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हाथ बढ़ाना मुश्किल है
डॉ. शंभुनाथ तिवारी उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल हैनफ़रतवाली आग बुझाना मुश्किल हैजिनकी बुनियादें ख़ुदगर्जी पर होंगीऐसे रिश्तों का चल पाना मुश्किल हैबेहतर है कि ख़ुद को ही तब्दील करेंसारी दुनिया को समझाना मुश्किल हैजिनके दिल में क़द्र नहीं इंसानों कीउनकी जानिब हाथ बढ़ाना मुश्किल हैरखकर जान हथेली पर चलना होगाआसानी से कुछ भी पाना मुश्किल हैउड़ना रोज़ परिंदे की है मजबूरीघर बैठे परिवार चलाना मुश्किल हैदाँव-पेच से हम अनजाने हैं लेकिनहम सब को यूँ ही बहकाना मुश्किल हैक़ातिल की नज़रों से हम महफ़ूज कहाँसुबहो-शाम टहलने जाना मुश्किल हैतंग नज़रिए में बदलाव करो वर्नाकल क्या होगा यह बतलाना मुश्किल है