मंगलवार, 3 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. गीत-गंगा
Written By अजातशत्रु

मेरी बरबादियों पर मुस्कराने आ गया कोर्ई....

मेरी बरबादियों पर मुस्कराने आ गया कोर्ई.... -
ऐसा नहीं कि इस खासमखास गीत को मैं भूले हुए था। नहीं, अर्से से यह बात मन में थी कि 'गीत-गंगा' में इसका उल्लेख किया जाए। मगर लिखना टलता रहा, क्योंकि गीत इतना संजीदा और गहरा है कि मन में यह भय बना रहा कि अगर इस गीत के टक्कर की भाषा और समझाइश मैं न ला सका, तो मन में क्षोभ बना रहेगा। जैसे हम बहुत अच्छी चीज को छूते हुए डरते हैं- क्योंकि वह हमें बेइंतिहा पसंद है- बस वैसा ही मामला था, इस गीत के बारे में।

क्या कारण है इस गीत की ऐसी जबर्दस्त अपील का? पहला और सीधा कारण यह है कि इसे लता मंगेशकर ने गाया है। दूसरे अर्थों में, इस गीत में ऐसी मिठास और दर्द है कि उसमें उठने वाली शिकस्तगी, लाचारगी और उदासी को हम भोगने लगते हैं। ऐसा महसूस होता है जैसे सचमुच कहीं कोई ट्रेजेडी घट गई। हम उसकी पहचान के दायरे में रहे, और कुछ कर न सके।

हम सब जानते हैं कि सिनेमा झूठा है और गाने में उपजाया हुआ लता का दर्द भी झूठा है। वास्तव में कहीं कोई भोक्ता नहीं है। फिर भी लता ने, 52 साल पहले, उतनी कम उम्र में, इस गीत को जिस सधी हुई हताशा, दर्द और टूटन से गाया, वह हमें गमगीन कर जाता है और फिजां में उदासी भर देता है।

दूसरा कारण इस गीत को इतना विशिष्ट बनाने का यह है कि यह गीत वास्तव में गजल है। इसमें शायर ने इतने अच्छे अल्फाज और जुमले इस्तेमाल किए हैं कि उनके मआनी हम सबसे मुताल्लिक हो जाते हैं। गजल अपनी तय की हुई जगह से उठकर बाहर अवाम की दुनिया में फैल जाती है और अहसास कराती है कि इस पराए दर्द में हम कहीं अपना गुमनाम, बेशक्ल दर्द भी भोगते चल रहे हैं। उन पंक्तियों पर तो कलेजा मुंह को आ जाता है, जहां शायर कहानी की किरदारा के हवाले से लिखता है- 'लीजिए, मेरी खातिर अरमानों के फूल अर्श (आसमान) पर चढ़ाए जा रहे हैं। गोया मुझ पर फूलों की चादर डालने कोई आ गया।' जानते हैं फूलों की चादर का मकसद यहां कफन से है।

इसी तरह, उस शे'र का तंज भी दिल को छू जाता है, जहां गजल कहती है- 'मुझको खाक में मिलाकर वे गैर से, हंसकर, यह बोले- लो भाई, यह भी कोई बात है। हमने तो कुछ नहीं किया। वो अपने आप ठिकाने लग गए।' उर्दू परंपरा में कहा जाता है कि सबसे आला शे'र सबसे बड़ा झूठ होता है। अर्थात हकीकत में कहीं कुछ नहीं होता। पर कला तसव्वुर के दम पर हमें सचमुच रुला जाती है, हंसा जाती है, यहीं उसकी बुलंदी है, शान है।

और अभी जब हम लता और शायर की शान में इतने कसीदे पढ़ रहे हैं- तो यह न भूलें कि फिल्म 'सब्जबाग' के इस नग्मे को इतना दिलकश बनाने में बुनियादी हाथ धुन का है, तर्ज का है! संगीतकार ने लफ्जों की पैरहन को इतनी माकूल और गहरी धुन अता की है कि लता उसकी खूबसूरती के कारण कुदरतन असरदार गा गई और धुन के मातमी मिजाज ने भी गजल की अपील को बढ़ा दिया।

आप इस गीत को डूबकर सुनिए, सीधे देखेंगे कि अल्फाज, फिर मानी, और फिर इन सबके ऊपर लता किस तरह उदासी की भाप को गम के बादल के रूप में मुज्मिंद (फ्रीज) कर देते हैं। दर्द किसी और का है। और शिद्दत से भोगते आप जाते हैं। कला यहां आपको चुरा लेती है।.... आप आराम से अपहृत हो जाते हैं। यही रचनात्मक झूठ (माया) की ताकत है...।
पढ़िए बोल-

मेरी बरबादियों पर-(2)/
मुस्कराने आ गया कोई मिटाने आ गया कोई,
जलाने आ गया कोई,
मेरी बरबादियों पर
मुस्कराने आ गया कोई!
मिलाकर खाक में-(2)/
मुझको वो हंसकर गैर से बोले,
हां गैर से बोले, ये भी कोई बात है-(2)/
अपने ठिकाने आ गया कोई,
मिटाने आ गया कोई, जलाने आ गया कोई
मेरी बरबादियों पर मुस्कराने आ गया कोई!
चढ़ाए जा रहे हैं-(2)/ फूल अरमानों के अर्श पर
मुझे फूलों की चादर-(2)/ में छिपाने आ गया कोई
मिटाने आ गया कोई, जलाने आ गया कोई
मेरी बरबादियों पर मुस्कराने आ गया कोई!

कई बार जी होता है कि लताजी से पूछा जाए- 'इतनी अथाह वेदना गाते समय आप कहां होती हैं?' पर जवाब हमें मालूम है- 'वे नॉर्मल नहीं रह पातीं। रेकार्डिंग के बाद कई बार रोती रह गई हैं। (मसलन, राजा की आएगी बारात/ फिल्म 'आह') इस तरह यह गीत हम तक पहुंचा! इसे अजीज कश्मीरी ने लिखा था। फिल्म सब्जबाग के गीतों की धुनें विनोद और गुलशन सूफी ने बनाई थीं। प्रस्तुत गीत गुलशन सूफी की धुन का है। अंत में धन्यवाद उल्हासनगर के प्रीतम मेंघाणी को, जिन्होंने इस गीत को उपलब्ध कराया और साथ में सुन-सुनकर इस गीत के टैक्स्ट (इबारत) को कागज पर सही-सही लाने में मदद की।