जातिगत गणित में पिछड़ गई भाजपा
गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था कि गुजरात में जातिवाद के बीज बोने की कोशिश की जा रही है। मोदी के इस बयान में दम भी है क्योंकि वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा-कांग्रेस के बीच करीब 8 फीसदी का अंतर है। साथ ही भाजपा का वोट प्रतिशत पिछली बार की तुलना में भी ज्यादा है, लेकिन सीटें पिछली बार की अपेक्षा 17 कम हो गईं।
आंकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा को 49.1 फीसदी वोट यानी एक करोड़ 47 लाख से ज्यादा वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 41.4 प्रतिशत अर्थात एक लाख 24 हजार से ज्यादा वोट मिले, लेकिन सीटों के मामले में पार्टी गच्चा खा गई और 99 के फेर में पड़ गई।
दरअसल, शहरी क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार अच्छे मतों से जीते, लेकिन ग्रामीण इलाकों में जातिवादी समीकरणों के चलते भाजपा का गणित बिगड़ गया। हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी फैक्टर भी भाजपा के खिलाफ गया। मेवाणी के कारण जहां दलित वोटरों का एक हिस्सा कांग्रेस के साथ चला गया, वहीं हार्दिक के चलते पटेल युवा का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो गया।
आंकड़ों के मुताबिक, करीब 33 प्रतिशत पटेलों का साथ कांग्रेस को मिला, जिसके चलते उसने सौराष्ट्र की 55 प्रतिशत सीटें जीत लीं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो 40 से ऊपर के पटेलों ने या तो भाजपा का साथ दिया या फिर गुस्सा दिखाते हुए नोटा का इस्तेमाल किया, लेकिन युवा पटेलों का वोट हार्दिक के चलते कांग्रेस की तरफ हो गया।
यह इससे भी साबित होता है कि गुजरात में इस बार 18 से 40 साल की उम्र के 52 फीसदी वोटर हैं, इनमें 38 प्रतिशत ने कांग्रेस का साथ दिया। इससे यह तो साबित होता ही है कि हार्दिक अपने समुदाय के युवाओं को कांग्रेस से जोड़ने में सफल रहे। जबकि पिछले चुनाव में 25 प्रतिशत युवा वोटर भाजपा के साथ था।
तटीय इलाकों पर नजर डालें तो राज्य के कोली समुदाय ने भी भाजपा के प्रति नाराजगी का इजहार किया है। ऐसा माना जाता है कि नोटबंदी के चलते मछुआरों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था, जिसका बदला उन्होंने अपने वोट से लिया। तटीय जिले पोरबंदर और जूनागढ़ की 9 में से 5 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गईं। आदिवासी इलाकों में भी भाजपा को नुकसान हुआ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि गुजरात में भाजपा की सत्ता तो बच गई, लेकिन भविष्य में उसके लिए यह खतरे की घंटी जरूर है। यदि भाजपा ने इस मामले में गंभीरता से नहीं सोचा तो गुजरात तो ठीक केन्द्र और अन्य राज्यों की सत्ता भी दांव पर लग जाएगी।