फिर वही प्रेम कहानी : 'खन्ना एण्ड अय्यर'
एक लड़का और एक लड़की और उनके बीच पनपता प्यार उन्हें घर से भागने पर मजबूर करता है, आपको ये कहानी 'बॉबी', 'एक-दूजे के लिए', 'कयामत से कयामत तक' से मिलती-जुलती लगेगी। लेकिन इन सारी फिल्मों ने अपने जमाने में सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उस लिहाज से 'खन्ना एण्ड अय्यर' खरी नहीं उतरती। निर्देशक ने कम समय में इतनी सारी चीजों को बाँधने का प्रयास किया है कि वे बिखरती नजर आती हैं। अपने पहले प्रयास में हेमंत हेगडे का काम कमजोर नहीं है लेकिन बहुत सारी चीजें ऐसी हैं, जिसे जबरन करने की कोशिश की गई है। कहानी को सही दिशा न दे पाना, बेवजह उसे बैकग्राउण्ड की ओर ले जाना। ये सारी चीजें दर्शकों को बोझिल करने वाली हैं। आर्यन खन्ना (सरवर आहूजा) और नंदिनी (अदिति शर्मा) इन बातों से बेखबर घर से भाग रहे हैं कि कई नजरें उनका पीछा कर रही हैं। उनके बीच रिश्तों का सबूत अपने पास रखने के लिए प्रसिद्ध नेता (अरुण बख्शी) एक सीडी तैयार करता है। इसी बीच आंतवादी डोगा (यशपाल शर्मा) उनका बैग हथियाने की नीयत से उनका पीछा करता है। उनके भागने के क्रम में ढेर सारा ड्रामा होता है लेकिन दो घंटे की फिल्म में इतने सारे ड्रामे एक साथ पचा पाना शायद दर्शकों के लिए थोड़ा कठिन हो। तबुन सूत्रधार का संगीत ठीक-ठाक है। लक्ष्मण उटेकर का फिल्मांकन भी दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा। वैसे ढेर दृश्यों की गुंजाइश फिल्म में नहीं है। अगर अभिनय की बात करें तो सरवर आहूजा का काम काफी बेहतरीन कहा जा सकता है। सुभाष घई की खोज अदिति शर्मा ने भी अपना बेहतर देने की कोशिश की है। मनोज पाहवा अपने किरदार के साथ बहुत न्याय करते नहीं दिखे। बहुत समय बाद मुस्ताक खान का परदे पर दिखना दर्शकों को भला लगेगा। मिसेज अय्यर के किरदार में प्रतीक्षा लोनकर का अभिनय भी सही है। बाकी कलाकारों का काम भी मिला-जुला रहा है। कुल मिलाकर कहा जाए तो 'खन्ना एण्ड अय्यर' एक सीधी-सपाट फिल्म है, जिसमें दर्शकों के लिए कोई खास गुंजाइश नजर नहीं आती। कमजोर कहानी और नए चेहरों के साथ फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर शायद ही कोई बड़ा कमाल दिखा पाए।