होली : बचें हानिकारक रंगों से
लीना बड़जात्या
हकीकत में होली पर रंग की तरह बिकने वाले और बहुतायत से उपयोग में लाए जाने वाले पदार्थ ऑक्सीकृत धातुओं से बने होते हैं, हरा रंग कॉपर सल्फेट से बनाया जाता है, जिसे आम भाषा में तूतिया कहा जाता है। इसे नंगे हाथों से छूने से लोग हिचकिचाते हैं, लाल रंग पारे के सल्फाइड में बनता है तो काला रंग शीशे के ऑक्साइड से, इसके अलावा इन रंगों में मिलाए जाते हैं एस्बेस्टस, खड़िया पावडर या सिलिका जैसा पदार्थ। एस्बेस्टस के बारे में यह तो सर्वविदित है कि यह मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद शरीर में एकत्रित हो जाता है और बरसों बाहर नहीं निकलता है। इसकी सूक्ष्म मात्रा भी कैंसर पैदा कर सकती है। इसके अलावा इससे फेफड़ों का गंभीर रोग एस्बेस्टोसिस भी हो सकता है। ये एक बार आंख में पड़ जाए तो आंख में लालिमा, जलन और सूजन से लेकर हमेशा-हमेशा के लिए आंख की रोशनी जा सकती है। कुछ संवेदनशील लोगों में तो रंग में मिले हानिकारक पदार्थ हमेशा के लिए एलर्जी और दमे की तकलीफ तक पैदा कर सकते हैं, बाजार में कृत्रिम रंग खरीदते हुए यदि कुछ बातों का खयाल रखा जाए तो आप न सिर्फ अपना ही नहीं अपनों की सेहत का भी ध्यान रख सकेंगे। चलें अगले पेज पर....
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पानी में आसानी से और पूरी तरह से घुल जाने वाले रंग ही खरीदें। -
स्थायी रंग, स्याहियां, सुनहरे और चमकीले, चांदी जैसे रंग और पेंट न खरीदें।