Use of DNA for data collection: जन्म से लेकर मृत्यु तक के हमारे या हर जीवधारी के जीवन की विकास-प्रक्रिया डीएनए कोड के रूप में उसकी कोशिकाओं में लिखी रहती है। नैनो टेक्नोलॉजी, डीएनए का उपयोग करके डेटा भंडारण और आणविक सूचना विज्ञान में एक महत्वपूर्ण प्रगति की दिशा में बढ़ रही है।
अमेरिका की नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित करने में सफलता प्रप्त की है, जो न केवल डेटा को संग्रहीत करने की अनुमति देती है, अपितु डीएनए स्ट्रैंड का उपयोग करके इसे संसाधित करने, हटाने और पुनरलेखन (ओवरराइट) करने की भी अनुमति देती है। यह प्रणाली एक हजार लैपटॉप के बराबर डेटा को एक पेंसिल की नोक जितनी छोटी-सी जगह में संग्रहीत और हजारों वर्षों तक के लिए संरक्षित कर सकती है।
डीएनए (DNA) और डीएनए स्ट्रैंड के महत्व को समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि प्रत्येक मनुष्य, प्राणी, पेड़-पौधे या किसी भी जीव-जन्तु की संरचना बहुत जटिल होती है, बहुत सारी कोशिकाओं से मिलकर बनती है। इन कोशिकाओं में वह डीएनए या आनुवंशिक (जेनेटिक) कोड होता है, जिसमें सबको अलग-अलग पहचान देने के साथ-साथ जीवन के विकास, विभिन्न कार्यों और प्रजनन आदि के लिए निर्णायक आधार मानो लिखे हुए होते हैं।
डीएनए का आकार : हर जीव-जन्तु की कोशिकाओं के गुणसूत्रों (क्रोमोज़ोम) में पाए जाने वाले रेशेदार अणु को वैज्ञानिक 'डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिइक एसिड' (Deoxyribonucleic Acid) या संक्षेप में डीएनए (DNA) कहते है। डीएनए के अणु की संरचना एक घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है, जिसे डबल हेलिक्स भी कहा जाता है।
हर जीवित प्राणी या मनुष्य का डीएनए अलग और अनोखा होता है। मनुष्य का डीएनए माता-पिता के डीएनए के मिश्रण से बना होता है। इसीलिए हमें बच्चों में उनके माता-पिता के कई लक्षण भी दिखाई देते हैं, जैसे त्वचा का रंग, आंखें, बाल, शरीर-रचना इत्यादी। डीएनए के डबल हेलिक्स मॉडल में दो लम्बे स्ट्रैंड एक घुमावदार सीढ़ी की तरह दिखाई देते हैं। मानवीय डीएनए का परीक्षण खून का या मुंह की लार का नमूना लेकर किया जाता है। डीएनए इतना सूक्ष्म होता है कि उसे केवल अच्छे सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) की सहायता से ही देखा जा सकता है। इतना सूक्ष्म होते हुए भी उसमें हमारे हर अंग-प्रत्यंग की रचना और भावी क्रमिक विकास के साथ-साथ इतनी सारी जानकारी संचित रहती है कि हम कल्पना नहीं कर सकते।
डीएनए की चमत्कारिक विशेषता : अमेरिकी शोधकर्ता डीएनए की इसी चमत्कारिक विशेषता का भवष्य में डेटा संग्रह और डेटा के भंडारण के लिए लाभ उठाने के उपाय कर रहे हैं। अपने शोधकार्य को उन्होंने "डेन्ड्रिकोलॉइड" नाम दिया है। यह बहुलक एक सूक्ष्म संरचना से निकलकर नैनो आकार के फाइबर का ऐसा नेटवर्क बनाता है, जो डेटा-घनत्व से समझौता किए बिना डीएनए जमा करने के लिए एक बडी सतह प्रदान करता है। उच्च अणुभार वाले ऐसे यौगिक जो अनेक छोटी छोटी इकाइयों की पुनरावृत्ति से बनते हैं, हिंदी में बहुलक और अंग्रेज़ी में पॉलीमर कहलाते हैं।
