इंदौर से मुंबई का आंखों देखा हाल: एक किलोमीटर भी ऐसा खाली नहीं जहां मजदूरों का समूह न हो
कोरोना वायरस ने देश की अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमर तोड़ दी है जिससे निपटने में केंद्र और राज्य सरकार लगे हुए हैं। वे सुधार के निरंतर उपाय कर रहे हैं। दूसरी ओर मजदूर जिस तरह से शहर छोड़ कर अपने 'देश' जा रहे हैं उसके प्रभाव भी दिखने लगे हैं।
मजदूर न केवल जान हथेली पर लेकर अपनी महिलाओं और बच्चों के साथ पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफर तय कर रहे हैं बल्कि उनके इस तरह से शहर छोड़ने के कारण शहरों की बुनियाद भी हिलने लगी हैं। मुंबई, जहां सबसे अधिक अंतरराज्यीय प्रवासी मजदूर रहते हैं, वह इस बहाव को देख रहा है।
इंदौर से मुंबई का सफर मैंने रोड द्वारा तय किया। पूरे सफर के दौरान मैंने देखा कि मजदूरों का समूह पैदल या साइकिल पर अपने मूल स्थान की ओर चल पड़ा है। वे जानते हैं कि मंजिल तक का यह सफर कठिन है, लेकिन न उन्हें झुलसाने वाली गरमी की परवाह है, न लू के चलने वाले थपेड़ों की। न उनके कदम खाली पेट रोक पा रहा है, न 40 डिग्री में सूखता मुंह उनके कदम डिगा पा रहा है।
बैगों में जो भी सामान वो समेट सकते थे, कंधों पर लटकाए, सिर पर रख चल पड़े हैं। नौजवान भी हैं, वृद्ध भी। महिलाएं भी हैं और बच्चे भी। वे नहीं जानते कि रास्ते में उन्हें खाने को मिलेगा भी या नहीं। पैदल और साइकिल के साथ-साथ कुछ लोग जो भी उपलब्ध वाहन है, ट्रक, बस, ट्राले, उन पर निकल पड़े हैं।
आगरा-मुंबई रोड पर यह पलायन तो चरम पर है। एक किलोमीटर भी ऐसा खाली नहीं जाता जब कोई मजदूरों का समूह ना दिखता हो। वे जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहते हैं।
कोरोना वायरस के इस बुरे दौर में वे सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं, लेकिन हर किसी के मुंह पर कपड़ा जरूर है। वे कम पढ़े-लिखे हो सकते हैं, लेकिन यह बात जानते हैं कि कोरोना से लड़ने के लिए क्या करना है।
पेट्रोल पंप नजर आते हैं तो वे पानी के लिए भागते हैं। उन्हें ऐसा करते देख मन सिहर उठता है। सवाल उठता है कि क्या उनकी किसी को भी सुध नहीं है? क्या वे अपने गंतव्य तक पहुंचेंगे? आप उनकी जांच कैसे करेंगे? आप कैसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाएंगे? राज्य सीमाओं पर प्रशासन कैसे इन बातों से निपटने के लिए प्रबंधन करेगा?
उनमें से बहुतों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं (कोविड 19 के अलावा) झेलनी पड़ रही हैं। मजदूरों के इस पलायन से राज्यों पर आर्थिक और श्रम संबंधी दीर्घकालिक परिणाम होंगे। ये कोविड 19 का एक बड़ा साइड इफेक्ट है।