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Written By रवि भोई
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:52 IST)

छत्तीसगढ़ में सरकार का फैसला एक-डेढ़ फीसदी वोट से

छत्तीसगढ़ में सरकार का फैसला एक-डेढ़ फीसदी वोट से -
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रायपुर। भाजपा व कांग्रेस दोनों ही छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। किसके दावे में कितना दम है, इसका खुलासा आठ दिसंबर को हो जाएगा। दावे-प्रतिदावे के बीच एक बात तो तय है कि इस बार छत्तीसगढ़ में टक्कर कांटे की हो गई है। सरकार बनेगी व बिगड़ेगी तो एक-डेढ़ फीसदी वोट से ही। राज्य में इस बार कांग्रेस की सीटें बढ़ने के आसार हैं, लेकिन सरकार बनाने लायक जरूरी सीटें मिल पाएंगी या नहीं, यह तय नहीं है।

भाजपा को कितनी सीटों का नुकसान होगा और सरकार बनाने के लिए 45 या अधिक सीटें उसके खाते में रहेंगी या नहीं, यह भी एक पहेली बनी हुई है। बसपा, भाकपा, स्वाभिमान मंच कितनी सीटें जीत पाती हैं और भाजपा के बागी रजिन्दरपाल भाटिया व गणेशराम भगत की ताकत कितनी दिखती है। यह नई सरकार के गठन में महत्वपूर्ण होगा। अभी तक की स्थिति में छत्तीसगढ़ में नई सरकार की सुई भाजपा-कांग्रेस में अटकी है।

राज्य बनने के बाद पहली बार निर्दलियों व अन्य दलों की पूछपरख बढ़ती दिखाई दे रही है। यही वजह है टिकट बंटने से पहले सर्वे में भाजपा को 60 से 71 सीट देने वाले मतदान के बाद 47-48 में अटक गए, वहीं कांग्रेस का आंकड़ा 40-42 में जा पहुंचा।

वैसे छत्तीसगढ़ में शुरू से दो दलीय व्यवस्था को लोगों ने पसंद किया है, लेकिन इस बार लोगों के जो विचार सामने आ रहे हैं और रुझान दिखाई पड़ रहा, उससे लग रहा है कि निर्दलीय व छोटे दल के प्रत्याशी भी कुछ जगहों पर बाजी मार ले जाएंगे, वहीं कुछ जगह निर्णायक होंगे।

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह के प्रति कहीं भी नाराजगी नहीं दिखी। उनकी चावल योजना, किसानों को 270 रुपए बोनस और लेपटाप-टैबलेट वितरण का सकारात्मक प्रभाव रहा, लेकिन उनके कुछ मंत्रिमंडलीय सहयोगी व विधायकों के खिलाफ लोगों की नाराजगी साफ झलकी। वहीं भाजपा में इस बार बड़े नेता चुप्पी मार गए और ऐन चुनाव के वक्त भाजपा की पूर्व सांसद व महिला मोर्चे की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकीं करुणा शुक्ला ने पार्टी छोड़ दी।

दिलीपसिंह जूदेव के न रहने से जशपुर में भाजपा की ताकत घटी। इसका उदाहरण है गणेशराम भगत का निर्दलीय चुनाव लड़ना। गणेशराम ने महल के प्रत्याशी के नाम पर वोट मांगा। विष्णुदेव साय व नंदकुमार साय दोनों टिकट के दावेदार थे। टिकट नहीं मिलने से शांत बैठ गए। सांसद रमेश बैस की भी राजधानी में सक्रियता नहीं दिखी। बृजमोहन अग्रवाल, राजेद्रा मूणत व श्रीचंद सुंदरानी अपने दम पर चुनाव लड़े।

भाजपा में इस बार जितने बागी खड़े हुए, उसके पहले कभी नहीं हुए थे। महासमुंद में डॉ. विमल चोपड़ा, कुरूद में प्रभातराव मेघावले, धमतरी में दयाराम साहू, राजिम में श्वेता शर्मा, जशपुर में गणेशराम भगत व खुज्जी में रजिन्दरपाल सिंह भाटिया का चुनाव लड़ना भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

भाजपा में राज्य स्तर के नेताओं में रमनसिंह को छोड़कर कोई भी स्टार प्रचारक नहीं रहा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रामसेवक पैकरा अपने विधानसभा क्षेत्र में सिमटकर रह गए। बृजमोहन अग्रवाल भी अपने क्षेत्र में उलझे रहे। भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सरोज पांडे का प्रभाव राज्य स्तर पर नहीं दिखा। इसके चलते भाजपा को नरेंद्र मोदी व राष्ट्रीय स्तर के अन्य नेताओं के भरोसे रहना पड़ा। मोदी को दो बार एक-एक रात रुककर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाना पड़ा।

