• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. कोरोना वायरस
  4. Insaniyat ke sipahi group helps Migrants Workers
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : मंगलवार, 12 मई 2020 (14:49 IST)

पलायन कर रहे मजबूर मजदूरों की मदद में आगे आए ‘इंसानियत के सिपाही’

एक बेबस मां और अबोध बेटी के सफर की दर्दनाक कहानी

पलायन कर रहे मजबूर मजदूरों की मदद में आगे आए ‘इंसानियत के सिपाही’ - Insaniyat ke sipahi group helps Migrants Workers
देश की सड़कों पर मजबूर मजदूरों का पलायन जारी है। मध्यप्रदेश की अन्य राज्यों से सीमा से लगे सटे हुए जिलों में हाई-वे पर इन दिनों पलायन कर रहे मजबूर मजदूरों की लंबी लंबी कतारें नजर आ रही है। गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से विस्थापित मजदूरों के काफिले ग्वालियर से भी होकर गुजर रहे हैं। 
 
भूखे प्यासे पलायन को मजबूर मजदूरों की मदद और उनके खान पान का जिम्मा उठाने के लिए ग्वालियर में ‘इंसानियत के सिपाही’ आगे आए है। जिले के सिरोल बाई पास पर ये समूह एक बंद पड़े ढाबे पर मोर्चा संभाले हुए है। वरिष्ठ पत्रकार और कवि डॉक्टर राकेश पाठक की अगुवाई में एडवोकेट अमी प्रबल और पुलिस आरक्षक अर्चना कंसाना लगातार लोगों की मदद कर रही है। 
 
डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि मजदूरों के पलायन के दर्द को देखकर उनके समूह के सदस्य और वह खुद अपने भावनाओं पर कभी कभी काबू नहीं रख पाते है और उनकी आंखों से आंसू निकल आते है। 
 
वेबदुनिया से बातचीत में वह अहमदाबाद से भिंड तक का सफर अकेले तय करने वाली दीपा का कहानी का साझा करते हुए कहते हैं कि दीपा अहमदाबाद में एक कपड़ा कारखाने में काम करती थी। लॉकडाउन हुआ तो कारखाना बंद हो गया और मालिक ने एक महीने की पगार भी नहीं दी। दीपा का पति एक साल पहले बिना बताए गायब हो गया था। तब से दीपा अकेले गुजर बसर कर रही थी। 

तालाबंदी में जब जीने का कोई आसरा नहीं बचा है तो जो कुछ पास था उसे दो झोलों में समेट कर दीपा अपने घर भिंड जाने को चल पड़ी। साथ हैं मात्र आठ महीने की नन्हीं सी बेटी। एक पिकअप वैन वाले ने दो हजार रुपए वसूल कर मध्यप्रदेश के बॉर्डर पर छोड़ दिया। वहाँ से कभी पैदल कभी ट्रक, डंपर में बैठ कर चली आ रही है। हाथ के पैसे खत्म हो गए तो ट्रक वाले ग्वालियर-झांसी हाई-वे पर छोड़ दिया।
 
चिलचिलाती धूप में सड़क पर खड़ी दीपा पर 'इंसानियत के सिपाही'  अर्चना कंसाना की नजर पड़ी। वे उसे लेकर मोर्चे पर आईं। दीपा ने तीन दिन से खाना नहीं खाया था और अबोध बेटी को दूध की एक बूंद न मिली थी। मोर्चे पर उसे खाना खिलाया गया। बेटी को दूध पिलाया गया। उसकी चप्पलें टूट गईं थीं तो नई चप्पलें पहनाई गईं। इसके बाद इंसानियत के सिपाही ने दीपा को उसके घर भिंड पहुंचाने की व्यवस्था की। 
 
समूह की ओर से हाईवे से गुजर रहे पैदल, सायकिल, बाइक और ट्रकों पर सवार सैकड़ों मजदूरों को भरपेट खाना, चप्पलें, पानी, दवा, दूध, सूखा राशन आदि दिया जा रहा है। संकट की इस घड़ी में मजदूरों की मदद के लिए हाईवे पर स्थित विरासत ढाबा के मालिक गोपाल सिंह ने अपना ढाबा इस काम के लिए खुशी खुशी सौंप दिया है जिसकी छांव में मजदूरों को खाना खिलाया जा रहा है।  इसके  साथ अपने ड्यूटी करने के साथ ही पुलिसकर्मी जैनेंद्र गुर्जर, प्रदीप यादव और पुष्पेंद्र यादव भी मजदूरों की सेवा में जी जान से जुटे हैं।
ये भी पढ़ें
Lockdown में मजबूर मां, विकलांग बच्चे को कंधे पर टांगे चली सैकड़ों किलोमीटर...