बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. हिन्दी दिवस
  4. Webinar on 'Inter-Dialogue in Indian Languages' in Indian Institute of Mass Communication
Written By
Last Updated : सोमवार, 14 सितम्बर 2020 (21:47 IST)

भारतीय भाषाओं के बीच अंतर-संवाद में रुकावट कारण अंग्रेजी:अच्‍युतानंद मिश्र

भारतीय जन संचार संस्‍थान में ‘भारतीय भाषाओं में अंतर-संवाद’ विषय पर वेबिनार

भारतीय भाषाओं के बीच अंतर-संवाद में रुकावट कारण अंग्रेजी:अच्‍युतानंद मिश्र - Webinar on 'Inter-Dialogue in Indian Languages' in Indian Institute of Mass Communication
नई दिल्‍ली।''भाषा का संबंध इतिहास, संस्‍कृति और परम्‍पराओं से है।भारतीय भाषाओं में अंतर-संवाद की परम्‍परा पुरानी है और ऐसा सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है, यह उस दौर में भी हो रहा था, जब वर्तमान समय में प्रचलित भाषाएं अपने बेहद मूल रूप में थीं। 

श्रीमद् भगवत गीता में समाहित श्रीकृष्‍ण का संदेश दुनिया के कोने-कोने में केवल अनेक भाषाओं में हुए उसके अनुवाद की बदौलत ही पहुंचा। उन दिनों अंतर-संवाद की भाषा संस्‍कृत थी, तो अब यह जिम्‍मेदारी हिंदी की है।'' यह विचार वरिष्‍ठ पत्रकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति अच्‍युतानंद मिश्र ने भारतीय जन संचार संस्‍थान (आईआईएमसी) में आज हिंदी पखवाड़े के शुभारंभ के अवसर पर ‘भारतीय भाषाओं में अंतर-संवाद’ विषय पर आयोजित वेबिनार में व्‍यक्‍त किए।
 
वेबिनार में अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच अंतर-संवाद में रुकावट अंग्रेजी के कारण आई और इसकी वजह हम भारतीय ही थे, जिन्‍होंने हिंदी या अन्‍य भारतीय भाषाओं के स्‍थान पर अंग्रेजी को अंतर-संवाद का माध्‍यम बना लिया। उन्‍होंने कहा कि हिंदी के विद्वानों, पत्रकारों और संस्‍थाओं को इस दिशा में कार्य करना चाहिए था, लेकिन उन्‍होंने यह जिम्‍मेदारी नहीं निभाई। उन्‍होंने कहा कि जब डॉ. राम मनोहर लोहिया ने ‘अंग्रेजी हटाओ’ अभियान शुरु किया, तो उसका आशय ‘हिंदी लाओ’ कतई नहीं था, लेकिन दुर्भाग्‍यवश ऐसा प्रचारित किया गया। इससे राज्‍यों के मन में भ्रांति फैली। इसका निराकरण हिंदी के विद्वानों, पत्रकारों और संस्‍थाओं  को करना चाहिए था। 
 
मुख्‍य वक्‍ता एवं पटकथा लेखक एवं स्‍तम्‍भकार अद्वैता काला ने अपने संबोधन में कहा कि जहां भाषा खत्‍म होती है, वहां संस्‍कृति भी उसके साथ दम तोड़ देती है। हमें सभी भाषाओं को महत्‍व देना चाहिए, उन्‍हें समझना चाहिए और उनका सम्‍पर्क का माध्‍यम हिंदी है, इसे स्‍वीकार करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि वैसे भाषा बहुत निजी मामला है। इसके माध्‍यम से हम केवल दुनिया से ही नहीं बल्कि स्‍वयं से भी संवाद करते हैं।
 
गुजराती भाषा के ‘साप्‍ताहिक साधना’ के प्रबंध सम्‍पादक मुकेश शाह ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि शब्‍दों को हमने ब्रह्म माना है और भाषाओं में अंतर-संवाद कोई नई बात नहीं है। उन्‍होंने महात्‍मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि बापू ने अंग्रेजी में ‘हरिजन’ प्रकाशित किया, लेकिन उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए उन्‍होंने उसे गुजराती और हिंदी में भी स्‍थापित किया। 
 
कोलकाता प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष स्‍नेहशीष सुर ने इस अवसर पर कहा कि हिंदी दिवस के अवसर पर भारतीय भाषाओं के बीच अंतर-संवाद विषय पर विमर्श का आयोजन करके भारतीय जन संचार संस्‍थान ने दर्शाया कि हिंदी दिवस केवल हिंदी के लिए नहीं है। सभी भाषाओं के बीच संवाद, सम्‍पर्क, उनके कल्‍याण तथा विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। 
 
इस विमर्श के अध्‍यक्ष एवं भारतीय जन संचार संस्‍थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने अपने अध्‍यक्षीय भाषण में कहा कि सरकार की ओर से घोषित नई राष्‍ट्रीय नीति में सभी भारतीय भाषाओं को महत्‍व दिया गया है। हिंदी अकेली राष्‍ट्र भाषा नहीं है, क्‍योंकि समस्‍त भाषाएं इसी राष्‍ट्र के लोगों के द्वारा बोली जाती हैं, लिहाजा वे सभी राष्‍ट्रीय भाषाएं ही हैं। हर जगह सम्‍पर्क का माध्‍यम अंग्रेजी बन जाने से नुकसान पहुंचा है, क्‍योंकि बहुत कम लोग हैं, जो अंग्रेजी बोलते हैं। प्रो. द्विवेदी ने ऐसे अनेक विद्वानों का उल्‍लेख किया जिन्‍होंने  हिंदी और भाषायी पत्रकारिता में अभूतपूर्व योगदान दिया है। नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषताएं गिनाते हुए उन्‍होंने कहा कि भारतीय भाषाओं में अंतर संवाद से वे एक दूसरे के गुण अपनाएंगी और अंतत: सर्वव्‍यापी, सर्वग्राह्य बनेंगी। इससे भाषायी विद्वेष की भावना का अंत होगा, परम्‍पराओं का समन्‍वय होगा और सभी को सामाजिक न्‍याय तथा आर्थिक न्‍याय प्राप्‍त होगा।
 
उन्‍होंने कहा कि भाषायी विविधता और बहुभाषी समाज आज की आवश्‍यकता है और समस्‍त भाषाओं के लोगों ने ही विश्‍व में अपनी उपलब्धियों के पदचिन्‍ह छोड़े हैं। उन्‍होंने कहा कि भारत सदैव वसुधैव कुटुम्‍बकम की बात करता आया है और सभी भाषाओं को साथ लेकर चलने के पीछे भी यही भावना है।
 
ये भी पढ़ें
क्या वाकई कमलनाथ और दिग्विजय के बीच बढ़ रही हैं दूरियां?