पहले चरण के मतदान के बाद बस्तर व राजनांदगांव इलाके में सीट घटने की खबर के बाद दूसरे चरण की सीटों के लिए भाजपा का प्रचार अभियान का तरीका बदल गया। भाजपा ने आक्रामक होने के साथ प्रचार की रणनीति भी बदली। सहयोगी संगठन के लोग भी प्रचार में जुटे और लोगों को कमल निशान पर वोट डालने के लिए प्रेरित किया।

भाजपा ने बस्तर में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बस्तर राजघराने के कमल भंजदेव को पार्टी में शामिल किया, लेकिन मतदान के बाद संकेतों से ऐसा नहीं लग रहा है कि भाजपा को वहां वे कोई बढ़त दिला पाए। उल्टे बस्तर में भाजपा की सीट जाती दिखाई पड़ रही है।

बलीराम कश्यप के निधन के बाद बस्तर में भाजपा का दबदबा घटा है और कश्यप परिवार का प्रभाव भी कम हुआ है। कहा जा रहा बस्तर के सांसद व बलीराम के बेटे दिनेश कश्यप की चुप्पी चर्चा का विषय बनी हुई है। भाजपा चाहते हुए भी कुछ लोगों के टिकट नहीं काट सकी। इसमें नारायण चंदेल, अजय चंद्राकर, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, बद्रीधर दीवान, राजू क्षत्रिय, चंद्रशेखर साहू, रजनी त्रिपाठी प्रमुख हैं। वहीं कोरिया जिले में भरतपुर-सोनहट से फूलचंदसिंह व मनेंद्रगढ़ से दीपक पटेल को बदलना भाजपा को महंगा पड़ता नजर आ रहा है।

भाजपा के लिए 2008 में सस्ता चावल व अजीत जोगी बड़ा फैक्टर था। इस कारण पहले चरण के मतदान के बादं भाजपा ने दोनों का सहारा लिया। विज्ञापन में जोगी की तस्वीर के साथ उनके कार्यकाल को याद कराने की कोशिश की गई, वहीं भाजपा सरकार न रहने पर सस्ता चावल न मिलने की बात प्रचारित की गई। वहीं कांग्रेस मुफ्त में 35 किलो चावल देने की बात को ठीक तरह से जनता के बीच नहीं रख सकी। वैसे 2008 के चुनाव के पहले प्रदेश अध्यक्ष रहते डॉ. चरणदास महंत ने कांग्रेस की सरकार आने पर मुफ्त में चावल देने की बात तब महासमुंद में एक कार्यक्रम में कही थी।

साहू वोट बैंक परंपरागत रूप से भाजपा का है। इसी के चलते दुर्ग से ताराचंद साहू लगातार जीतते थे। इसीलिए भाजपा में कुर्मी व अन्य पिछड़े वर्ग के मुकाबले साहू प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा होती थी। भाजपा ने अबकी बार भी काफी संख्या में साहू उम्मीदवार खड़े किए हैं, लेकिन स्वाभिमान मंच भाजपा का वोट काटू बन गया है।

पिछली बार ताराचंद साहू ने लोकसभा चुनाव के दौरान दुर्ग में त्रिकोणीय संघर्ष स्थिति बना दी थी। बड़ी मुश्किल से सरोज पांडे सीट निकाल सकीं। इस बार कमान दीपक साहू के पास है। स्वाभिमान मंच ने दुर्ग, आरंग, बलौदाबाजार जैसी कई सीटों पर मुकाबला रोचक बना दिया। लेकिन, स्वाभिमान मंच के प्रत्याशी की जीत पिछड़े वर्ग की दूसरी जाति के लोगों के वोट पर निर्भर करेगी। खासकर कुर्मी मतदाता किसे वोट देते हैं? यह बड़ा फैक्टर होगा।

इस बार कांग्रेस को बढ़त दिखाई दे रही है, लेकिन सरकार बनाने लायक सीट ला सकेगी या नहीं, यह बड़ा सवाल बना है। लोग बदलाव के मूड में दिखे, लेकिन कांग्रेस अपने आप को विकल्प के रूप में ठीक से पेश नहीं कर सकी। कांग्रेस के पास झीरम घाटी की घटना एक बड़ा मुद्‌दा था, लेकिन वह उसका लाभ ठीक से उठा नहीं पाई। कांग्रेस ने झीरम घाटी के शहीद लोगों के परिजनों को टिकट दिया।

