बिहार डूब रहा था, सरकारें सो रही थीं!  
					
					
                                          करोड़ों खर्च करने के बाद भी नहीं बदले हालात
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  				  																	
									   बिहार में कोसी नदी का कहर जारी है। हर बार की तरह राज्य तथा केंद्र सरकारें राहत और बचाव कार्य की खानापूर्ति कर रही हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर हर साल ऐसे हालात क्यों पैदा हो जाते हैं? बिहार में बाढ़ कोई नई बात तो नहीं है। हर साल आती है। लाखों बेघर होते हैं। फिर क्यों हमारी सरकारें समय रहते पुख्ता कदम नहीं उठा पाती हैं? कितने ही करोड़ रुपए फूँक दिए जाते हैं, लेकिन बाढ़ पीड़ित भूखा ही रहता है...क्यों? क्या पैसा नेताओं और अफसरों की जेब में चला जाता है? क्या नेपाल जैसा छोटा देश भी बिना किसी पूर्व सूचना के हजारों क्यूसेक पानी छोड़ देगा, ताकि हमारे गाँव के गाँव डूब जाएँ? समय आ गया है, जब इन सवालों के जवाब सफेदपोश नेताओं से ही लिए जाएँ। क्यों नहीं जागे समय पर? बिहार की ‘सुनामी’ कही जा रही इस साल की बाढ़ पूरी तरह से राज्य तथा केंद्र सरकारों की लापरवाही का नतीजा है। सरकारें सोती रहीं और 25 लाख से अधिक लोगों के गले-गले तक पानी भरता गया। बाढ़ के ये हालात कोसी नदी पर बने बाँध में आई दरार के चलते पैदा हुए हैं। नदी के 1.5 लाख क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) पानी का 85 फीसदी हिस्सा इसी दरार से होकर बिहार के गाँवों में तबाही मचा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि बीती 5 अगस्त को बाँध में दरार की बात सामने आई थी। अधिकारियों को इसकी जानकारी दे दी थी, लेकिन शायद वे तबाही का इंतजार कर रहे थे, ताकि राहत से लिए मिलने वाले करोड़ों रुपए से अपना हिस्सा कमाया जा सके। अगर उस समय भी भारत सरकार अपनी पूरी ताकत लगाती तो बाढ़ को रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 18 
अगस्त की शाम नेपाल से छोड़ा गया पानी दरार से बहने लगा। पानी 1.44 लाख क्यूसेक की गति से बिहार के गाँवों में प्रवेश कर रहा था। नदी ने अपनी लगभग 125 साल पुरानी राह भी पकड़ ली, जिसके बारे में किसी को अंदाजा नहीं था। इस समय भी भारत तथा नेपाल की सरकारों ने कोई कदम उठाना उचित नहीं समझा...आखिर क्यों? यदि 18 अगस्त को भी सरकारें चेत जातीं तो पानी को नहीं रोका जा सकता था, पर बाढ़ की चपेट में आने वाले लोगों को पहले से सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जा सकता था। आज बाढ़ में फँसे करोड़ों लोग सही-सलामत होते, लेकिन ऐसा नहीं किया गया... क्यों?कहाँ छू-मंतर हो गए करोड़ों रुपए? बिहार के इस हिस्से में जून के आरंभ में मानसून दस्तक देता है। नियमानुसार इससे पहले मरम्मत का कार्य हो जाना चाहिए, लेकिन आज तक ऐसा नहीं हो पाया है। बाँध और उसके तटबंधों की देखरेख तथा प्रबंधन का जिम्मा भारत सरकार का है। इस पर हर साल 3-4 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। ताजा विपदा के बाद बिहार सरकार ने केंद्र से 20 करोड़ रुपए और माँगे हैं। कुल मिलाकर 300 करोड़ रुपए का खर्च आने की बात कही जा रही है। सवाल यह है कि हर साल करोड़ों खर्च करने के बाद भी नतीजा ऐसा क्यों निकल पा रहा है? कब तक चलेगा ऐसा?राजद सांसद साधु यादव पर बाढ़ राहत में घोटाले का आरोप लगा था। उनके साथ ही घोटाले के मुख्य आरोपी माने जाने वाले संतोष झा और पटना के डीएम गौतम गोस्वामी पर भी नाममात्र की कार्रवाई की गई। यह हर साल की कहानी है। असल में बाढ़ यानी नेताओं और अफसरों की कमाई का सीजन बनता जा रहा है। |  | 
| | बिहार की नीतीश सरकार कह रही है कि उन्हें केंद्र से समय पर सहायता नहीं मिली और केंद्र सरकार के नुमाइंदे कह रहे हैं कि उन्हें समय रहते जानकारी नहीं दी गई। इसमें नुकसान गरीब का हो रहा है | 
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