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Written By Author डॉ. रमेश रावत
Last Modified: रविवार, 13 सितम्बर 2020 (20:43 IST)

व्हाट एन आइडिया सरजी, कोरोना महामारी ने 12 साल बाद सच की विज्ञापन की स्टोरी

व्हाट एन आइडिया सरजी, कोरोना महामारी ने 12 साल बाद सच की विज्ञापन की स्टोरी - Coronavirus : After 12 years, the advertisement story came true
कोविड-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुस्त कर दिया है, लेकिन कई अर्थों में हमें भविष्य में रहने, पढ़ने व शॉपिंग करने आदि के गुर भी सिखा दिए हैं। अब तक यह होता था कि बच्चे अपने पिता, बड़े भाई या चाचा का स्मार्ट फोन बस कुछ देर के लिए गेम खेलने या फोटो और वीडियो देखने भर के लिए ले पाते थे।
 
तकनीक और संचार क्रांति के युग में भी कभी भी यह नहीं सोचा गया कि किसी समय ऑनलाइन पढ़ाई होगी और यह समय वर्ष 2020 में ही आ जाएगा। कोरोना महामारी ने ऐसा कर दिखाया। कभी मम्मियां कहा करती थीं नो मोबाइल फोन अब वे ही आगे बढ़कर अपने बच्चों को स्मार्ट फोन देती हैं और क्लास अटेंड करने के लिए कान उमेठती हैं। 
 
मोबाइल शॉप पर पूछा जाता है कि फलां कॉन्फ्रिेंसिंग एप चलेगा या नहीं। ऑनलाइन पढ़ाई के बारे में सोचा जरूर गया था, लेकिन यह नहीं कि मोबाइल स्मार्ट फोन छोटे बच्चों की पढ़ाई का जरिया भी बनेंगे। जैसे-जैसे कोरोना महामारी और लॉकडाउन आगे बढ़े यह सच होता गया। अब शहरी और ग्रामीण दोनों ही बच्चे स्मार्ट फोन पर बराबरी की स्थिति में हैं वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप पर पढ़ाई और होम वर्क कर रहे हैं। 
 
विज्ञापन का विचार 12 साल बाद हुआ सच : वर्ष 2008 में एक मोबाइल कंपनी का विज्ञापन आया था, जिसमें लीड किरदार में अभिषेक बच्चन थे। उस समय वे उस ब्रांड का एंडोर्समेंट कर रहे थे। विज्ञापन का मूल उद्देश्य कीपैड मोबाइल की बिक्री को बढ़ावा देना था। विज्ञापन की थीम कुछ इस प्रकार थी कि एक बालिका अपने दादा के साथ स्कूल में एडमिशन के लिए पहुंचती है, लेकिन उसे एडमिशन फुल है दिखाकर बाहर कर दिया जाता है। उसका दादा दुहाई देता है कि गांव में स्कूल नहीं है तो वह कैसे पढ़ेंगी उसे स्कूल में एडमिशन दे दो।
इसी समय शिक्षक की भूमिका में जूनियर बच्चन की इंट्री होती है और वह इस समस्या पर गहराई से विचार करते हुए कहते हैं कि एक स्कूल में सबको कैसे पढ़ाऊं और आता है आइडिया। इसके बाद के दृश्य में मोबाइल फोन की घंटी बजती है और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे अपने झोले-बस्ते लेकर दौड़ते हुए आते हैं। मोबाइल फोन पर गूंजती आवाज का वे अनुगमन करते हैं और बिलकुल क्लास रूम जैसे माहौल में पढ़ाई शुरू होती है, जिसमें टीचर अपने सामने रखे कई मोबाइलों में एक साथ बोलती हैं और दूसरी लाइन विभिन्न ग्रामों में होती है। जिन पर बच्चे प्रश्नों के जवाब देते हैं। 
 
पढ़ाई के इस माहौल को महसूस कर बच्चन उछलते हैं और अंत में स्कूल का वार्षिक पुरस्कार समारोह होता है जिसमें जूनियर बच्चन घोषित करते हैं कि साल की सर्वश्रेष्ठ स्टूडेंट है लक्ष्मी राधा। यह वही बालिका थी जो अपने दादा के साथ एडमिशन के लिए आती है। खचाखच भरे हॉल में वह उसके दादा के साथ मंच पर पहुंचती है। उधर बैकग्राउंड में मोबाइल पर यह खबर सुनता व्यक्ति मोबाइल को चूमता है। सर उठाकर सामने की और देख रहे जूनियर बच्चन व्हाट एन आईडया सरजी कहते हैं और बच्चियां यह कहते हुए दौड़ती हैं कि आज संडे है। 
 
ऑनलाइन व्यवस्था : अब यह भविष्य के गर्त में है कि कोरोना महामारी के मध्य जारी इन ऑनलाइन कक्षाओं में बच्चे क्या परिणाम या रैंक हासिल करेंगे। लेकिन वे तकनीकी ज्ञान के मामले में अपनी कक्षाओं से एक कदम आगे जरूर निकल गए हैं। यहां पर सुविधा, नेटवर्क, डाटा है वे पढ़ाई और होमवर्क कर रहे हैं। कोरोना महामारी ने परंपरागत शैक्षिक प्रणाली में बच्चों को एक मजबूत आधार दिया है। इस मामले में लॉकडाउन और अनलॉक के दौरान न्यायालयों ने भी ऑनलाइन काम को धीरे-धीरे ही सही स्वीकार कर लिया है।
कोरोना कॉल शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया है। अब समय से तकनीक के अधिक विकसित होने का जिसमें ऑनलाइन पीरियड के साथ बच्चों पर निगरानी भी रखी जा सके।
 
मनोवैज्ञानिक कोना : भारतीय समाज में प्रत्येक कार्य के लिए एक न्यूनतम आयु सीमा तय की गई है। जैसे कि डाइनामाईट कुए व रास्ते बनाने के साथ-साथ नरसंहार के काम भी आता है। ठीक यही मिसाल संचार क्रांति के मामले में भी है। उम्र, अनुभव, समझ, व्यावहारिक ज्ञान एवं अंतरदृष्टि का विकास तकनीकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसी कारण समय और उम्र के मध्य समनवय स्थापित करते हुए विवाह, मताधिकार, ड्राइविंग लाईसेंस जैसे अनेक मामलों में एक बंधन निश्चित किया गया है।
 
लेकिन, इंटरनेट से सजे मोबाइल ने बच्चों के सामने सूचनाओं का पिटारा खोलकर रख दिया है। इसमें कुछ ऐसी भी सामग्री है जिसे बच्चे उत्सुकतावश देख लेते हैं, लेकिन वास्तव में इन्हें देखने की अनुमति उनके अभिभावक किसी भी स्थिति में नहीं दे सकते हैं। इसका असर बच्चों को अंदर तक प्रभावित करके उनकी मन:स्थिति में भी बदलाव ला रहा  है।