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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2025 (14:38 IST)

Dussehara 2025: दशहरे पर क्यों बांटी जाती है शमी की पत्तियां, जानिए क्या है शमी के वृक्ष का महत्व

significance of shami tree leaves on dussehra
Significance of shami tree leaves on dussehra: अश्विन मास के शारदीय नवरात्र में शक्ति पूजा के नौ दिन बाद दशहरा अर्थात विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक इस पर्व के दौरान रावण दहन और शस्त्र पूजन के साथ शमीवृक्ष का भी पूजन किया जाता है। संस्कृत साहित्य में अग्नि को 'शमी गर्भ' के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष का पूजन करते आए हैं। खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का महत्व ज्यादा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने हथियार छुपाए थे और बाद में उन्हें कौरवों से जीत प्राप्त हुई थी।

सोना पत्ती बांटने की परंपरा के पीछे सांस्कृतिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक कारण: धार्मिक मान्यताओं के साथ ही, इस परंपरा का सांस्कृतिक महत्व भी है। भारत के विभिन्न हिस्सों में लोग एक दूसरे को सोना पत्ती देकर शुभकामनाएँ देते हैं। इसे देने का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक समृद्धि और अच्छे संबंधों को बढ़ावा देना भी है। यह पत्ती समृद्धि, शांति, और अच्छे भविष्य का प्रतीक मानी जाती है। ग्रामीण इलाकों में इसे व्यापार और आर्थिक समृद्धि के साथ जोड़ा जाता है, जिससे यह त्योहार व्यापारियों और किसानों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों के साथ-साथ, सोना पत्ती बांटने की परंपरा के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी हो सकता है। शमी के वृक्ष को भारतीय आयुर्वेद में विशेष स्थान प्राप्त है। इसकी पत्तियों में औषधीय गुण होते हैं जो हवा को शुद्ध करने में मदद करते हैं। विजय दशमी के समय मानसून का अंत होता है, और ऐसे में वातावरण को शुद्ध करने के लिए शमी वृक्ष की पत्तियों का उपयोग फायदेमंद माना जाता है।

भविष्यवक्ता शमी : विक्रमादित्य के समय में सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने भी अपने 'बृहतसंहिता'नामक ग्रंथ के 'कुसुमलता' अध्याय में वनस्पति शास्त्र और कृषि उपज के संदर्भ में जो जानकारी प्रदान की है उसमें शमीवृक्ष अर्थात खिजड़े का उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति का निर्माण होता है। विजयादशमी के दिन इसकी पूजा करने का एक तात्पर्य यह भी है कि यह वृक्ष आने वाली कृषि विपदा का पहले से संकेत दे देता है जिससे किसान पहले से भी ज्यादा पुरुषार्थ करके आने वाले संकट का सामना कर सकता है।

शमी वृक्ष से लाभ : भारत में खासकर गुजरात में कई किसान अपने खेतों में शमीवृक्ष बोते हैं जिसे उन्हें कई सारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ भी हुए है। यह वृक्ष पानखर जैसा कांटेदार वृक्ष है जिसके पत्ते सूख जाने के बाद उसमें छोटे-छोटे पीले फूल आते हैं। उसकी जड़ जमीन में बहुत गहराई तक जाती है जिससे उपज के सूखने का भय नहीं रहता। यह वृक्ष हर साल कई प्राणियों के लिए चारे का काम करता है। गर्मियों के दिनों में बहुत ही फूलता-फलता है और उसमें ढेर सारे पत्ते आते हैं। खेत की मेढ़ पर उसे बोने से फसल पर पड़ने वाले वायु के अधिक दबाव को भी वह कम कर देता है। जिससे खेत की फसलों को तूफान से होने वाले नुकसान नहीं होते। इस वृक्ष की लकड़ियों से आज भी कई गांवों में घर के चूल्हे जलते हैं। विदेशों के कृषि विशेषज्ञों ने भी यह बात मान ली है कि जिस खेत में शमी वृक्ष बोया जाता है उस खेत के किसान को देर-सबेर कई सारे फायदे होते हैं। शायद इसलिए ही हिंदू धर्म में बरगद, पीपल, तुलसी और बिल्व पत्र जैसे पवित्र वृक्षों की तरह ही इस शमी वृक्ष (खीजड़ा)को भी पूजनीय माना जाता है।

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