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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 12 अप्रैल 2021 (14:19 IST)

काल बना कोरोना: भोपाल में अंतिम संस्कार के लिए छोटे पड़ने लगे श्मशान घाट,अस्थि संचय की परंपरा भी खत्म,लकड़ी का भी संकट

काल बना कोरोना: भोपाल में अंतिम संस्कार के लिए छोटे पड़ने लगे श्मशान घाट,अस्थि संचय की परंपरा भी खत्म,लकड़ी का भी संकट - No place for deadbody at Cremation ghats in Bhopal
भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आए मध्यप्रदेश में कोरोना अब काल बन गया है। भले ही सरकार के आंकड़ों में कोरोना से मरने वालों की संख्या महज कुछ अंकों तक सीमित हो लेकिन सच्चाई को बयां कर रहे है राजधानी भोपाल के श्मशान घाट और कब्रिस्तान। हालात इस कदर बिगड़ चुके है कि अब लाशों के अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान घाटों पर जगह छोटी पड़नी लगी है। 'वेबदुनिया' ने जब श्मशान घाटों पर जमीनी हकीकत का जायजा लिया है तो वास्तविक स्थिति सरकार के दावों के ठीक उलट नजर आई। सरकार हर दिन अपने रिकॉर्ड में महज एक या दो कोरोना संक्रमित मरीज की मौत होना दर्शा रही हो लेकिन श्मशान घटों पर अंतिम संस्कार करने के लिए शवों की कतार नजर आ रही है।   
 
अकेले राजधानी भोपाल में रविवार को 66 मृतकों का कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार हुआ। इसमें भदभदा विश्राम घाट पर 39, सुभाष विश्राम घाट पर 23 और झदा कब्रिस्तान में 4 का कोरोना गाइड लाइन से अंतिम संस्कार किया गया। अगर राजधानी के श्मशान घाटों और कब्रिस्तान के रजिस्ट्ररों में दर्ज आंकड़ों को देखा जाए तो महज चार दिन में कोरोना संक्रमित 200 से अधिक लोगों का अंतिम संस्कार किया जा‌ चुका हैं। कोरोना इतनी तेजी से लोगों को लील रहा है कि अब श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग लग रही है। 
राजधानी भोपाल में कोरोना को लेकर हालात कितने डरवाने हो चुके है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्राम घाट पर अंतिम संस्कार के लिए एक एंबुलेंस से एक‌ साथ‌ कई-कई डेड बॉडी को उतारा जा रहा है। राजधानी का भदभदा विश्राम घाट जिसको कोरोना से मरने वाले लोगों के लिए रिजर्व किया गया है वहां एक बार में पंद्रह ‌शवों के अंतिम संस्कार की जगह बनाई गई थी लेकिन अब वहां एक साथ 20-25 की संख्या में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। भदभदा विश्राम पर रविवार को जगह नहीं होने के चलते 12 शवों का अंतिम संस्कार आज सुबह किया गया। 
 
विश्राम घाट पर जगह की कमी के चलते अस्थि संचय करने की प्रथा भी खत्म हो गई है। लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने के बाद तुरंत ही वापस जाने को मजबूर हो रहे है। भदभदा विश्राम घाट के कमेटी के सचिव ममतेश शर्मा कहते हैं कि विश्राम घाट पर इतने बड़े पैमाने पर शव को लाया जा रहा है कि वहां अब जगह कम पड़ने लगी है और इसके लिए अब विद्युत शवदाह गृह के लिए अरक्षित जगह पर भी अंतिम संस्कार किया जा रहा है। इसके साथ-साथ भदभदा विश्राम घाट का विस्तार किया जा रहा है और 2 एकड़ में विश्राम घाट के समतलीकरण का काम शुरू कर दिया गया है।

वहीं बड़े पैमाने पर इतने बड़े पैमाने पर लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है कि भदभदा विश्राम घाटों पर लकड़ी भी कम पड़ गई है भदभदा विश्राम घाट के अध्यक्ष अरुण चौधरी बताते हैं कि एक बॉडी के लिए 4 क्विंटल से अधिक लकड़ी की जरूरत होती है ऐसे में एक दिन में करीब 150 से 200 कुंटल लकड़ी की खपत हो रही है और हर दिन तीन ट्रक लकड़ी बुलाई जा रही है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि अंतिम संस्कार में गौ काष्ठ का उपयोग करें।