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राहुल गांधी अपने राजनीतिक एजेंडा से चलते हैं

राहुल गांधी अपने राजनीतिक एजेंडा से चलते हैं - Rahul Gandhi follows his political agenda
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ज्यादातर कार्यक्रम अब देश की अभिरुचि के केंद्र बनते हैं। हरियाणा के समालखा में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक की ओर स्वभाविक ही संपूर्ण देश का ध्यान था। प्रतिनिधि सभा संघ की शीर्ष निर्णयकारी इकाई है।

इस कारण भी राजनीति से लेकर गैर राजनीतिक सार्वजनिक जीवन के लोगों सहित मीडिया की इस मायने में उत्कंठा थी कि वहां से क्या निर्णय लिए जाते हैं। हाल ही में लंदन में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह का संगठन बता दिया था। इसमें यह संभावना व्यक्त की जा रही थी कि संघ इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगा।

इसी तरह की अपेक्षाएं देश के सामान्य राजनीतिक घटनाक्रमों के संदर्भ में भी थी। हालांकि बरसों से संघ पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि बैठकों से इस तरह की प्रतिध्वनि कभी नहीं निकलती। बावजूद अनुमान और अटकलें हमेशा लगतीं है। तीन दिवसीय बैठक की समाप्ति के बाद संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने पत्रकार वार्ता में अपनी ओर से इन पर कोई टिप्पणी नहीं की। पत्रकारों ने जब राहुल गांधी के वक्तव्य संबंधी प्रश्न पूछा तो उन्होंने इतना ही कहा कि हमें इस बारे में टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है। राहुल अपने राजनीतिक एजेंडा से चलते हैं। हमारी उनकी कोई प्रतिबद्धता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी के पूर्वजों ने भी संघ के बारे में काफी टिप्पणी की है और संघ के बारे में सभी लोग जानते हैं। हां, एक राजनीतिक पार्टी के प्रमुख नेता के नाते राहुल को और ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए।

यह उत्तर ऐसा नहीं था, जिस पर देश में आक्रामक बहस हो सके। हालांकि उन्होंने आपातकाल की याद दिलाते हुए बताया कि वह भारत में लोकतंत्र को खतरे में बताते हैं, जबकि कांग्रेस के शासनकाल में ही आपातकाल लगा और हजारों लोग कारागार में डाले गए। यदि आप गहराई से संघ की कार्यपद्धति और उनके नेताओं के विचार और व्यवहार का मूल्यांकन करेंगे तो आपको आश्चर्य नहीं होगा। संघ अपनी ओर से आकर न उन पर प्रतिक्रियाएं देता है न खंडन करता है। दत्तात्रेय के पूरे वक्तव्य का निहितार्थ यही था कि संघ राष्ट्र के उत्थान की दृष्टि से अपने लक्ष्य के अनुरूप ही सक्रिय रहता है और ऐसी टिप्पणियों के खंडन- मंडन में अपना समय नष्ट नहीं करता।

यह सच है कि संघ के बारे में अगर समाज में भी वैसे ही धारणाएं होती जैसी विरोधी दुष्प्रचार करते हैं तो अपने 98 वर्ष के जीवन काल में स्वयं उसके और उससे निकले अनेक संगठनों के साथ इतना व्यापक विस्तार नहीं होता। आप देखिए वहां जो प्रस्ताव पारित हुए उनमें स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती वर्ष, महावीर स्वामी का 2250वां जयंती वर्ष और शिवाजी छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक का 350वां वर्ष मनाने का निश्चय है।

भारत का कौन सा संगठन अपनी शीर्ष निर्णयकारी इकाई में इन महापुरुषों की जयंती वर्ष मनाने का निर्णय करता है? साफ है कि संघ को समझने के लिए उसके दृष्टिकोण से देखने समझने की आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है। प्रतिनिधि सभा में संघ ने सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से पहले से सक्रिय पांच आयामों पर आगे भी कार्य करने का निश्चय किया। इनमें सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी आचरण और नागरिक कर्तव्य शामिल हैं। भारत के लिए हमेशा सामाजिक विभेद बड़ी चुनौती रही है। इसके विरुद्ध बातें तो बहुत हुई पर काम न के बराबर हुआ। जैसा दत्तात्रेय ने बताया कि समाज में विभेद के विरुद्ध विमर्श खड़ा करना तथा समरसता के लिए निरंतर प्रयास करना इन पांच आयामों पर कार्य करने का लक्ष्य है। भारत की उन्नति की कामना करने वाला कौन इन पंच आयामों से अंतर्मन से असहमत हो सकता है? कोई भी देश तभी सशक्त होगा जब अपने वैविध्य के रहते हुए भी समरस होकर परस्पर सहयोग पर आश्रित बने। परिवार व्यवस्था किसी भी समाज के सशक्त होने का आधार है। टूटते परिवार हमारे देश में अनेक सामाजिक- आर्थिक- सांस्कृतिक समस्याओं के कारण बने हैं।

इनमें परिवार प्रबोधन का महत्व बढ़ जाता है। प्रतिनिधि सभा में यह भी घोषणा हुई कि हर 3 महीने पर गृहस्थ कार्यकर्ताओं की शाखाएं लगेंगी जिनमें परिवार शामिल होंगे। इसी तरह स्वदेशी आचरण और एक नागरिक के नाते हमारा कर्तव्य मायने रखता है। अधिकारों की बात सभी करते हैं, लेकिन वे दायित्वों के साथ आबद्ध हैं इसकी चिंता नहीं होती। नागरिकों में दायित्व बोध पैदा हो तो न केवल अनेक समस्याओं से अपने आप मुक्ति मिलेगी, बल्कि भविष्य में उभरने वाली समस्याओं से भी आराम से निपटा जा सकता है।