खरसिया से नंदकुमार पटेल के बेटे उमेश पटेल, राजनांदगांव से उदय मुदलियार की पत्नी अलका मुदलियार, दंतेवाड़ा से महेंद्र कर्मा की पत्नी देहुती कर्मा व धरसींवा से योगेन्द्र शर्मा की पत्नी अनिता शर्मा को प्रत्याशी बनाया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से किसी को भी राजनीतिक अनुभव नहीं था। पहली बार चुनाव लड़े। पिछली बार महेंद्र कर्मा व उदय मुदलियार चुनाव हार गए थे। योगेन्द्र शर्मा को पहले कभी टिकट नहीं मिली थी। नंदकुमार पटेल रिकॉर्ड मतों से जीते थे। उन्हें कुल मतदान का 48 फीसदी वोट मिले थे। इस बार भी उनके बेटे उमेश का रिकॉर्ड मतों से जीतना तय है, लेकिन बाकी शहीद परिजन प्रत्याशी को सहानुभूति का लाभ मिलेगा, इसकी उम्मीद कम है।

अलका मुदलियार के खिलाफ मुख्‍यमंत्री रमनसिंह के मैदान में रहने से कांग्रेस की रणनीति कारगर नजर नहीं आ रही है, वहीं दंतेवाड़ा में कर्मा के परिजनों की छवि कोई अच्छी नहीं है। अनिता शर्मा को आखिरी मौके पर टिकट मिली, वह जीत की रणनीति भी नहीं बना सकी। धरसींवा में टिकट बंटने से पहले अपनी पार्टी का विरोध झेल चुके देवजीभाई पटेल के सामने अनिता शर्मा कमजोर दिखाई पड़ी।

कांग्रेस भ्रष्टाचार को मुद्‌दा बनाकर चुनाव लड़ा। उसका प्रचार अभियान भी भ्रष्टाचार पर केंद्रित रहा। विज्ञापन में रमन राज मे हुई गड़बड़ी व अव्यवस्था उसके निशाने में रहे। जनता इससे कितना प्रभावित होती है। यह नतीजों से पता चलेगा, लेकिन राहुल गांधी कड़े रुख के कारण आखिरी दिनों में कांग्रेस की एकता से उसे फायदा होता नजर आ रहा है। इस बार कांग्रेस में बागी नजर नहीं आए, वहीं सतनामी वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कांग्रेस की कोशिश भी सफल दिखाई पड़ रही है।

राज्य में अजा वर्ग के लोग इस बार आरक्षण प्रतिशत घटाने के कारण भाजपा से नाराज दिखे, लेकिन अजा मतदाता को कांग्रेस व बसपा के खाते में ही जाता रहा है। इस बार ऐसी ही उम्मीद है। कांग्रेस को इस बार भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ नाराजगी का फायदा मिल सकता है, लेकिन पिछले चुनाव में हारे हुए व निष्क्रिय लोगों को फिर उम्मीदवार बनाए जाने से उसे कहीं-कहीं नुकसान भी दिखाई पड़ रहा है।

कांग्रेस के नेताओं को सोनिया गांधी व राहुल गांधी का सहारा रहा। कांग्रेस में भी कई बड़े नेता अपने क्षेत्र में ही घिरे रह गए। रविन्द्र चौबे अपने क्षेत्र साजा से निकल नहीं पाए। भूपेश बघेल, धनेंद्र साहू, सत्यनारायण शर्मा आदि भी अपने-अपने क्षेत्र को ही देखा। अजीत जोगी 45 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में गए। बसपा व भाकपा का प्रचार अभियान कोई आक्रामक नहीं रहा, लेकिन प्रत्याशी अपनी के दम पर ताल ठोंका। एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वयं मैदान में थे। वे अपने क्षेत्र से बाहर नहीं निकले। इस बार नतीजे चौंकाने वाले होंगे और भारी मतदान के बाद भी जीत-हार का अंतर काफी कम रहेगा।
तीनों महापौर फंसे एंटी इनकम्बैंसी में : कांग्रेस ने दो महापौर को भी मैदान में उतारा। रायपुर की महापौर किरणमयी नायक रायपुर दक्षिण में बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ चुनाव लड़ीं। बिलासपुर की महापौर वाणी राव बिलासपुर शहर से अमर अग्रवाल के खिलाफ मैदान में उतरीं। दोनों महापौर कद्‌दावर मंत्रियों के खिलाफ चुनाव लड़े। मुकाबले को रोमांचक व संघर्षपूर्ण भी बनाया, लेकिन दोनों महापौर एंटी इनकम्बैंसी में फंसे नजर आए। वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं की दूरी भी नुकसानदायक साबित हो सकता है। भाजपा ने भी कोरबा के महापौर जोगेश लांबा को मैदान में उतरा, लेकिन वह भी एंटी इनकम्बैंसी में घिर गए। पहले जयसिंह अग्रवाल के मुकाबले उन्हें मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा था, लेकिन अंतिम समय में जयसिंह उन पर भारी पड़ते नजर आए।

