साल 2019 में राजनीतिक उठापटक का असर इस साल आई किताबों पर भी रहा। कविता, उपन्यास और कहानी विधा पर तो हर साल किताबें आती ही हैं, लेकिन इस बार कुछ किताबें बोलने की आजादी और धर्म की परिभाषा को लेकर भी आईं। शशि थरूर की ‘मैं हिन्दू क्यों हूं’ और पत्रकार रवीश कुमार की ‘बोलना ही है’ भी चर्चा में रही। इसके अलावा संस्मरण, कविता, उपन्यास और शोधपरक किताबों से भी बाजार गर्म रहा। आइये जानते हैं इस साल की 10 ऐसी किताबों और उनके लेखकों के बारे में जिनकी इस साल चर्चा रही।
पालतू बोहेमियन, लेखक प्रभात रंजन, राजकमल प्रकाशन
हमारे दौर के सर्वाधिक चर्चित लिक्खाड़ों में से एक मनोहर श्याम जोशी पर लेखक प्रभात रंजन की एक संस्मरणात्मक किताब 'पालतू बोहेमियन' नाम से आई है। पुस्तक में लेखक ने मनोहर श्याम जोशी के जीवन के ऐसे छिपे हुए पहलुओं को लाने की सफल कोशिश की है, जिन्हें पाठक जानना चाहते हैं। प्रभात रंजन फिलहाल काफी सक्रिय लेखक हैं। वे जानकीपुल नाम का एक ब्लॉग भी चलाते हैं, जिस पर अन्य लेखकों की कहानी, कविता, उपन्यास के अंश और डायरी आदि प्रकाशित करते हैं।
अख़्तरी, संपादन यतींद्र मिश्र, वाणी प्रकाशन
यतींद्र मिश्र के संपादन में तैयार हुई अख्तरी इस साल काफी चर्चा में रहने वाली किताब है। इसमें कई पुराने और नए लेखकों ने गजल गायिका बेगम अख्तर के बारे में अपने संस्मरण और लेख साझा किए हैं। बेग़म अख़्तर के गजल के सफर और उनकी निजी जिंदगी को जानने के लिए यह बेहद दिलचस्प किताब है। इस किताब में बहुत बेबाकी से उनके बारे में चर्चा की गई हैं। कई नामचीन और नए लेखकों ने किताब में अपने आलेख लिखे हैं।
अपार खुशी का घराना, लेखक अरुंधति रॉय, राजकमल प्रकाशन
प्रेम और उम्मीद की ताकत पर जिंदा रहने वाले लोगों की कहानी है अरुंधति रॉय की किताब अपार ख़ुशी का घराना। इसमें प्रेम-कथा और असंदिग्ध प्रतिरोध की अभिव्यक्ति है। इस किताब के नायक वे लोग हैं जिन्हें दुनिया ने तोड़ डाला है। पढ़ना दिलचस्प होगा।
हिंदनामा: एक महादेश की गाथा, लेखक कृष्ण कल्पित, राजकमल प्रकाशन
हिंदनामा। यह किताब न तो इतिहास है और न ही काल्पनिक उपन्यास। यह एक धूल-भरा दर्पण है जिसमें हमारे देश की बहुत सी धूमिल और चमकदार छवियाँ दिखाई देती हैं। हिंदनामा दरअसल हिन्दुस्तान के बारे में एक दीर्घ कविता है जिसमें कोई कालक्रम नहीं है। कुछ अलग पढ़ना है तो यह किताब आपके लिए है।
कुली लाइंस, लेखक प्रवीण झा, वाणी प्रकाशन
यूं तो कई लेखकों ने गिरमिटियों का इतिहास लिखा है, लेकिन प्रवीण झा ने हिन्दी में पहली बार सभी द्वीपों के इतिहास को एक साथ रखने का प्रयास किया गया है। गिरमिटिया अपनी छ: पीढ़ी के बाद भी अपने आपको भारतीय मानते हैं। उनके संघर्ष की कहानी है कुली लाइंस।
बोलना ही है, लेखक, रविश कुमार, राजकमल प्रकाशन
रवीश कुमार की किताब ‘बोलना ही है’ यह पड़ताल करती है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस-किस रूप में बाधित हुई है। वे पिछले दिनों अपनी मीडिया रिपोर्ट को लेकर भी काफी चर्चा में रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके बारे में काफी बहस अक्सर जारी रहती है। हाल ही में उन्हें रेमन मैगसेसे पुरस्कार मिला है।