इस दृष्टि से विचार करें तो संघ ने अपने प्रतिनिधि सभा से संपूर्ण देश के लिए कुछ संदेश दिए हैं। जनसंख्या असंतुलन और विवाह आदि पर संघ का मत देश जानना चाहता है। संघ द्वारा समलैंगिक विवाह को नकारना बिलकुल स्वाभाविक है। दत्तात्रेय ने कहा कि भारतीय हिंदू दर्शन में विवाह संस्कार है। यह कोई कंट्रैक्ट या दो निजी लोगों के आनंद की चीज नहीं है, न अनुबंध है। विवाह सिर्फ अपने लिए नहीं परिवार व समाज के लिए है और यह दो विपरीत लिंग के बीच ही होता है। हाल में उच्चतम न्यायालय ने भी समलैंगिक विवाह के बारे में मोटा- मोटी ऐसी ही टिप्पणी की है। हालांकि जनसंख्या असंतुलन पर इस बार प्रस्ताव पारित नहीं हुआ, क्योंकि पिछली बार हो गया था। प्रश्न पूछे जाने पर स्पष्ट किया गया कि जनसंख्या असंतुलन देश के विकास के लिए खतरा है और इसका निदान होना चाहिए।

साल 2025 में संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। स्वाभाविक ही देश जानना चाहता है कि अपने शताब्दी वर्ष में संघ क्या करेगा। संघ के चरित्र को देखें तो अन्य संगठनों की तरह शताब्दी वर्ष उसके लिए अतिविशिष्ट नहीं हो सकता है। संघ साहित्य बताता है कि वह समाज में नहीं समाज का संगठन है और जब तक समाज है तब तक है। इसलिए उसके जीवन में अनेक शताब्दियां आएंगी। बावजूद शताब्दी वर्ष का लक्ष्य तो कुछ होना ही चाहिए। इस संदर्भ में सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने पत्रकार वार्ता में यही कहा कि अगले एक वर्ष तक एक लाख स्थानों तक पहुंचना संघ का लक्ष्य है।

शताब्दी वर्ष में संघ कार्य को बढ़ाने के लिए नियमित प्रचारकों, विस्तारकों के अतिरिक्त 13 सौ कार्यकर्ता दो वर्ष के लिए शताब्दी विस्तारक निकले हैं। अभी संघ 71,355 स्थानों पर प्रत्यक्ष तौर पर कार्य कर समाज परिवर्तन के महत्वपूर्ण कार्य में भूमिका निभा रहा है। संघ की दृष्टि से देश को 911 जिलों में विभाजित किया गया है जिनमें से 901 जिलों में प्रत्यक्ष कार्य है। इस तरह देखें तो शताब्दी वर्ष को केंद्र बनाकर संघ पहले से जारी अपने सभी आयामों पर काम करते हुए ज्यादा से ज्यादा स्थानों तक अपनी सक्रिय उपस्थिति बढ़ाने पर फोकस करेगा।

यह बात सही है कि संघ को लेकर आम समाज की अभिरुचि बढी है। 2017 से 2022 तक ज्वाइन आरएसएस के माध्यम से संघ के पास 7 लाख 25 हजार निवेदन है। इनमें से अधिकतर 20 वर्ष से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवक हैं। स्वाभाविक ही अगर संघ ने लक्ष्य बनाया है तो उसका विस्तार होगा। इसका अर्थ यही हुआ कि संघ को लेकर विरोध करने वालों की टिप्पणियों से आम भारतीय अप्रभावित हैं, क्योंकि वह जमीन पर उस तरह की तस्वीर नहीं देखते जैसा विरोधी आमतौर पर बनाते हैं। संघ के विरोधियों और समर्थकों दोनों के लिए प्रतिनिधि सभा से साफ संदेश हैं जिन्हें वे उसी रूप में लें तो सच्चाई समझ में आएगी और यही देश के हित में होगा।

विरोध करने के लिए भी सच्चाई जानना और समझना आवश्यक है। जो है नहीं उसके आधार पर विरोध करेंगे तो जनता उसे स्वीकार नहीं करेगी। भारत के हित और प्रगति का लक्ष्य बनाकर जब आप लगातार काम करते हैं तो आपको सही समस्याएं और उसके निदान भी अनुभव के अनुसार समझ आने लगते हैं। यह सामान्य बात नहीं है कि 1925 की स्थापना से लेकर आज तक हजारों लोगों ने संघ कार्य के लिए अपना घर द्वार त्याग कर जीवन लगा दिया और यह प्रक्रिया आज तक चल रही है। ऐसी स्थिति दूसरे किसी संगठन की नहीं। यही कारण है कि विरोधियों के विरोध से उसकी गतिविधियां दुष्प्रभावित नहीं होती। प्रतिनिधि सभा से भी यही संदेश निकला कि किसी विरोधी टिप्पणी या अन्य राजनीतिक घटनाओं से अप्रभावित रहते हुए सतत् अपने लक्ष्य की दृष्टि से ही कार्ययोजनाएं बनाकर काम करते रहना है।
नोट :  आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्‍यक्‍त विचारों से सरोकार नहीं है।