आँखों की ठंडक हो तुम
प्रीति बजाज
बरसों के इंतजार के बाद आई हो, आँचल मेंमहक उठा मेरा घर-आँगन तुम्हारी किलकारियों से।जी उठी मैं फिर तुम्हारी खनकती हँसी सेमेरी ही परछाईं हो तुम, मेरे अधूरे सपनों की पूर्णता हो तुम।हर उम्मीद हो मेरी तुमईश्वर की दी हुई अनमोल सौगात हो तुम।हर राह की मंजिल हो तुमआँखों की ठंडक हो तुम असीम आनंद की अनुभूति हो पर कभी-कभी मन बहुत घबराता हैइस जालिम दुनिया वालों से तुम्हें सहेज के रखना है हौसलों के साथ, हर नाइंसाफी का सामना करना है।बहुत नाजुक हो तुम, परतुम्हें फौलाद भी बनना होगा।वक्त आने पर दुर्गा का रूप भी धरना होगा।मुझे छोड़, पराए घर चली जाओगी एक दिन
आँखें होंगी नम, विचलित होगा मनपर लब पे होंगी लाखों दुआएँ हमेशा मुस्कुराती रहो, चहकती रहो,जुग-जुग जियो तुम।साभार : लेखिका 08