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essay on hindu nav varsh : हिन्दू नववर्ष गुड़ी पड़वा पर आदर्श निबंध

essay on hindu nav varsh : हिन्दू नववर्ष गुड़ी पड़वा पर आदर्श निबंध - Hindu Nav varsh Essay in Hindi
Gudi Padwa Essay 2023 
 
प्रस्तावना : Gudi Padwa (गुड़ी पड़वा) पूरे भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि कहा था इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। 
 
भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार सोमरस चंद्रमा ही औषधियों, वनस्पतियों को प्रदान करता है इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। इस दिन पूरनपोली बनाई जाती है तथा कड़वा नीम का सेवन आरोग्य के लिए अच्छा माना जाता है। 
 
ब्रह्म पुराण में गुड़ी पड़वा : ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भार‍त वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। कहा है कि- चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि, शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। -ब्रह्म पुराण
 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापना, ध्वजारोपण आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। इस ऋतु में संपूर्ण सृष्टि में सुंदर छटा बिखर जाती है। ‘प्रतिपदा' के दिन ही पंचांग तैयार होता है। 
 
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग' की रचना की। इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत काल गणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में 'गुड़ी पड़वा' कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ 'विजय पताका' होता है।
 
इतिहास की नजर से : इस नवसंवत्सर का इतिहास बताता है कि इसी दिन आज से 2070 वर्ष पूर्व 'उज्जयनी नरेश महाराज विक्रमादित्य' ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की।
 
कहा जाता है कि देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति और शांति को भंग करने के लिए उत्तर-पश्चिम और उत्तर से विदेशी शासकों ने इस देश पर आक्रमण किए और अनेक भूखंडों पर अपना अधिकार कर लिया और अत्याचार किए जिनमें एक क्रूर जाति के शक तथा हूण थे। ये लोग पारस कुश से सिंध आए थे। सिंध से सौराष्ट्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र में फैल गए और दक्षिण गुजरात से इन लोगों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया। शकों ने समूची उज्जयिनी को पूरी तरह विध्वंस कर दिया और इस तरह इनका साम्राज्य विदिशा और मथुरा तक फैल गया। 
 
इनके क्रूर अत्याचारों से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई तो मालवा के प्रमुख नायक विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता और राजशक्तियां उठ खड़ी हुईं और इन विदेशियों को खदेड़कर बाहर कर दिया। इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवंति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दंपति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। 
 
सारे देश में शक के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए विक्रमादित्य को अनेक बार उससे उलझना पड़ा जिसकी भयंकर लड़ाई सिन्ध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई जिसमें शकों ने अपनी पराजय स्वीकार की। इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे 'विक्रमी शक संवत्सर' कहा जाता है। 
 
सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्मा जी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर' भी कहते हैं। 
 
नवसंवत्सर से ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नवसंरचना के लिए ऊर्जस्वित हो रही है। मनुष्य, पशु-पक्षी एवं प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग कर सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।

 
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