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मनमोहन सिंह जी – अगर ये लूट है तो फिर 2जी, 3जी और कोयला घोटाला क्या थे?

#नोटबंदी सवाल – 5

मनमोहन सिंह जी – अगर ये लूट है तो फिर 2जी, 3जी और कोयला घोटाला क्या थे? - Manmohan Singh, demonetization, Narendra Modi, currency Ban
पूरे 10 साल की संप्रग सरकार में उनका नाम ही ‘मौनमोहन सिंह’ पड़ गया था। वो बोलते ही इतना कम थे। सोनिया, राहुल, कमलनाथ, दिग्विजय इन्हीं का शोर सुनाई देता था। उन्होंने ख़ुद ही कहा था कि हजार सवालों से अच्छी है मेरी ख़ामोशी!! किस मजबूरी में उन्होंने ये खामोशी ओढ़ी ये तो वो ही जानें, पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संप्रग सरकार के घोटालों की आँच में झुलसना तो पड़ा ही। उनकी ख़ुद की छवि अच्छी होने के बाद भी।
तो ऐसे मनमोहन सिंह जिनकी खामोशी ही उनकी पहचान बन गई, उस पर कई जुमले और तंज कसे गए, वो बोले। गुरुवार को राज्यसभा में नोटबंदी पर उन्होंने बहस में भाग लिया। प्रधानमंत्री मोदी भी सदन में मौजूद थे। जाहिर है सब सुनना चाहते थे कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर, पूर्व वित्तमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री का क्या कहना है? 
 
एक ऐसे व्यक्ति की राय जानना बहुत जरूरी है जिसकी आर्थिक क्षेत्र में विशेषज्ञता का लोहा दुनिया मानती है। तो सभी उत्सुकता से उन्हें सुनना चाह रहे थे। उन्होंने बहुत संक्षेप में बोला। लगभग 7 मिनट। सबसे बड़ी बात जो उन्होंने कही वो ये है कि उन्हें नोटबंदी के उद्देश्यों से कोई असहमति नहीं है। मतलब ये है कि कहीं ना कहीं उनके मन में भी ये कसक है कि वो ऐसा नहीं कर पाए। एक आर्थिक जानकार के रूप में उन्हें भी ये पता है कि जिन चुनौतियों से निपटने के लिए ये कदम उठाए गए हैं वो कितनी बड़ी हैं और गंभीर हैं। उन्होंने ये ख़ास बातें कहीं –
 
1. काले धन, जाली नोट और आतंकवादियों को फंडिंग को रोकने के नोटबंदी के उद्देश्यों से वो भी सहमत हैं।
2. नोटबंदी को लागू करने में जबर्दस्त कुप्रबंधन हुआ है।
3. बैंक द्वारा रोज-रोज नए नियम बनाना गलत है।
4. इससे विकास दर में 2 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
6. इस अव्यवस्था को ठीक करने के लिए सरकार को तुरंत कुछ समझदारीपूर्ण निर्णय लेने होंगे।
7. अर्थशास्त्री कीन्स ने कहा था कि अगर बात दूरगामी परिणामों और लंबे समय की है तो लंबे समय में तो हम मर ही जाते हैं।
8. ग़रीबों के लिए तो 50 दिन भी बहुत लंबी अवधि है और ये उनके लिए घातक है।
9. दुनिया में और कहीं भी लोगों को अपने ही पैसे बैंक से निकालने में मशक्कत नहीं करनी पड़ती।
10. ये दरअसल व्यवस्थित लूट और कानूनन छीना-झपटी होने देने की स्थिति है। 
 
मनमोहन सिंह जी – उम्मीद तो यही थी की एक अर्थशास्त्री के रूप में आप थोड़ा लंबा बोलते। विषय की गहराई में जाते। सुझाव देते। वो उपाय भी बताते जिनसे स्थिति बेहतर हो। ये तो सभी मान रहे हैं कि क्रियान्वयन में खामी रही है। पर वो कैसे दूर हो, या कैसे बेहतर क्रियान्वयन हो पाता? ये बताने वाले नहीं हैं। मनमोहन सिंह जी आप तो ये बताइए – 
 
1. अगर ये इतना अच्छा उद्देश्य है तो आपके समय में इसको लेकर क्या कदम उठाए गए? 
2. आप पर तो “पॉलिसी पैरालिसिस” का आरोप लगा कि आपकी सरकार को निर्णय लेने के मामले में लकवा मार गया। निर्णय ही नहीं ले पाए। 
3. हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना सही है या आगे बढ़कर निर्णय लेना? 
4. अगर ये ग़लत है तो गोपनीयता रखते हुए बेहतर क्रियान्वयन कैसे हो सकता था? 
5. अगर ये लूट और छीना-झपटी है तो फिर आपकी नाक के नीचे होने वाले 2जी, 3जी और कोयला घोटाले क्या थे? 
6. अगर ऐसे ही चलता रहता तो क्या ये देश काले धन के दलदल में और गहरे नहीं धँस जाता? 
7. आपके समय में बैंकिंग सुधार को लेकर तीव्र गति से काम क्यों नहीं हुआ? 
8. गाँवों में बैंक बढ़ाने के लिए क्या हुआ? 
9. क्या ये वक्त राजनीति से ऊपर उठकर देश हित में हल ढूंढने का नहीं है? 
10. गरीब और किसान 50 दिन नहीं रुक सकता पर इस मुद्दे पर राजनीति तो 50 दिन के लिए रुक सकती है? फिर वो भी कर लीजिएगा?


मनमोहन सिंह जी आप बोलिए, ख़ूब बोलिए, इस मुद्दे पर अखबारों में लिखिए भी। साक्षात्कार दीजिए। लंबी बात कीजिए। आपकी विशेषज्ञता पर कभी किसी ने प्रश्न नहीं उठाया। उस काजल की कोठरी से निकलने के बाद भी अगर आपका सम्मान है तो वो आपके ज्ञान की वजह से है। आज देश को उसकी जरूरत है। राजनीति से परे।  (वेबदुनिया न्यूज) 
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