इस अध्ययन के सह-लेखक ऑरलिन वेलेव के अनुसार, यह अनूठी विधि बहुत बड़ी मात्रा में डेटा संग्रहीत करने की अनुमति देती है और डीएनए के विशिष्ट वर्गों को हटाने या फिर से लिखने जैसे हेरफेर की सुविधा भी प्रदान करती है। डीएनए के सही वाहक और पारंपरिक कंप्यूटर संचालन के बीच अनुकूलता इस शोध की मुख्य चुनौतियों में से एक थी। इस चुनौती का उत्तर देने के लिए विकसित की गई तकनीक, डीएनए को नुकसान पहुंचाए बिना, उसमें संग्रहीत जानकारी को पढ़ने और कॉपी करने की अनुमति देकर इस समस्या पर काबू पा लेती है। सिस्टम डेटा, डीएनए की अखंडता को बनाए रखते हुए, सरल अंकगणितीय संगणन की क्षमता भी प्रदान करता है, जैसे सुडोकू या शतरंज की चालों जैसी समस्याओं को हल करने में। प्रयोगों में देखा गया कि इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों की प्रसंस्करण क्षमताओं के साथ-साथ हर डीएनए, डेटा भंडारण के घनत्व के लाभों को आपस में जोड़ना भी संभव बनाता है।
कंप्यूटिंग अनुप्रयोगों के लिए डीएनए का उपयोग : यह प्रणाली, जिसे "प्राइमॉर्डियल डीएनए स्टोर और कंप्यूटिंग इंजन" कहा जाता है, डेटा भंडारण और कंप्यूटिंग अनुप्रयोगों के लिए डीएनए के व्यापक उपयोग का मार्ग प्रशस्त करती है। इसे एक ऐसा विश्वसनीय और टिकाऊ समाधान देने वाली खोज माना जा रहा है, जिसके द्वारा व्यावसायिक परिस्थितियों में हजारों वर्षों तक डेटा संग्रहीत किया जा सकता है। हालांकि, इन प्रगतियों के बावजूद, संभावित व्यवसायीकरण होने से पहले कुछेक तकनीकी चुनौतियों निपटना अभी बाकी है।
अमेरिका में डीएनए की सहायता से 'गागर में सागर भरने' जैसी यह खोज याद दिलाती है अमेरिका के ही एक भौतिक शास्त्री रिचर्ड फ़ाइनमैन की, जिन्होंने 29 दिसंबर1959 के दिन 'नैनो तकनीक' के बारे में एक भाषण में कहा: हम ''एनसाइक्लोपेडिया ब्रिटैनिका'' की सभी 24 जिल्दें एक सुई के सिर जितनी जगह में ही क्यों नहीं समेटते? फ़ाइनमैन उस दिन पैसाडेना में स्थित कैलिफ़ोर्निया इन्स्टीट्यूट ऑफ़टेक्नॉलॉजी को संबोधित कर रहे थे। उनके कहने का तात्पर्य था कि दसियों हज़ार पृष्ठों वाले ''एनसाइक्लोपेडिया ब्रिटैनिका'' में लिखी बातों को सुई के नन्हें-से सिर वाली उस छोटी-सी जगह में समेट कर लिखना भी संभव है, जो केवल क़रीब 1 मिलीमीटर के बराबर ही होती है।
लघुकरण के लाभ : फ़ाइनमैन का मानना था कि ''एनसाइक्लोपेडिया ब्रिटैनिका'' जैसी पुस्तकों के संपूर्ण शब्द-भंडार को लिखने में लगी जगह को 25 हज़ार गुना छोटा किया जा सकता है। वे कहते थे कि किसी चीज़ पर लिखते समय उस चीज़ के केवल बाहरी हिस्सों का ही नहीं, भीतरी हिस्सों का भी उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने पर बहुत छोटे आकार की किसी भौतिक सामग्री के भीतर भी दुनिया के समग्र ज्ञान को समेटा जा सकता है।
