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Written By शरद सिंगी

बड़ी खुश खबर है चाबहार पोर्ट के शुरू होने की

बड़ी खुश खबर है चाबहार पोर्ट के शुरू होने की - Chabahar port
पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान के टीवी कमेंटेटर अपने ही देश के नेताओं को लानत भेज रहे हैं यह कहकर कि उन्होंने भारत, अफगानिस्तान और ईरान की दुश्मन तिकड़ी के विरुद्ध अपने ही गोल में गोल दाग दिया है।
 
अफगानिस्तान, ईरान और भारत के सम्बन्ध सदियों से मित्रता के रहे हैं जो पाकिस्तान को कभी पसंद नहीं आए। इस मित्रता में वह अवरोध बनने का भरसक प्रयास करता रहा किन्तु हर बार मुंह की खाता रहा। जैसा हम जानते हैं कि अफगानिस्तान की सीमा किसी समुद्र से नहीं लगती अतः उसके पास आयात  और निर्यात के लिए जमीनी और हवाई परिवहन के अतिरिक्त कोई समुद्री साधन नहीं है।
 
समुद्री परिवहन के लिए उसे पाकिस्तान के कराँची बंदरगाह पर निर्भर रहना पड़ता है जहाँ से माल, रोड ट्रांसपोर्ट के माध्यम से अफगानिस्तान पहुंचता है। इस सुविधा के लिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान को कई प्रकार से ऐंठता और ब्लैकमेल करता रहा है। अनेक अनुरोध के बावजूद पाकिस्तान ने वाघा बॉर्डर के रास्ते ट्रकों के माध्यम से भारत को अफगानिस्तान को रसद आपूर्ति करने की अनुमति नहीं दी। 
 
यदि आपको स्मरण हो तो हमने इसी स्तम्भ में लगभग दो वर्ष पूर्व भारत द्वारा ईरान के एक बंदरगाह चाबहार को लीज पर लेकर विकसित करने की खबर दी थी और उसके कूटनीतिक परिणामों की चर्चा की थी। इस बंदरगाह पर माल उतारने के पश्चात उसे ईरान के रास्ते अफगानिस्तान एवं अन्य मध्य एशियाइ देशों को भेजा जा सकता है।
 
विगत दो वर्षों में भारत ने चाबहार बंदरगाह को द्रुत गति से विकसित किया। पिछले दिनों इस बंदरगाह का प्राथमिक संचालन आरम्भ हुआ और भारत का प्रथम मालवाहक जहाज अफगानिस्तान की जनता के लिए गेंहू लेकर चाबहार रवाना हो गया। इधर भारतीय विदेश मंत्री ने इस बात की घोषणा की और उधर पाकिस्तान के टीवी चैनलों में आग लग गई।
 
अफगानिस्तान अब पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहा और न ही भारत को अब अफगानिस्तान माल भेजने के लिए पाकिस्तान के आगे गिड़गिड़ाने की जरुरत है। 
 
पाकिस्तान की काली करतूतों का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भारत जो सूखे मेवे अफगानिस्तान से आयात करता है उसे लेकर अफगानिस्तान के ट्रक वाघा बॉर्डर तक तो आ जाते हैं किन्तु उन्हें भारत से कोई सामान लादने की अनुमति नहीं है और उन्हें खाली लौटना पड़ता है।
 
दूसरी ओर भारत का गेंहू पाकिस्तान के गेंहू से 500 रुपए सस्ता होते हुए भी अफगानिस्तान को महंगा गेंहू पाकिस्तान से ही खरीदना पड़ता है। इन करतूतों के बावजूद पाकिस्तान, अफगानिस्तान से अपेक्षा रखता था कि वह भारत का साथ छोड़े और पाकिस्तान के साथ खड़ा हो। 
 
