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Last Updated : शनिवार, 2 नवंबर 2019 (14:36 IST)

क्या पाकिस्तान के टुकड़े होंगे? जानिए कैसे,

क्या पाकिस्तान के टुकड़े होंगे? जानिए कैसे, - India's masterstroke to free POK and Baluchistan
कश्मीर के मुद्दे पर इन दिनों भारत और पाकिस्तान के संबंध इस हद तक खराब हो चुके हैं जितने कभी भी नहीं रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण है कि पहली बार भारत के प्रधानमंत्री द्वारा पाकिस्तान की दुखती रग को छेड़ा गया है। जितना संवेदनशील भारत कश्मीर को लेकर है उससे कई अधिक नाजुक रिश्ता पाकिस्तान का बलूचिस्तान के साथ रहा है। 1948 में बलूचिस्तान पर पाकिस्तान के कब्जे के बाद से ही स्थानीय लोगों और पाक सेना में झड़पे चलती रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बलोच लोगों को समर्थन के तुरंत बाद बलूचिस्तान में पाकिस्तान से आजादी की मांग तेज हो गई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस मसले को हवा मिली है। 

बलूचिस्तान में पाक सेना-पुलिस के स्थानीय लोगों पर अत्याचार, भारत की एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) सदस्यता को लेकर दोनों देशों का विरोध और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (चाइना-पाकिस्तान इकॉनामिक कॉरिडोर) को लेकर दोनों पड़ोसी देशों को लेकर भारत सरकार की नीति में यह महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। MUST READ : ग्वादर पर गदर, मोदी का दोहरे मोर्चे पर लड़ाई का इरादा 
इस सारे घटनाक्रम से अनुमान लगाया जा रहा है कि संभव है कि आने वाले कुछ समय में पाकिस्तान का नक्शा एक बार फिर बदल सकता है।  हालांकि किसी भी भावी घटनाक्रम का पूर्वानुमान लगाने के लिए बहुत सारे किंतु, परन्तुओं का इस्तेमाल करना होता है लेकिन कभी-कभी कल्पना भी  वास्तविकता से ज्यादा प्रखर हो सकती है। जहां पर देश की सुरक्षा की बात आती है तो भारतीय एजेंसियां फिलहाल आंतरिक सुरक्षा पर अधिक ध्यान दे रही हैं। 
 
देखा जाए तो पिछले कुछ सालों खासकर अमेरिकी फौज के अफगानिस्तान से हटने के बाद भारत-अफगानिस्तान संबंधों में अधिक प्रगाढ़ता आई है।  इसकी वजह से बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की पकड़ कमजोर प‌ड़ने लगी है। उल्लेखनीय है कि मोदी के बलूचिस्तान पर आए बयान के तुरंत बाद पूर्व अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने इस बयान का स्वागत किया था। यह भी पढ़ना न भूलें : बलूचिस्तान का प्राचीन इतिहास और समस्या की वजहें... 

यदि पिछले कुछ सालों में भारत और अफगानिस्तान के संबंधों पर नजर डाले तो कहा जा सकता है कि फिलहाल भारत, दक्षिणी अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी को पुख्ता बनाने के उपाय कर रहा है। भारतीय एजेंसिया अफगानिस्तान में हवाई अड्‍डों और हेलीपैड्‍स को बना रहा है और इन बुनियादी सेवाओं के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में सामान तजाकिस्तान स्थित फरखोर हवाई अड्‍डे से उपलब्ध हो रहा है।

विदित हो कि फरखोर कस्बा ताजिकिस्तान में है और देश की राजधानी दुशान्बे से करीब 130 किमी (81मील) दक्षिण पूर्व में स्थि‍त है। इस सैनिक अड्‍डे को भारतीय वायु सेना, ताजिक वायु सेना के साथ मिलकर संचालित करती  है।

गौर करें कि फरखोर भारत का पहला और एकमात्र सैनिक अड्‍डा है जोकि देश के भूभाग से बाहर है और एक स्टेजिंग पाइंट के तौर पर आदर्श है। कुछ रिपोर्ट के मुताबिक भारत दक्षिण अफगानिस्तान और पाकिस्तान सीमा (पंजाब और राजस्थान) पर बड़े पैमाने पर हथियारों और सैन्यबल जुटा रहा है। यहां पर कई सैन्य डिवीजन और टैंक और आर्मड रेजिमेंट्स  की तैनाती की जा रही है। इसके साथ ही, भारतीय नौसैनिक बल और मैरीन कमांडोज को भी दुरुस्त हालत में युद्ध का सामना करने के लिए तैयार किया जा रहा है। हाल ही में भारत ने चीन से लगी अपनी सीमा में सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल तैनात कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। 
 
सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत-पाक युद्ध की स्थिति में भारत की जीत तभी सुनिश्चित की जा सकती है जबकि भारतीय वायुसेना कार्रवाइयों के शुरू होने के मात्र 12 घंटों के अंदर ही पाकिस्तान की वायुसेना पर काबू पा ले। पीओके, गिलगित और बाल्टिस्तान पर हमले के लिए सेना की माउंटेन डिवीजन को हमले के लिए तैयार रखना होगा और इसके साथ ही, यह इस्लामाबाद को भी घेरने का काम कर सकती है। 
 
समुद्री युद्ध की स्थिति में भारतीय नौसेना को मकरान के समुद्री तट, ग्वादर पोर्ट को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनानी होगी। पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची पर भारतीय बख्तरबंद डिवीजनों और भारतीय लड़ाकू विमानों और अरब सागर में पनडुब्बियों को एक साथ मिलकर हमला करना होगा। इस हमले का उद्देश्य जहां पाकिस्तान में पंजाब और सिंध की सम्पर्क कड़ी को काट देना होगा। पाकिस्तान में यह लिंक एन 5 और एन 55 राजमार्गों के तौर पर जुड़ा है।
आगे जानिए क्या कहना है अमेरिकी विशेषज्ञों भारतीय सेना काी बारे में...  

अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यदि भारत पूर्ण युद्ध करे तो पाकिस्तान को झुकाने में केवल दो सप्ताह का समय काफी होगा और इसके बाद बलूचिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो सकता है। इसके समर्थन में नीचे दिए गए कुछ मुद्दों से समझा जा सकता है कि इसे किस तरह क्रियान्वित किया जा सकता है।


जरूर पढ़े : क्या है बलूचिस्तान- समस्या की जड़ में? 

1. पहली बात तो यह है कि दो भारतीय राज्यों (जम्मू और कश्मीर और पंजाब) में पाकिस्तान का छद्मयुद्ध भारत के मात्र दस फीसदी से भी अधिक हिस्से को प्रभावित कर सकता है। लेकिन बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में अशांति पाकिस्तान के 40 फीसदी हिस्से को प्रभावित कर सकती है।  
 
2. पाकिस्तान ने यह सबक नहीं सीखा है जो लोग कांच के घरों में रहते हैं वे दूसरों के घरों में पत्‍थर नहीं फेंका करते हैं। पाकिस्तान ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि भारत-अफगानिस्तान मिलकर कोई खेल कर सकते हैं या उसने सोचा होगा कि भारत के जागने से पहले वे भारत को विखंडित कर सकते हैं। लेकिन अब भारत की योजना है कि छद्म युद्धों को पाकिस्तान की ही जमीन पर लड़ा जाना चाहिए और पाकिस्तान को जैसे का तैसा जवाब देना चाहिए। 
लेकिन यह इस पर भी विचार कर लेना चाहिए कि पाकिस्तान में किसी छद्म युद्ध को इन बातों की भी जरूरत होगी। जैसाकि सारी दुनिया में देखा गया है कि एक सफल छद्म युद्ध वह होता है जोकि देश के भूभाग के एक हिस्से को काट देने में सफल रहे या फिर देश में सत्ता परिवर्तन ही कर सके। 
 
परंतु इसके लिए चार बड़ी बातों पर ध्यान देना जरूरी होगा :  
  1. विद्रोही सेना का संख्या बल कितना है।
  2. विद्रोहियों को वास्तव में कितनी मात्रा में बाहरी मदद या सैन्य सहायता उपलब्ध करानी होगी।  
  3. एक सशस्त्र विद्रोह को दबाने के लिए उस देश की सेना का दृढ़ विश्वास और क्षमता कितनी है।  
  4. किसी दूसरे देश द्वारा बाहरी सैन्य कार्रवाई के लिए कितनी भौतिक मौजूदगी जरूरी होगी।
विदित हो कि अजीत डोवाल पहले ही पाकिस्तान को चेतावनी दे चुके हैं कि अगर उसने पाकिस्तान में अपनी आतंकवादी कार्रवाइयों को जारी रखा तो उसे बलूचिस्तान से हाथ धोना पड़ेगा। साथ ही, नरेन्द्र मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संघर्ष की बात कही है। मोदी द्वारा बलूचिस्तान पर सिर्फ बात करने से ही आनन-फानन में पाकिस्तान ने बलूच विधानसभा में मोदी की निंदा का प्रस्ताव भी पारित करवा दिया  

उल्लेखनीय है कि कुछ महीनों पहले भी पाक अधिकृत कश्मीर में पाक सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे और हाल ही में सिंध प्रांत में भी पाकिस्तान के विरोध में नारे लगे है जो पाकिस्तान में भारतीय मुसलमानों पर कहर बरपाने और MQM के दफ्तर ढहाने के बाद और तेज हो रहे हैं।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से विस्थापित होकर भारत आए लोगों को केंद्र सरकार दो हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने की योजना बना रही है। गुलाम कश्मीर या बलूचिस्तान को लेकर भारत की नई कूटनीति यहीं खत्म नहीं होने जा रही है। भारत अगले वर्ष बेंगलुरु में होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस में पीओके, गिलगिट और बाल्टिस्तान के नुमाइंदों को खास तौर पर बुला सकता है। विदेश मंत्रालय में विचार-विमर्श चल रहा है कि किस तरह से दुनिया के अन्य हिस्सों में रह रहे इस क्षेत्र के लोगों से संपर्क साधा जाए और उन्हें इस मौके पर बुलाया जाए।
 
उपरोक्त तथ्यों से इस बात को बल मिलता है कि यदि अब भी पाकिस्तान नहीं चेता तो कोई शक नहीं कि एक बार फिर पाकिस्तान के टुकड़े हो सकते हैं।