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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 3 सितम्बर 2024 (15:45 IST)

Teacher's Day 2024: शिक्षक दिवस पर निबंध कैसे लिखें?

Teacher's Day 2024: शिक्षक दिवस पर निबंध कैसे लिखें? - Teachers Day Essay in Hindi 2024
teachers day in hindi
 
Highlights  
 
शिक्षक दिवस पर हिन्दी में आदर्श निबंध पढ़ें।
शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है।
जीवन में शिक्षकों की भूमिका क्या है।

 
शिक्षक दिवस शुभकामनाएं। 

Teachers Day 2024 : हर साल 05 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। आइए यहां जानते हैं कैसे लिखें शिक्षक दिवस पर हिन्दी में रोचक निबंध...
 
प्रस्तावना- प्रतिवर्ष 5 सितंबर का दिन भारतभर में टीचर्स डे या शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। टीचर्स डे/ शिक्षक दिवस गुरुओं और शिष्यों को समर्पित दिन है और गुरु-शिष्य की परंपरा तो भारतीय संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। अत: जीवन में शिक्षकों का महत्व समझाने के लिए ही 05 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
 
वैसे तो हमारे जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। अत: यह कहा भी जाता है कि हर बच्चे के जीवन के सबसे पहले गुरु माता-पिता ही होते हैं।

भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली तरीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं तथा हमारे जीवन को ऊंचाइयों पर ले जाने का श्रेय भी शिक्षकों को ही जाता हैं। माता-पिता, परिवार के सभी सदस्य, दोस्त, मिलने-जुलने वाले और शिक्षक अच्छे संस्कारों से हमारे देश के भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है।

साथ ही छात्रों को भी चाहिए कि वो अपने जीवन में अच्छे गुणों को आत्मसात करके अच्छे देश के निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाएं तथा हर हाल में अपने शिक्षकों की गरिमा को बनाए रखें तथा शिक्षकों को भी चाहिए कि वे अपने छात्र-छात्राओं का ध्यान रखते हुए उनके साथ छेड़छाड़, मारपीट न करें तथा एक अच्छे नागरिक होने का अपना कर्तव्य निभाएं। 

 
कब और क्यों मनाया जाता है यह दिन- भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारतभर में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था, उनके अध्यापन पेशे के प्रति उनके प्यार और लगाव के कारण उनके जन्मदिन पर पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 
 
डॉ. राधाकृष्णन एक राजनयिक, शिक्षक और भारत के राष्ट्रपति के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उनका शिक्षा में बहुत भरोसा था। 'गुरु' का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। समाज में भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। 
 
तैयारी- यह दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उनकी जयंती पर याद करके मनाया जाता है। शिक्षक दिवस पर स्कूलों में तरह-तरह के कार्यक्रम, उत्सव, धन्यवाद और स्मरण की गतिविधियां होती हैं। बच्चे व शिक्षक दोनों ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। स्कूल-कॉलेज सहित अलग-अलग संस्थाओं में शिक्षक दिवस पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 
 
छात्र विभिन्न तरह से अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, तो वहीं शिक्षक गुरु-शिष्य परंपरा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं। स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती है। स्कूल और कॉलेज में पूरे दिन उत्सव-सा माहौल रहता है। दिनभर रंगारंग कार्यक्रम और सम्मान का दौर चलता है। 
 
परंपरा- गुरु-शिष्य संबंध या गुरु-शिष्य की परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने के लिए प्रेरित करता है।

आज शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षकों को भी वह सम्मान मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। अत: इस दिन भारत सरकार द्वारा देशभर में श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।
 
उपसंहार- बदलते दौर में मोबाइल तथा सोशल मीडिया प्लेटफार्म के कारण बच्चों का शिक्षण प्रति ध्यान भटकता जा रहा है। अत: बच्चों को समझना होगा कि शिक्षा से ही वह सबकुछ हासिल किया जा सकता जो आप चाहते हैं। आजकल पढ़ाई को लेकर बहुत सारी चीजें बदलती है, आज पढ़ाई के मायने बदल गए है। आज के युग में कई शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। 
 
आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं। इसे देखकर हमारी संस्कृति की इस अमूल्य गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रश्नचिह्न लगता हुआ नजर आने लगता है। अत: विद्यार्थी और शिक्षक दोनों का ही दायित्व है कि वे इस महान परंपरा को बेहतर ढंग से समझें और एक अच्छे समाज और राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करें। 
 
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