धूल-कणों का उदाहरण देते हुए रिचर्ड फ़ाइनमैन ने कहा कि यदि हम दुनिया की सारी पुस्तकों में लिखे संपूर्ण ज्ञानभंडार को धूल के कुछेक सूक्ष्म कणों में समेट सकते, तो हम यह भी समझ जाते कि चीज़ों के लघुकरण द्वारा जगह बचाने की वास्तव में कितनी असीम संभावनाएं हैं।
60-65 वर्ष पूर्व के उनके समय में कंप्यूटर बेहद भारी-भरकम हुआ करते थे। वे बिजली तो खूब खाते थे, पर 'खोदा पहाड़, निकली चुहिया' वाली कहावत की तरह उनके संगणना परिणाम बहुत मामूली हुआ करते थे। फ़ाइनमैन 1959 में ही कहने लगे थे कि हमें मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉनों) के संजाल की तरह काम करने वाले कंप्यूटर बनाने चाहिए। आज की कृत्रिम कंप्यूटरी बुद्धिमत्ता (AI) मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं के सिद्धांत पर ही आधारित है।
क्वान्टम कंप्यूटर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता : कैलिफ़ोर्निया इन्स्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी में रिचर्ड फ़ाइनमैन के भाषण से श्रोता प्रभावित तो हुए, पर जल्द ही बात आई-गई हो गई। 1980 वाले दशक में जाकर ही कुछ लोगों को याद आया कि भौतिका का नोबेल पुरस्कार विजेता रहे रिचर्ड फ़ाइनमैन वास्तव में कितने दूरदर्शी वैज्ञानिक थे। उन्हें पूर्वाभास हो गया था कि दुनिया भविष्य में कभी न कभी क्वान्टम कंप्यूटरों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफ़ीसियल इन्टेलिजेन्स AI) की बात करेगी। वे स्वयं भौतिकी की अतिसूक्ष्म नैनो इकाई वाली तकनीक को प्रोत्साहित करने में लग गए थे। 1 नैनो या नैनोमीटर,1 मीटर के 1 अरबवें हिस्से के बराबर छोटा और हमारे सिर के एक बाल से एक हज़ार गुना पतला होता है (1m = 1000000000 nm)।
रिचर्ड फ़ाइनमैन के 65 वर्ष पूर्व के भाषण के बाद नैनो तकनीक आज एक बहुत उपयोगी बहुमुखी तकनीक बन गई है। उदाहरण के लिए, कड़ी धूप से शरीर की त्वचा की रक्षा करने वाली क्रीम में टाइटैनियम ऑक्साइड और ज़िन्क ऑक्साइड के नैनो आकर के कण मिलाए जाते हैं। ये नैनो कण, त्वचा पर एक अदृश्य दर्पण जैसी अत्यंत पतली परत बन कर धूप की हानिकारक पराबैंगनी (अल्ट्रावॉयलेट) किरणों को परावर्तित (रिफ्लेक्ट) कर देते हैं।
शरीर के भीतर नैनो रोबोट : आजकल के सबसे आधुनिक टेलिविज़न सेटों के स्क्रीन नैनो तकनीक की ही देन हैं। यही नहीं, कोविड-19 के कोरोना वायरस से लड़ने के लिए mRNA क़िस्म के जो टीके बने, उनमें mRNA को सुरक्षित रखते हुए उन्हें शरीर की रोगग्रस्त कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए नैनो आकार के लिपिड (वसा) कणों का उपयोग किया गया है। इसी प्रकार, कतिपय अन्य बीमारियों के समय हमारे शरीर के बहुत नाज़ुक भीतरी अंगों की जांच-परख के लिए नैनो तकनीक से बने अतिसूक्ष्म रोबोट शरीर के भीतर इस्तेमाल किये जाने लगे हैं।
दूसरे शब्दों में, अमेरिका के रिचर्ड फ़ाइनमैन ने 1959 में चीज़ों को अतिसूक्ष्म करते हुए जिस नैनोमीटर तकनीक की परिकल्पना की थी, वह इस बीच नैनोमीटर से भी कई गुना अधिक सूक्ष्म उस क्वान्टम तकनीक तक पहुंचने जा रही है, जिसकी सूक्ष्मता की हम कल्पना तक नहीं कर पाते।