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पोषण और आमदनी का जरिया बन सकती हैं झारखंड की सब्जी प्रजातियां

पोषण और आमदनी का जरिया बन सकती हैं झारखंड की सब्जी प्रजातियां - nutritional potential of vegetables
नई दिल्ली। गरीब और पिछड़ा माने जाने वाले झारखंड जैसे राज्यों के जनजातीय लोग कई ऐसी सब्जियों की प्रजातियों का उपभोग अपने भोजन में करते हैं जिनके बारे में देश के अन्य हिस्सों के लोगों को जानकारी तक नहीं है।
 
भारतीय शोधकर्ताओं ने झारखंड के स्थानीय आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऐसी पत्तेदार सब्जियों की 20 प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा दे सकती हैं। पोषण एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी सब्जियों की ये स्थानीय प्रजातियां मददगार हो सकती हैं।
 
सब्जियों की इन प्रजातियों में शामिल लाल गंधारी, हरी गंधारी, कलमी, बथुआ, पोई, बेंग, मुचरी, कोईनार, मुंगा, सनई, सुनसुनिया, फुटकल, गिरहुल, चकोर, कटई/ सरला, कांडा और मत्था इत्यादि झारखंड के आदिवासियों के भोजन का प्रमुख हिस्सा हैं। जनजातीय लोगों द्वारा भोजन में सबसे अधिक उपभोग लाल गंधारी, हरा गंधारी और कलमी का होता है, वहीं गिरहुल का उपभोग सबसे कम होता है।
 
अध्ययनकर्ताओं ने रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदग्गा, पश्चिमी सिंहभूमि, रामगढ़ और हजारीबाग समेत झारखंड के 7 जिलों के हाट (बाजारों) में सर्वेक्षण कर वहां उपलब्ध विभिन्न मौसमी सब्जियों की प्रजातियों के नमूने एकत्रित किए हैं। इन सब्जियों में मौजूद पोषक तत्वों, जैसे विटामिन-सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशयम, पोटैशियम, सोडियम और सल्फर, आयरन, जिंक, कॉपर एवं मैगनीज, कैरोटेनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट गुणों का पता लगाने के लिए नमूनों का जैव-रासायनिक विश्लेषण किया गया है।
 
विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर जनजातीय इलाकों में पाई जाने वाली ये पत्तेदार सब्जियां स्थानीय आदिवासियों के भोजन का अहम हिस्सा होती हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशयम, आयरन, पोटैशियम जैसे खनिज तथा विटामिन पाए गए हैं। इन सब्जियों में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जबकि कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का स्तर बेहद कम पाया गया है।
 
अध्ययन के अनुसार इन सब्जियों की उपयोगिता के बावजूद इन्हें गरीबों एवं पिछड़े लोगों का भोजन माना जाता है और व्यापक रूप से कृषि चक्र में ये सब्जियां शामिल नहीं हैं, जबकि सब्जियों की ये प्रजातियां खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल और आमदनी का जरिया बन सकती हैं। एक खास बात यह है कि बेहद कम संसाधनों में इनकी खेती की जा सकती है।
 
बरसात एवं गर्मी के मौसम में विशेष रूप से जनजातीय समुदाय के लोग खाने योग्य विभिन्न प्रकार के पौधे अपने आसपास के कृषि, गैरकृषि एवं वन्य क्षेत्रों से एकत्रित करके सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं। इन सब्जियों को विभिन्न वनस्पतियों, जैसे झाड़ियों, वृक्षों, लताओं, शाक या फिर औषधीय पौधों से प्राप्त किया जाता है।
 
सब्जियों को साग के रूप में पकाकर, कच्चा या फिर सुखाकर खाया जाता है। सुखाकर सब्जियों का भंडारण भी किया जाता है ताकि पूरे साल उनका भोजन के रूप में उपभोग किया जा सके। अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न मौसमों में भिन्न-भिन्न प्रकार की सब्जियां उपयोग की जाती हैं। इनकी पत्तियों, टहनियों और फूलों को मसालों अथवा मसालों के बिना पकाकर एवं कच्चा खाया जाता है।
 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना एवं रांची स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका 'करंट साइंस' में प्रकाशित किया गया है। अध्ययनकर्ताओं में अनुराधा श्रीवास्तव, आरएस पैन और बीपी भट्ट शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)
 
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