खूब दबे ईवीएम के बटन : चुनाव आयोग की सख्ती के कारण इस बार राजनीतिक दल व प्रत्याशी मतदाताओं को ज्यादा नहीं लुभा सके। इसके बावजूद लोग भारी संखया में मतदान केंद्रों में पहुंचे और अपना वोट डाला। बस्तर जैसे आदिवासी इलाके से लेकर मैदानी इलाकों में वोटिंग काफी हुई। नक्सली के धमकी के बाद भी बस्तर क्षेत्र में 70 फीसदी से ज्यादा वोट पड़े, वहीं मैदानी इलाकों में 80 फीसदी वोटिंग हुई।

खरसिया विधानसभा क्षेत्र के एक-दो मतदान केंद्र में शत-प्रतिशत मतदान होने की खबर है। सराईपाली विधानसभा के खोखेपुर में पहले शत-प्रतिशत मतदान पर विवाद रहा। जांच में वहां 84 फीसदी से अधिक मतदान की पुष्टि हुई। राज्य में भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात रहने के कारण नक्सली भी उपद्रव नहीं कर पाए। विस्फोट के पहले ही बम बरामद कर लिया गया। कहीं-कही जवानों व नक्सलियों में फायरिंग हुई। मतदान दल लौट रहा था, तब नक्सलियों ने विस्फोट किया, जिससे बीएसएफ के दो जवान शहीद हो गए। साजा विधानसभा में सीआरपीएफ के जवान ने भीड़ पर गोली चला दी, जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई। नक्सलियों के चलते 11 नवंबर को अंतागढ़ विधानसभा के दो मतदान केंद्रों में वोटिंग नहीं कराई जा सकी। वहां पुनर्मतदान कराना पड़ा।

भाजपा-कांग्रेस के कई दिग्गज फंसे : भाजपा-कांग्रेस के कई दिग्गज इस बार कांटे की टक्कर में फंस गए हैं। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे से लेकर विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को प्रतिद्वंद्वियों ने कड़ी चुनौती दी। विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल, मोहम्मद अकबर, मंत्री राजेश मूणत, लता उसेंडी, चंद्रशेखर साहू, भूपेश बघेल, रामपुकारसिंह, धनेंद्र साहू, युद्धवीर सिंह मुकाबले में फंसे हैं। माना जा रहा है कि इस बार भारी उलटफेर होने की संभावना है।

कई नए चेहरे की जीत तय : नए चेहरे में कांग्रेस के अमित जोगी की मरवाही, उमेश पटेल की खरसिया, वेदांती तिवारी की बैकुण्ठपुर, सरहुल भगत की जशपुर, शंकरलाल ध्रुवा की कांकेर, थानेश्वर पाटिला की डोंगरगढ़ से जीत पक्की मानी जा रही है। भाजपा के नए चेहरों में रायपुर उत्तर से श्रीचंद सुंदरानी, मनेंद्रगढ़ से श्यामबिहारी जायसवाल, सक्ती से खिलावन साहू, जैजेपुर से डॉ. कैलाश साहू सिहावा से श्रवण मरकाम, अहिरवारा से सांवलराम डहिरे व मोहला-मानपुर से भोजेश शाह की स्थिति मजबूत बताई जा रही है।

प्रचार में जुटा परिवार : मरवाही के कांग्रेस प्रत्याशी अमित जोगी के लिए उनकी पत्नी ने घर-घर जाकर वोट मांगे। कोटा से रेणु जोगी के लिए अजीत जोगी व अमित जोगी लगे रहे। राजनांदगांव व कवर्धा में मुखयमंत्री डॉ. रमनसिंह की पत्नी वीणा सिंह व बेटे अभिषेक सिंह ने प्रचार किया। रायपुर दक्षिण में बृजमोहन अग्रवाल का पूरा परिवार लगा रहा।