जब शहद बन गए मेरे शब्द
महमूद दरवेश की कविता
जब मिट्टी थे मेरे शब्दमेरी दोस्ती थी गेहूँ की बालियों सेजब क्रोध थे मेरे शब्दज़ंजीरों से दोस्ती थी मेरीजब पत्थर थे मेरे शब्दमैं लहरों का दोस्त हुआजब विद्रोही हुए मेरे शब्दभूचालों से दोस्ती हुई मेरी जब कड़वे सेब बने मेरे शब्दमैं आशावादियों का दोस्त हुआपर जब शहद बन गए मेरे शब्दमक्खियों ने मेरे होंठ घेर लिए...साभार : पहल