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Written By संदीपसिंह सिसोदिया

नक्सलियों का खतरनाक एजेंडा, 2050 तक लोकतंत्र का खात्मा...

The Secret and Dangerous Agenda of Maoist in India... | नक्सलियों का खतरनाक एजेंडा, 2050 तक लोकतंत्र का खात्मा...
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भारत में वर्तमान में माओवाद-नक्सलवाद एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। विदेशी मीडिया भी इसे एक ज्वलंत और बड़ी समस्या मानते हुए इस मुद्दे को सुलझाने में भारत सरकार के नाकाफी प्रयासों की काफी आलोचना कर रहा है।

इस विषय पर पढ़े खास रिपोर्ट : भारत में फैलता लाल गलियारा

हां, माओवाद की आग से डरे पश्चिमी देश जरूर इस मुद्दे पर भारत के साथ कुछ हद तक हमदर्दी जता रहे हैं और साथ ही चेता भी रहे हैं कि अगर सही समय पर इस समस्या का हल नहीं निकला तो परिणाम न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इसकी वाजिब वजह भी है, पशुपतिनाथ से लेकर कन्याकुमारी तक 'लाल गलियारा' अब पूरे दक्षिण एशिया पर प्रभुत्व जमाने का ख्वाब देख रहा है। आखिर क्या है माओवा‍दियों का गुप्त एजेंडा... आगे पढ़ें...

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लेकिन, प्रश्न यह उठता है कि माओवादियों का एकमात्र और गुप्त एजेंडा आखिर है क्या? उनकी कार्य प्रणाली क्या है? कैसे उन्होंने आदिवासी, दलित, पिछड़े, जंगली इलाके में जन-असंतोष का फायदा उठाकर अपना इतना शक्तिशाली आधार बना लिया और क्या है उनका अंतिम लक्ष्य?

पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने भी इस बारे में चेताया है। पिल्लई के अनुसार अगले चार-पांच वर्षों में सरकार को पलटने का माओवादियों का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि माओवादियों से बरामद साहित्य के अनुसार वे अगले पचास साल में सत्ता पर नियंत्रण करने के लक्ष्य के तहत काम कर रहे हैं।

यही नहीं माओवादियों के एक अहम दस्तावेज स्ट्रेटेजी एंड टेक्टिक्स ऑफ द इंडियन रिवोल्यूशन में बाकायदा कई चेप्टरों और ऐतिहासिक वृतांतों द्वारा विस्तार से भारत में 'क्रांति लाने' और युद्ध के सहारे सत्ता परिवर्तन की गाइड लाइन और तरीके बताए गए हैं। माओ के अनुयायियों के निशाने पर है भारत... आगे पढ़ें...

आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध इस नक्सली साहित्य में क्रांति और युद्ध की रणनीति तथा तौर तरीकों के बारे में कामरेड माओ, लेनिन, कार्ल मार्क्स जैसे प्रसिद्ध विचारकों के लेख सहित ऐसी कई सामग्री है जो भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के लिए प्रेरित करती है।

यही नहीं इस दस्तावेज में भारत में रहने वाले गरीबों से लेकर मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के बारे में जानकारी देते हुए उनसे समर्थन जुटाने और उनकी सहानुभूति हासिल करने तथा युद्ध के तरीके सुझाए गए हैं।

इस दस्तावेज से पता चलता है कि कैसे नक्सली पिछड़े इलाकों को आधार-भूमि बनाते है। यह दस्तावेज दर्शाता है कि किस तरह नक्सलवादी सामाजिक, वैचारिक तरीके से अपने लक्ष्य के लिए स्वयंसेवी, मानवाधिकारवादी संगठनों को अपने समर्थन में ला सकते हैं। कई जानकारियों के मुताबिक आशंका है कि कुछ पूर्व सैनिक भी माओवादियों को हिंसक कार्यवाइयों को अंजाम देने में मदद कर रहे हैं। देश को गृहयुद्ध में झोंकने की तैयारी... आगे पढ़ें...
एक जानकारी यह भी है कि देश में चलने वाले विभिन्न आंदोलनों पर भी नक्सली संगठनों की गहरी नजर होती है। वे इन आंदोलनों के माध्यम से भी न सिर्फ देश और समाज की नब्ज टटोलने की कोशिश करते हैं बल्कि छद्म रूप से समाज में रह रहे अपने नेताओं के जरिए अपने लिए समर्थन जुटाने का प्रयास भी करते हैं।

नक्सली दस्तावेजों में यह भी उल्लेख है कि वर्तमान जनतांत्रिक व्यवस्था और विकास-प्रक्रिया की असफलता को लेकर भ्रम, संशय, उहापोह की स्थिति का फायदा उठाकर किस तरह शहरी क्षेत्रों में समर्थन जुटाया जा सकता है। दस्तावेज में संकेत दिए गए हैं कि कैसे नक्सली शहरों में अपनी पैठ जमाकर अंततः समूचे देश को गृह-युद्ध में झोंक देंगे। 2050 में होगी भारत में नक्सल समर्थित सरकार... आगे पढ़ें...
सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी द्वारा जारी इन दस्तावेजों में माओवादियों की 'जनक्रांति' की के लिए रणनीति-युद्धनीति का एकमात्र लक्ष्य 2050 तक भारत सरकार उखाड़ फेंकना और भारत में लोकतंत्र का सफाया है। भारत में जनसेना का निर्माण कर सरकारी सेना से युद्ध की तैयारी कर रहे माओवादी स्पष्ट रूप से चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग से प्रेरित है।

दुनिया के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल (अब नहीं) को भी नहीं भूलना चाहिए, जहां नक्सली आंदोलन किस तरह फलाफूला और अन्तत: उसने वहां की सरकार को उखाड़ फेंका। आज नेपाल पर माओवादियों का कब्जा है, जो चीन के इशारे पर भारत विरोधी गतिविधियों में भी संलग्न हैं।
इन दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि माओवादी एक दीर्घकालीन रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य 2013-14 में सरकार गिराने का नहीं है, वे सोची-समझी रणनीति के तहत 2050 या कुछ दस्तावेजों के अनुसार 2060 में तख्ता पलट की योजना पर काम कर रहे हैं।

क्या सरकारें सबक लेंगी? : बढ़ती नक्सली हिंसा से केन्द्र और राज्य सरकारों ने कोई सबक लिया हो, ऐसा दिखाई नहीं देता। छत्तीसगढ़ का ताजा हमला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। बजाय इसके कि इस नरसंहार का कड़ा जवाब दिया जाता केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस और राज्य की भाजपा सरकार के नेताओं ने एक-दूसरे पर आरोप मढ़ना शुरू कर दिया है। ऐसे में यह कहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता कि सरकारें इससे कोई सबक लेंगी।

हमें दुनिया के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल (अब नहीं) को भी नहीं भूलना चाहिए, जहां नक्सली आंदोलन किस तरह फलाफूला और अन्तत: उसने वहां की सरकार को उखाड़ फेंका। आज नेपाल पर माओवादियों का कब्जा है, जो चीन के इशारे पर ारत विरोधी गतिविधियों में भी संलग्न हैं। यदि भारत ने इससे कोई सबक नहीं लिया तो कोई आश्चर्य नहीं कि नेपाल को भारत में दोहराया जाए।