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Written By राम यादव

अब चलेगा थ्रीडी टीवी का जादू - भाग 1

आईटी
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आप टेलीविज़न की एक दुकान में खड़े हैं। चौड़े पर्दे वाले एक टेलीविज़न पर आपकी नज़र पड़ती है। क्षण भर के लिए आप भौचक्के रह जाते हैं। भ्रम में पड़ जाते हैं कि आप टेलीविज़न देख रहे हैं या खिड़की से बाहर। आपको लगता है, बाहर सड़क पर की कार सीधे आप की तरफ़ आ रही है।

कार से बचने के लिए अचकचा कर आप बगल में हट जाते हैं। लेकिन, कार आप की बगल से होकर नहीं निकलती। तब आपकी समझ में आता है कि आप टेलीविज़न पर शायद किसी 3D यानी त्रिआयामी फ़िल्म का एक दृश्य देख रहे थे।

घरेलू कामकाज के उपकरणों और मल्टीमीडिया उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक के बर्लिन में लगने वाले संसार के सबसे बड़े वार्षिक मेले में इस बार इसी तरह के त्रिआयामी टेलिविज़न सेटों की धूम थी. मेला तीन से आठ सितंबर तक चला। संसार की 1400 कंपनियों ने उस में भाग लिया और लाखों दर्शक उसे देखने आये।

50वीं बार लगा यह मेला 4 दिसंबर 1924 को पहली बार लगा था। 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने तक 'अंतरराष्ट्रीय रेडियो प्रदर्शनी' IFA के नाम से हर साल लगा करता था, हालांकि 1928 से उस में नए-नए टेलीविज़न सेट भी दिखाये जाने लगे थे। युद्ध के अंत के बाद 1950 में इस मेले का लगना फिर से शुरू हुआ।

पहले जर्मनी के ही अलग-अलग शहरों में, लेकिन 1971 से एक बार फिर (पश्चिम) बर्लिन में। औपचारिक नाम अब भी 'अंतरराष्ट्रीय रेडियो प्रदर्शनी' IFA ही है, लेकिन इस बीच वह ऑडियो-वीडियो से लेकर मोबाइल फ़ोन और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसी हर तरह की चीज़ों का संसार का सबसे बड़ा उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक मेला बन गया है।

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तीसरा आयाम
अपनी दोनो आँखों से हम जो कुछ देखते हैं, उसके हमेशा तीन तल या आयाम होते हैं-- लंबाई, चौड़ाई और हम से दूरी दिखाने वाली गहराई। लेकिन, सिनेमा हॉल या टेलीविज़न के पर्दे पर हर चीज़ केवल द्विआयामी ही रह जाती है। गहराई वाला आयाम नहीं बन पाता।

फ़िल्मों में इस कमी को दूर करने के लिए 1895 से ही प्रयास होते रहे हैं। आंशिक सफलताएँ भी मिली हैं। दर्शकों को काफ़ी प्रभावित करने वाली 1950 वाले दशक में आयीं सिनेमास्कोप फ़िल्में भी ऐसा ही एक प्रयास थीं। लेकिन, सही सफलता कंप्यूटर और डिजटल तकनीक की बलिहारी से अब जाकर मिली है।

डिजिटल तकनीक के कारण ही उच्च सुस्पष्टता वाले हाई डेफ़िनिशन टेलीविज़न (HDTV) का विकास करना और उसे इतना सस्ता बनाना संभव हुआ कि लगभग हर कोई उसे ख़रीद सके। टेलीविज़न निर्माता कंपनियों ने बर्लिन में जो त्रिआयामी सेट दिखाये, वे सभी साथ ही हाई डेफ़िनिशन टेलिविज़न हैं।

16:9 के अनुपात वाले पर्दे और 1920x1080 पिक्सल (चित्रबिंदु) वाले तथाकथित फ़ुल हाई डेफिनिशन (Full HD) का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उसकी हर तस्वीर में, अब तक के अनालोग (ग़ैर डिजिटल) टेलीविज़न की अपेक्षा, पाँच गुना अधिक बारीक़ी और स्पष्टता होती है।

समस्या यह है कि HDTV को बाज़ार में आये अभी इतना कम समय हुआ है कि स्वयं बहुत उन्नत देशों में भी वह घर-घर नहीं पहुँच पाया है। न ही उन्नत देशों के सभी टेलीविज़न केंद्र उसके लायक ख़र्चीली प्रसारण तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। ऐसे में त्रिआयमी टेलीविज़न दूसरा क़दम पूरा होने से पहले ही तीसरा क़दम उठा लेने जैसा सिद्ध हो सकता है।