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आपके दो मीठे बोल किसी के जीवन में वसंत-सा वातावरण बना दें, तो समझ लीजिए आपका हृदय पूजा के धूप दान की तरह स्नेह और सौरभ प्रदान करता रहेगा। वाणी के संबंध में आचार्य चाणक्य कहते हैं मधुर वचन बोलने से सब जीव संतुष्ट होते हैं, इसलिए मधुर वचन ही बोलने चाहिए।
वे कहते हैं- वचन में दरिद्रता क्यों? हमेशा प्रिय वचन बोलने वाले देव होते हैं और कू्र भाषी वचन बोलने वाले पशु होते हैं।

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अथर्व वेद के अनुसार मधुर पेशल वचन को साम कहते हैं। 'मधुमन्मे निष्क्रामणं मधुमन्मे परायणम्। वाचा वदामि मधुमद् भूयासं मधुसंदृशः।' अतः पति-पत्नी मधुर वचन बोलें।
भगवान श्रीराम-: 'सर्वत्र मधुरा गिरा' यानी सर्वत्र मधुर बोलें ऐसा कहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी गोपियों के अपने पास आते ही जो अमृत भाषण किया, वह सबके लिए आदर्श है।