मैं हिन्दू क्यों हूं- लेखक शशि थरुर, वाणी प्रकाशन
पिछले कुछ सालों में हिंदू धर्म को लेकर काफी बहस का दौर रहा है। इसी दौरान लेखक और राजनीतिज्ञ शशि थरुर ने मैं हिन्दू क्यों हूं में हिन्दू धर्म को लेकर अपने विचार और संस्मरण लिखे हैं। इसमें उनकी निजी आस्था का जिक्र है। कांग्रेस से राजनीति करने वाले शशि को हिन्दू धर्म पर पढ़ना दिलचस्प ही होगा। एक तरफ जहां हिन्दू धर्म, सांप्रदायिकता और धर्म निरपेक्षता को लेकर पूरे साल राजनीति गर्म रही, ऐसे में थरूर की यह किताब इस समय में पढ़ना प्रासंगिक है।
'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था-लेखक पंकज सुबीर, शिवना प्रकाशन
'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' यह उस उपन्यास का नाम है जो इस साल सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। इसके लेखक हैं सुप्रसिद्ध कथाकार पंकज सुबीर। सुबीर का यह उपन्यास सांप्रदायिकता और वर्तमान समय में सामने आ रही चुनौतियों को केंद्र में रखकर लिखा गया है। उपन्यास में इस समय को ध्यान में रखते हुए कई सवाल खड़े किए गए हैं। यह उपन्यास वैश्विक परिदृश्य में जाकर यह खोज करता है कि मानव सभ्यता और सांप्रदायिकता इस समय के लिए कोई नई बात नहीं है, दरअसल, यह दोनों ही पिछले 5,000 सालों से एक दूसरे के साथ नजर आ रहे हैं।
विषय को देखकर लगता है कि लेखक पंकज सुबीर ने इसके लिए कितना शोध किया होगा। खुद लेखक ने एक बार यह स्वीकार किया था कि ऐसे विषय पर उपन्यास लिखना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। लिखते वक्त कई घटनाएं और पात्र एक साथ उनके दिमाग में थे। जिनकी स्थति खुद उन्हें तय करना थी। इस राजनीतिक दौर में सबसे ज्यादा चर्चा और बहस मानव सभ्यता और सांप्रदायिकता को लेकर ही हो रही है, इस विषय को लेकर कई प्रश्न हैं, ऐसे में यह उपन्यास पढ़ा जाना सार्थक है और इस समय में प्रासंगिक भी। बता दें कि पंकज सुबीर जाने-माने लेखक होने के साथ ही शिवना प्रकाशन के नाम से अपना प्रकाशन भी चलाते हैं।
कुछ इश्क किया, कुछ काम किया- लेखक पीयूष मिश्रा, राजकमल प्रकाशन
सिनेमा में अभिनय और गायिकी के लिए तो पीयूष मिश्रा जाने ही जाते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी कविता को किताब का आकार दिया है। पीयूष की कविताओं में एक बैचेनी है। एक गायक और संगीतकार को लेखक के तौर पर पढ़ा जाना चाहिए।
ग्यारहवीं ए के लड़के, लेखक गौरव सोलंकी, सार्थक प्रकाशन
ग्यारहवीं ए के लड़के कहानी संग्रह है। इसमें छह कहानियां सम्मिलित हैं, लगभग हर कहानी ने सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर एक खास किस्म की हलचल पैदा की। किसी ने उन्हें अश्लील कहा, किसी ने अनैतिक, किसी ने नकली। लेकिन ये सभी आरोप शायद उस अपूर्व बेचैनी की प्रतिक्रिया थे, जो इन कहानियों को पढ़कर होती है।