हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। यह पांच दिन चलने वाले दीपावली उत्सव का पहला दिन होता है। धनतेरस से ही तीन दिन तक चलने वाला गोत्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है। धन तेरस का अर्थ धन की तेरस होता है।
धन तेरस की मान्यताएं : जैन आगम में धनतेरस को धन्य तेरस या ध्यान तेरस कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन ध्यान द्वारा योग निरोध के लिए चले गए थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए वे दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ।
हिन्दू मान्यता अनुसार धन तेरस के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अमृत कलश के अमृत का पान करके देवता अमर हो गए थे। इसीलिए आयु और स्वस्थता की कामना हेतु धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। कहते हैं कि इस दिन धन्वंतरि का जन्म हुआ था। धन्वंतरि जयंती को आयुर्वेदिक दिवस घोषित किया गया है। धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धन्वंतरि के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है।
धन्वंतरि के अलावा इस दिन यम, लक्ष्मी, गणेश और कुबेर देव की भी पूजा होती है। कहते हैं कि धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जहां दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है।
इस दिन लक्ष्मी पूजा का भी महत्व है। श्रीसूक्त में वर्णन है कि लक्ष्मीजी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं इसीलिए उनकी भी पूजा का प्रचलन है। धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे।
धनतेरस की परंपरा : इस दिन पुराने बर्तनों को बदल कर नए बर्तन खरीदे जाते हैं। यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण खरीदते हैं। वर्तमान में धनतेरस के दिन अब बर्तन और आभूषणों के आलावा वाहन, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। हालांकि अधिकतर लोग धनतेरस पर सोने या चांदी के सिक्के खरीदते हैं या पीतल एवं चांदी के बर्तन खरीदते हैं, क्योंकि इन्हें खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन नया वस्त्र, दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, खिलौने, खील-बताशे आदि भी खरीदे जाते हैं। इस दिन कुछ मात्रा में साबुत धनिया भी खरीदा जाता है जिसे संभालकर पूजा घर में रख दिया जाता है।
धनतेरस भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। अधिकतर जगहों पर सायंकाल दीपक जलाकर घर-द्वार, आंगन, दुकान आदि को सजाते हैं। इस दिन से मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुआं, तालाब एवं बगीचे आदि सभी जगहों को जगमग कर दिया जाता है। पश्चिमी भारत के व्यापारिक समुदाय के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। महाराष्ट्र में लोग सूखे धनिया के बीज को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर एक मिश्रण बनाकर नैवेद्य तैयार करते हैं।
ग्रामीण इलाकों में, किसान अपने मवेशियों को अच्छे से सजाकर उनकी पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में लोग गायों को देवी लक्ष्मी के अवतार के रूप में मानते हैं इसलिए वहां के लोग गाय का विशेष सम्मान और आदर करते हैं। इस अवसर पर गांवों में लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों या खेतों में बोते हैं। इस दिन लोग हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरकर कुमकुम लगाते हैं।
मूलत: धनतेरस से फिर से सबकुछ नया कर दिया जाता है जिससे मन में उत्साह और उमंग का संचार होता है।