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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 3 दिसंबर 2025 (16:47 IST)

Tantya Bhil : टंट्या भील बलिदान दिवस पर जानें 5 दिलचस्प कहानी

Tantya Bhil Balidan Diwas
Tantya Mama: क्रांतिकारी टंट्या भील का बलिदान दिवस प्रतिवर्ष 4 दिसंबर को मनाया जाता है। भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह दिन उस वीर योद्धा और स्वतंत्रता सेनानी 'टंट्या भील' के बलिदान को समर्पित है। टंट्या भील का जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के पास हुआ था। वह भील जनजाति से थे, जो एक आदिवासी समुदाय है। बचपन में ही उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों और शोषण को महसूस किया।

1857 से 1889 के बीच ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ लोहा लेने वाले इस महान जननायक को आदिवासी समुदाय में न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी, बल्कि 'टंट्या मामा' के रूप में पूजा जाता है। उनकी वीरता और संघर्ष की कई दिलचस्प कहानियां हैं, जो भारतीय इतिहास में अमर हैं। 
 
यहां आज उनके बलिदान दिवस के अवसर पर, टंट्या भील से जुड़ी 5 सबसे दिलचस्प और प्रेरणादायक कहानियां प्रस्तुत हैं:
 
1. भारत के 'रॉबिनहुड' की उपाधि: टंट्या भील की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण उनका कार्य करने का तरीका था। वह ब्रिटिश सरकार और उनके समर्थक जमींदारों तथा साहूकारों को लूटते थे, जो गरीब आदिवासियों का शोषण करते थे। लूटे हुए धन, अनाज और आवश्यक वस्तुओं को वह चुपके से गरीब और जरूरतमंद आदिवासियों में बांट देते थे। उनके इस कार्य की तुलना इंग्लैंड के लोकनायक या लोककथाओं का काल्पनिक नायक रॉबिन हुड से की जाती थी, जो अमीरों को लूटकर गरीबों में बांटता था। अंग्रेजों ने उन्हें न चाहते हुए भी 'इंडियन रॉबिनहुड' का खिताब दिया, जबकि स्थानीय जनता उन्हें 'गरीबों का मसीहा' मानती थी।
 
2. 'टंट्या मामा' बनने की कहानी: टंट्या भील सिर्फ एक विद्रोही या लुटेरा नहीं थे। उन्होंने सामाजिक सुधारों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह गरीब कन्याओं की शादी कराते थे, असहाय लोगों की मदद करते थे, और गांवों के आपसी झगड़ों का निपटारा करते थे। आदिवासी समाज उन्हें अपना संरक्षक मानता था। लोगों ने उन्हें आदर और स्नेह से 'मामा' कहना शुरू कर दिया। मामा, भारतीय संस्कृति में एक सम्मानजनक और संरक्षक व्यक्ति का प्रतीक होता है। यह उपाधि दर्शाती है कि वह आदिवासियों के लिए एक पारिवारिक अवलंब और न्याय का स्रोत बन गए थे।
 
3. अंग्रेजों को थकाने वाली गुरिल्ला युद्ध नीति: टंट्या भील ने 1857 की क्रांति के बाद लगातार 15 वर्षों तक अंग्रेजों को चैन से नहीं रहने दिया। उन्हें तीरंदाजी, तलवारबाजी और लाठी चलाने में महारत हासिल थी। उन्होंने तात्या टोपे से प्रभावित होकर गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई। कहा जाता है कि वे जंगलों के रास्ते और भौगोलिक स्थिति से इतने वाकिफ थे कि वह पलक झपकते ही ब्रिटिश सैनिकों की आंखों के सामने से ओझल हो जाते थे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 2000 से अधिक सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी लगा रखी थी, पर उनकी तेज तर्रार गोरिल्ला युद्ध नीति के सामने अंग्रेज हमेशा नाकाम रहे।
 
4. पातालपानी रेलवे स्टेशन पर आज भी झुकती है ट्रेन: टंट्या भील को 4 दिसंबर 1889 को जबलपुर में फांसी दे दी गई थी। अंग्रेजों को डर था कि उनके शव को देखकर विद्रोह भड़क उठेगा। इसलिए उन्होंने चुपचाप रात के अंधेरे में उनके शव को इंदौर-खंडवा रेल मार्ग पर स्थित पातालपानी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया। यही स्थान आज उनकी समाधि स्थल है। स्थानीय लोक आस्था के अनुसार, पातालपानी से गुजरने वाली सभी ट्रेनें, विशेषकर मीटर गेज की ट्रेनें आज भी इस स्थान पर कुछ पल के लिए धीमी हो जाती हैं या रुककर हॉर्न देती हैं। इसे टंट्या मामा को दी जाने वाली श्रद्धांजलि या सलामी माना जाता है। यह परंपरा उनके प्रति आमजन की अटूट आस्था को दर्शाती है।
 
5. उनकी गिरफ्तारी का रहस्य: टंट्या मामा को पकड़ना अंग्रेजों के लिए एक असंभव कार्य बन चुका था। उन्हें केवल विश्वासघात के माध्यम से ही पकड़ा जा सका। लोक कथाओं के अनुसार, उन्हें उनके ही किसी करीबी रिश्तेदार या मित्र जहां अक्सर गणपत सिंह का नाम आता है द्वारा धोखे से पकड़ा गया। उन्हें इंदौर सेना के एक अधिकारी के पास क्षमादान के वादे के साथ ले जाया गया था। लेकिन अंग्रेजों ने अपना वादा तोड़कर, उन्हें जबलपुर ले जाकर उन पर मुकदमा चलाया और फांसी दे दी। यह विश्वासघात ही एक ऐसा कारण था जिसने भारतीय रॉबिनहुड के 15 वर्षों के अदम्य संघर्ष को समाप्त किया।

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