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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 7 मई 2021 (15:42 IST)

कोरोना के खिलाफ जंग जीतने के लिए फ्रंटलाइन योद्धाओं की फ्रिक जरूरी,बर्न आउट सिंड्रोम,पीटीएसडी जैसी बीमारी की चपेट में आने का खतरा

कोरोना के खिलाफ जंग जीतने के लिए फ्रंटलाइन योद्धाओं की फ्रिक जरूरी,बर्न आउट सिंड्रोम,पीटीएसडी जैसी बीमारी की चपेट में आने का खतरा - Doctor and officer staff posted on frontline in fight against Corona
देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर की चपेट में है। हर नए दिन के साथ लाखों में बढ़ती कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या के सिस्टम ध्वस्त हो चुका है। अस्पताल कई गुना ओवरलोडेड है,डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े अधिकारी कर्मचारी लगातार ड्यूटी के चलते तनाव में है। संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए पुलिस और प्रशासन के योद्धा भी मोर्चे पर तैनात है।

ऐसे में अब जब बीमारी अपने पीक पर पहुंच रही है तब इन सभी पर दबाव और बढ़ता जा रहा है और अब यह दबाव विवाद के रुप में सामने आता हुआ दिखाई दे रहा है। लगातार काम का दबाव और इसका साइड इफेक्ट अब दिखाई देने लगा है। इंदौर में डॉक्टरों और प्रशासन के बीच सार्वजनिक हुआ विवाद इसका सबसे ताजा उदाहरण है। इसके साथ ही कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जुटे डॉक्टर भी आत्मघाती कदम उठा रहे है।
 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि आज फ्रंटलाइन वर्कर्स ‘बर्न आउट सिंड्रोम’ की चपेट में आ गया है। काम के अत्यधिक दबाव के कारण अब महामारी के खिलाफ अग्रिम मोर्चे पर तैनात लोगों में नकारात्मकता हावी हो रही है जिसका सीधा असर उनके काम करने की क्षमता पर पड़ रहा है।  
 
बातचीत में डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कोरोना महामारी जब इतना विकराल रुप ले चुकी है तब फ्रंटलाइन पर काम करने वाले लोग जिसमें डॉक्टर,पैरामेडिकल स्टॉफ,पुलिस-प्रशासन,मीडिया कर्मी और यहां तक शमशान घाट पर काम करने वाले लोगों के पीटीएसडी यानि पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर बीमारी की चपेट में आने का बड़ा खतरा हो गया है। ऐसे लोगों पर दुखद घटनाओं का इस कदर गहरा असर होता है कि वह उदास,तनाव और निराशा से घिर जाते है और खुद को नुकसान भी पहुंचा सकते है। इन दिनों लगातार ऐसी घटनाएं भी रिपोर्ट हो रही है। 
सतत संवाद की जरूरत- आज जरुरत इस बात की है कि कि सरकार फ्रंटलाइन पर तैनात लोगों से बराबर संवाद करें।‘वेबदुनिया’ से बातचीत में डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान संकटकाल में फ्रंटलाइन पर तैनात लोगों से जिस तरह लगातार संवाद करते आए है वैसा ही संवाद जिला स्तर पर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को करने की जरूरत है।

इसके साथ ही वह ‘वेबदुनिया’ के जरिए लोगों से भी अपील करते हैं कि महामारी के इस समय डॉक्टरों पर भरोसा रखे और उनके साथ संवाद रखे। एक डॉक्टर को भावान्तमक रुप से तभी संतुष्टि मिलती है जब वह अपने मरीज को ठीक कर लेता है। महामारी के इस दौर में समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि अपने डॉक्टर पर एक ट्रस्ट रखे और अपने छोटे-छोटे सवालों और सोशल मीडिया के जरिए आई जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए फोन और परेशान न करें।
 
फ्रंटलाइन योद्धाओं के लिए बनें पॉलिसी- ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कोरोना वायरस  के खिलाफ हम एक मैराथन लड़ाई लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ेंगे। इसलिए जरुरी है कि आज हमें और पेशेवर तरीके से महामारी का मुकाबला करने के लिए सामने आना होगा। आज फ्रंटलाइन पर काम करे लोग लगातार भारी दबाव के बीच काम कर रहे है इसलिए सरकार को सबसे पहले चाहिए कि मौजूदा उपलब्ध ह्यूमन सिर्सोस के बीच एक रोटेशन पॉलिसी को ग्राउंड पर उतारे।

अस्पतालों में लगातार मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों को एक रिलेक्स देने के साथ उनको एक सामाजिक,आर्थिक सुरक्षा सेवा कर रहे हैं मरीजों का इलाज कर रहा है उसके साथ पांच लाइन पर तैनात सुरक्षा को लेकर के माहौल बनाए और उनका परिवार पूरी तरह सुरक्षित है और भविष्य में भी उनकी पूरी सुरक्षा रहेगी। इसके साथ फ्रंटलाइन पर तैनात लोगों के वैक्सीनेशन के साथ लगातार संवाद कर उनको भरोसा दिलाए कि ऐसे मुश्किल वक्त में सरकार उनको एक सुरक्षा दे रही है। 
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