलवार का शुभ समय
 
ब्रह्म मुहूर्त- 03.59 ए एम से 04.45 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 04.22 ए एम से 05.32 ए एम
अभिजित मुहूर्त 11.18 ए एम से 12.07 पी एम
विजय मुहूर्त- 01.46 पी एम से 02.36 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05.52 पी एम से 06.16 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 05.53 पी एम से 07.03 पी एम
अमृत काल- 21 फरवरी 03.11 ए एम से 04.55 ए एम तक।
निशिता मुहूर्त- 11.19 पी एम से 21 फरवरी 12.06 ए एम तक। 
त्रिपुष्कर योग- 05.32 ए एम से 21 फरवरी 02.57 ए एम तक।
राहुकाल- दोप. 3:00 से 4:30 बजे तक
 
21 फरवरी 2024 : बुधवार का शुभ समय
 
ब्रह्म मुहूर्त-03.59 ए एम से 04.46 ए एम
प्रातः सन्ध्या-04.22 ए एम से 05.32 ए एम
कोई अभिजित मुहूर्त नहीं है।
विजय मुहूर्त-01.46 पी एम से 02.35 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05.52 पी एम से 06.15 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 05.53 पी एम से 07.03 पी एम
अमृत काल- 22 फरवरी 01.10 ए एम से 02.56 ए एम तक।
निशिता मुहूर्त- 11.19 पी एम से 22 फरवरी 12.06 ए एम तक। 
राहुकाल- दोप. 12:00 से 1:30 बजे तक
 
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