मेरी ज़िंदगी में सहारा नहीं है
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रोहित जैन मेरी ज़िंदगी में सहारा नहीं हैकिस-किस को मैंने पुकारा नहीं हैनिकलता हूँ घर से तो ये सोचता हूँवो क्या कर्ज़ है जो उतारा नहीं हैहर इक अपने साहिल पे पहुँचा हुआ हैकश्ती को मेरी ही किनारा नहीं हैसभी खुश हैं लेकिन मुझे बोलते हैंतू ही इस जहाँ में बेचारा नहीं हैमोहब्बत में मेरी कमी होगी शायदकोई दोष शायद तुम्हारा नहीं हैकिस दर पे जाऊँ कहाँ सर झुकाऊँकिस-किस ख़ुदा को उतारा नहीं हैजो मरते हैं पल-पल ज़रा उनसे पूछोमौत कहते हैं यूँ तो दोबारा नहीं है।