शनिवार, 26 अप्रैल 2025
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Written By समय ताम्रकर

विक्की डोनर : फिल्म समीक्षा

विक्की डोनर
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निर्माता : सुनील ए. लुल्ला, जॉन अब्राहम, रॉनी लाहिरी
निर्देशक : शुजीत सरकार
कलाकार : आयुष्मान खुराना, यमी गौतम, अन्नू कपूर, जॉन अब्राहम (मेहमान कलाकार)
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * अवधि : 2 घंटे 2 मिनट
रेटिंग : 3/5

स्पर्म डोनेशन जैसे विषय पर फिल्म बनाना रस्सी पर चलने जैसा है। संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। विषय को थोड़ा मसालेदार बनाया जाए तो हो सकता है कि फिल्म फूहड़ लगे। विषय को गंभीर रखा जाए तो फिल्म डॉक्यूमेंट्री बन सकती है, लेकिन ‘विक्की‍ डोनर’ में निर्देशक शुजीत सरकार ने इस विषय को कुछ इस तरह पेश किया है कि लगभग पूरी फिल्म में मनोरंजन होता रहता है, साथ ही वे यह बात कहने में भी सफल रहे हैं कि स्पर्म डोनेट किए जाए तो ऐसे कई लोगों को संतान की खुशी मिल सकती है जो कुछ कारणों से इससे वंचित हैं।

फिल्म की लेखक जूही चतुर्वेदी और निर्देशक सरकार ने जितने भी चरित्र गढ़े हैं वे बेहतरीन हैं। हर किरदार कुछ खासियत लिए हुए हैं। सीन दर सीन वे सामने आते रहते हैं और मनोरंजन करते रहते हैं। फिल्म का हीरो विक्की (आयुष्मान खुराना) बेरोजगार है, लेकिन स्पर्म डोनेशन को ऐसा काम मानता है जिससे समाज में उसकी बदनामी हो सकती है। उसे लगता है कि बिना शादी के वह बाप बन जाएगा। उसकी सोच के जरिये एक आम भारतीय की सोच स्पर्म डोनेशन के बारे में बताई गई है।

विक्की को राजी करने के लिए उसके पीछे पड़ा फर्टिलिटी क्लिनिक चलाने वाला डॉ. बलदेव चड्ढा (अन्नू कपूर) का किरदार भी बेहतरीन लिखा गया है। लगभग एक तिहाई फिल्म बलदेव द्वारा विक्की को राजी करने में ही खर्च की गई है और फिल्म का यह हिस्सा सर्वश्रेष्ठ है। दोनों की नोक-झोक होती रहती है और उनके द्वारा बोले गए संवाद सुनने लायक हैं।

विक्की का मां ब्यूटी पार्लर चलाती है और टिपिकल पंजाबी है, लेकिन वैसी नहीं है जैसा आमतौर पर फिल्मों में पंजाबी मां को दिखाया जाता है। विक्की की दादी को बड़ा ही एडवांस बताया गया है जो आधुनिक तकनीक से अच्छी तरह परिचित है। सास-बहू के साथ में ड्रिंक्स लेने वाले दृश्य डायरेक्टर और राइटर के इमेजिनेशन का उम्दा नमूना है।

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विक्की के स्पर्म में बड़ा ही दम है। विक्की और बलदेव इसके जरिये खूब माल बनाते हैं, लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब विक्की को एक बंगाली लड़की आशिमा रॉय (यामी गौतम) से प्यार हो जाता है। डॉ. बलदेव को लगता है कि विक्की अब उसके हाथ से निकल जाएगा।

विक्की और आशिमा की लव स्टोरी को निर्देशक ने बहुत अच्छे तरीके से संभाला है। फिल्म गोता तब लगाती है जब दोनों के घर वाले यानी कि बंगाली और पंजाबी आमने-सामने होते हैं। एक-दूसरे को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। थोड़ी देर यह अच्छा लगता है, लेकिन इसे कुछ ज्यादा ही खींचा गया है।
आशिमा को एक समझदार लड़की बताया गया है, लेकिन शादी के बाद जब उसे पता चलता है कि उसका पति स्पर्म डोनेट करता है तो उसका रूठना जंचता नहीं है। दोनों के सेपरेशन वाले सीन भी लंबे हो गए हैं, लेकिन फिल्म क्लाइमेक्स में फिर ट्रेक पर आ जाती है।

निर्देशक शुजीत सरकार ने दिल्ली का जो माहौल पैदा किया है वह सराहनीय है। पंजाबी किरदार को ‍छोटे-छोटे डिटेल के साथ पेश किया गया है। साथ ही उन्होंने अपने सभी कलाकारों से बेहतरीन अभिनय निकलवाया है।

आयुष्मान खुराना ने पंजाबी मुंडे की भूमिका खूब निभाई है। उनमें भरपूर आत्मविश्वास है और अन्नू कपूर जैसे अभिनेता के सामने वे कम नहीं लगे हैं। यामी गौतम ने भी एक सेल्फ डिपेंडेंट और इंटेलिजेंट वूमैन के किरदार को अच्छे से पेश किया है और खूबसूरत भी लगी हैं।

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अन्नू कपूर ने फिर साबित किया है कि वे कितने बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्होंने अपने अभिनय से अपने किरदार को फूहड़ नहीं होने दिया है। मां के रूप में डॉली अहलूवालिया और दादी के रूप में कमलेश गिल उल्लेखनीय हैं। फिल्म के अंत में जॉन अब्राहम के गाने की कोई जरूरत नहीं थी।

‘विक्की डोनर’ एंटरटेनमेंट और मैसेज दोनों देती है।