‘दशावतार’ (डब) फिल्म का निर्माण इसलिए किया गया है ताकि कमल हासन दिखा सकें कि वे कितने प्रतिभाशाली हैं। इस फिल्म में उन्होंने दस भूमिकाएँ निभाई हैं। हीरो भी वे ही हैं, विलेन और सहायक भूमिकाएँ भी उन्होंने ही निभाई हैं। बूढ़ी अम्मा, अंग्रेज, चीनी, बंगाली बाबू, जॉर्ज बुश, सरदार, वैज्ञानिक जैसे कई किरदार उन्होंने निभाए हैं। उन्होंने दिखाने की कोशिश की है कि वे हर प्रकार की भूमिकाएँ निभा सकते हैं। निर्देशक और लेखक का सारा ध्यान इसी बात में लगा रहा कि हर दृश्य में कमल का कमाल दिखे और इसके लिए उन्होंने कहानी, स्क्रीनप्ले जो किसी भी फिल्म के मुख्य आधार पर होते हैं, को दोयम दर्जा दिया। अगर कमल के कमाल को देखने के लिए भी यह फिल्म देखी जाए तो भी निराशा हाथ लगती है। मैकअपमैन ने कमल का मैकअप ऐसा किया है कि वे पहचान में नहीं आते, लेकिन कमल द्वारा निभाए गए अधिकांश चरित्रों का मैकअप इतना भद्दा है कि बनावटी लगता है।
फिल्म की कहानी 12वीं सदी से शुरू होती है और इक्कीसवीं सदी पर खत्म होती है। 12वीं सदी और इक्कीसवीं सदी में संबंध जोड़ने की कोशिश की गई है, जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता। 12वीं सदी वाले सारे दृश्य भी फिल्म से हटा लिए जाएँ तो फिल्म पर कोई असर नहीं होगा, जिसमें शिव समर्थक बनाम विष्णु समर्थक की लड़ाई दिखाई गई है।
फिर कहानी आती है 21वीं सदी में। 2004 का समय है और अमेरिका स्थित प्रयोगशाला में एक वायरस का निर्माण किया जाता है, जो पलभर में लाखों लोगों की जान ले सकता है। इस वायरस को कुछ देश हथियाना चाहते हैं। जब गोविंद नामक भारतीय वैज्ञानिक को इस बात का पता चलता है तो वह उस वायरस को लेकर भाग निकलता है। वह भारत पहुँचता है और उसके पीछे-पीछे फिल्म का विलेन भी आ जाता है। फिर शुरू होता है टॉम एंड जैरी का खेल।
इस कहानी में ढेर सारे मसाले डालकर फिल्माया गया है। विशेष एक्शन दृश्य, कार-ट्रेन-हेलिकॉप्टर के जरिये पीछा करना, हीरो और विलेन की कलाबाजियाँ, नाच, गाने और वे सारे तत्व जिनसे दर्शकों को आकर्षित किया जा सके, लेकिन बात नहीं बनती। फिल्म से दर्शक कहीं भी जुड़ नहीं पाता।
इस फिल्म के जरिये निर्देशक और लेखक के रूप में कमल हासन बहुत कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन कोई भी बात सामने नहीं आती। ऐसा लगता है कि दस लोग एक साथ बोल रहे हों। फिल्म के स्क्रीनप्ले में ढेर सारी खामियाँ हैं। कमल हासन के दसों किरदार को ज्यादा फुटेज देने के चक्कर में फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है। कमल हासन और असीन के बीच फिल्माए गए किरदार खीज पैदा करते हैं। पूरी फिल्म में असीन बेमतलब की बक-बक करती रहती हैं और ये बक-बक बसंती की तरह प्यारी नहीं है।
IFM
एक्स सीआईए एजेंट, वैज्ञानिक और बंगाली किरदार के रूप में कमल हासन का अभिनय अच्छा है, शेष किरदार ठीक से बुरे हैं। असीन निराश करती हैं। मल्लिका शेरावत छोटे से किरदार में असर छोड़ती हैं। जया प्रदा ने कमल हासन से अपने संबंधों की खातिर यह फिल्म की है।
फिल्म के निर्माण में खूब पैसा खर्च किया गया है। कुछ एक्शन दृश्य अच्छे बन पड़े हैं। हिमेश रेशमिया के संगीत में दम नहीं है। डबिंग उम्दा है। कुल मिलाकर यह कमल हासन शो निराश करता है।