नए विचारों को आने दीजिए : मालती जोशी
स्त्री मन को कुशलता से जानने वाली, उसके बर्तन-भांडे चूल्हे-चौके तक पैठ रखने वाली, नारी मन की संवेदनशीलता को उजागर करने वाली और नारी के भोगे हुए यथार्थ को कल्पना का सहारा देकर पाठकों के मन तक पहुँच बना लेने वाली कथाकार श्रीमती मालती जोशी ने साहित्य जगत के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की। नारी के प्रति उनकी संवेदनाओं का ज्यादा रुझान होने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि बचपन में शरत साहित्य बहुत पढ़ा। इस साहित्य में नारी मन का जो चित्रण था, वह जाने-अनजाने अंदर समाहित होता चला गया। यह शुरुआत का ही असर था, जो आज तक बना हुआ है। आज की नारी की स्थिति बहुत बदल गई है, पर कथाओं में आज भी नारी की समस्याओं का चित्रण जारी है? श्रीमती जोशी- स्त्रियों की मूल समस्या आज भी बनी हुई है। आज भी पुरुष उससे 16वीं सदी वाला व्यवहार करता है। आज भी लड़की का विवाह, दहेज प्रथा, स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता, घर और बाहर की जिम्मेदारी ऐसी बातें हैं, जिनमें स्त्री कैद है। स्त्री के प्रति अगर थोड़ी भी संवेदना मेरी कहानियों के माध्यम से पैदा होती है, तो मेरा लक्ष्य पूरा होता है। साहित्य को हाशिए पर धकेले जाने की बात पर उनका कहना था कि आज हर चीज की उपयोगिता अर्थ से तौली जाने लगी है। पढ़ने की आदत कम होती जा रही है, जमाना विजुअल होता जा रहा है। पढ़ना लोगों को वक्त की बरबादी लगता है। पढ़ने के प्रति लोगों की रुचि कम हो गई है या साहित्य का स्तर वैसा नहीं रहा? श्रीमती जोशी- पढ़ने में रुचि कम नहीं हुई है। आज साहित्य में मठाधीशों ने लोकप्रिय साहित्य को चालू साहित्य की श्रेणी में शुमार कर दिया है। इसीलिए सारी उलझन पैदा हो रही है। साहित्य में भाषा के स्तर पर ली जा रही छूट ठीक है। साहित्यकार इस तरह की छूट कथा या उपन्यास के साथ पाठक को एकाकार करने के लिए करता है। ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियों में आज भी अँगरेजी का प्रयोग नहीं होता है, पर जब आप वर्तमान समय की किसी समस्या पर बात करते हुए कहानी लिखते हैं तो उसमें दूसरी भाषा के शब्दों को आने दीजिए। उन्हें रोकिए मत, वरना आपके लेखन और यथार्थ के बीच बड़ी दूरी पैदा हो जाएगी। नए कथाकारों और साहित्यकारों का लेखन देखिए, वे निश्चित रूप से वर्तमान के साथ न्याय करते हुए लिख रहे हैं। संकट जैसी कोई स्थिति नहीं है। हम हमेशा नए लोगों को आगे नहीं आने देते। यह प्रवृत्ति त्यागना चाहिए। हर व्यक्ति की बात सुनने की आदत डालना होगी।