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अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा - Atal bihari Vajpayee Poems
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
 
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
 
निज हाथों से हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
 
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
हास्य-रुदन में, तूफानों में,
अमर असंख्यक बलिदानों में,
 
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
 
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा!
 
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
उजियारे में, अंधकार में,
कल कछार में, बीच धार में,
 
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
 
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को दलना होगा।
 
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
सम्मुख फैला अमर ध्‍येय पथ,
प्रगति चिरन्तन कैसा इति अथ,
 
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
 
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
 
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
कुश कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वञ्चित यौवन,
 
नीरवता से मुखरित मधुवन,
पर-ह‍ति अर्पित अपना तन-मन,
 
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
 
कदम मिलाकर चलना होगा।