पाकिस्तान की आतंकियों को पनाह देने और उन्हें पोषित करने की नीतियों से परेशान अफगानिस्तान, भारत की चाबहार की रणनीति को लेकर अतिउत्साहित था। ईरान, अफगानिस्तान और भारत ने जब त्रिपक्षीय समझौता किया, तब तक भी पाकिस्तान को समझ में नहीं आया। शायद उसे लगा कि इस समझौते को पूरा होने में अभी एक दशक और लगेगा। किन्तु जहाज रवाना होने की खबर उन्हें सन्न कर देने वाली थी।
 
चाबहार के पूर्ण रूप से चालू होने के पश्चात् अफगानिस्तान, पाकिस्तान के करांची बंदरगाह का उपयोग बंद कर सकता है जो पाकिस्तान के लिए आय का एक बड़ा स्रोत था। इधर चीन जो बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट का विकास कर रहा है उसमे पूर्ण होने में  समय लगेगा और अब लगता है कि वह पोर्ट मात्र चीन के ही काम आएगा खाड़ी के देशों से तेल आपूर्ति करने के लिए।  पाकिस्तान, चीन द्वारा विकसित और संचालित अब इस पोर्ट का शायद ही कोई अन्य व्यावसायिक उपयोग कर पायेगा।  
 
हमारे लिए यह सचमुच गौरव करने की बात है कि एक दीर्घकालीन उद्देश्यों / लक्ष्यों को ध्यान में रखकर हाथ में ली गई योजना को हमने समय से पूर्व कुशलतापूर्वक पूर्ण कर लिया जिसका आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक महत्व है। इससे हमारा आत्मविश्वास भी कई गुना बढ़ गया है। आगामी कुछ महीनों में अफगानिस्तान को भारत द्वारा दस लाख टन तक गेंहू भेजने की योजना है।
 
अगले वर्ष के अंत तक चाबहार पोर्ट पूर्ण रूप से तैयार हो जायेगा तब अन्य इलेक्ट्रॉनिक और इंजीनियरिंग सामान भी भेजे जा सकेंगे। भारत की यह एक जबरदस्त कूटनीतिक कामयाबी रही और अब पाकिस्तान अपने बाल नोचने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसे आर्थिक नुकसान तो होगा ही, अफगानिस्तान उसके शिकंजे से भी निकल जायेगा।
 
पाकिस्तान नहीं चाहता था कि भारत, युद्ध के बाद अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में कोई सहयता या सहयोग करे इसलिए उसने भारतीय दूतावास पर कई बार हमले करवाए। किन्तु आज भारत, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सबसे बड़ा सहयोगी है और वह भी अफगानिस्तान में बिना भारतीय सेना की उपस्थिति के। इसलिए भारत ने अफगानिस्तान की जनता के बीच साख भी अर्जित की है।
 
एक पाकिस्तानी विशेषज्ञ ने तो यहाँ तक कह दिया कि हिंदुस्तान तो शतरंज खेल रहा है जहाँ आगे तक की चालें सोच कर खेली जाती है और पाकिस्तान लूडो खेल रहा है यह सोचकर कि कभी भाग्य से पांसे पर छह का अंक आ जाए। अफगानिस्तान ने धमकी अलग दे दी है कि वह पाकिस्तानी माल के मध्य एशियाई देशों की तरफ परिवहन पर रोक लगा सकता है। इस पोर्ट के बनने से भारत को ईरान और अफगानिस्तान का बाजार तो मिला ही मिला, उसे अन्य मध्य एशिया के देशों जैसे उज्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान इत्यादि देशों के बाजार भी मिले क्योंकि अब ईरान से सड़क के रास्ते इन देशों में माल आपूर्ति की जा सकेगी।
 
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि चाबहार पोर्ट, ग्वादर पोर्ट के पास होने से ग्वादर पोर्ट में हो रही चीन की सामरिक गतिविधियों पर भी नज़र बनी रहेगी। कुल मिलाकर भारत का यह कदम एक बहुत बड़ी कूटनीतिक सफलता है जिसे दुश्मन भी स्वीकार कर रहा है।
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